प्रभाष जोशी : जिन्होंने अख़बारों में छप रही हिंदी को बनावटी से खांटी देसी बनाया

आज देश में एक से छह नंबर तक जो हिंदी अखबार छाए हैं उनकी भाषा देखिए जो अस्सी के दशक की भाषा से एकदम अलग है। प्रभाष जी का यह एक बड़ा योगदान है जिसे नकारना हिंदी समाज के लिए मुश्किल है। ● शंभूनाथ शुक्ल आज प्रिंट मीडिया में सिरमौर रहे जनसत्ता अख़बार के संस्थापक […]

लोकतन्त्र की सेहत के लिए यह ठीक नहीं है

● धीरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव दबंगों का लठैत जब किसी अबला की इज्जत लूट लेता है तो उसे लेकर लोग चीखते हैं। इसे लेकर कमजोरों में गुस्सा बढ़ता है तो दंबगों की ओर से यही कहा जाता है कि जवानी की उत्साह में लड़का गलती कर गया है। वह पहचान नहीं पाया कि जिसकी इज्जत वह […]

गांधी की हत्या पर नये खुलासे करती एक किताब!

एक तबका गांधी की हत्या को सही ठहराने की भौंडी और वीभत्स कोशिश कर रहा है। तब एक बार फिर गांधी की हत्या पर नये सिरे से पड़ताल की ज़रूरत थी। अब यह नई कोशिश एक किताब- ‘उसने गांधी को क्यों मारा’ की शक्ल में सामने आयी है।  ● हिमांशु जोशी  गांधी एक ऐसा शब्द है […]

इस सदी के महानतम लेखकों में एक थे पंडित नेहरू

पंडित नेहरू एक आन्दोलनकारी, राजनेता, वैज्ञानिक चेतना से भरे कुशल प्रशासक और आधुनिक हिन्दुस्तान के चितेरे होने के साथ ही इस सदी के महानतम लेखकों में एक थे। उनका लिखा हमारे स्वाधीनता संग्राम के सैनिक द्वारा लिखा अन्दरूनी प्रामाणिक इतिहास है। उनके लेखन में क्लिष्ट दार्शनिक सवाल, बहता भूचाल, एक साथ थपकियां और थपेड़े, रुद्र […]

गंगा में बह रहे शवों के लिए ‘नंगे राजा’ पर उंगली उठाने वाली गुजराती कवयित्री से ख़फ़ा भाजपा

गंगा में बहे शवों को देखकर व्यथित हुई गुजराती कवियत्री पारुल खक्कर ने अपने दुख को चौदह पंक्तियों की एक कविता की शक्ल दी, जिसे लेखकों के साथ-साथ आमजनों ने भी पसंद किया। हालांकि इसके बाद मूल रूप से गैऱ राजनीतिक पारुल सत्तारूढ़ भाजपा की ट्रोल आर्मी के निशाने पर आ गईं। ● दीपल त्रिवेदी […]

लौट आओ राम!

● कनक तिवारी  राम सदियों से इस देश के बहुत काम आ रहे हैं। लेकिन यह देश उनके काम कब आएगा? लोग आपस में मिलते हैं तो ‘राम राम‘ कहते हैं। कोई वीभत्स दृश्य या दुखभरी खबर मिले तो मुंह से ‘राम राम‘ निकल पड़ता है। देश के अधिकाश हिस्से में अब भी संबोधन के […]

धीरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव ‘धीरु भाई’ की कविताओं में किसान आंदोलन

(1) ‘लोकतंत्र मरने मत देना’ हे रे भाई, हे रे साथी।पुरखों से हासिल आज़ादी।लोकतंत्र की जलती बाती।यह बाती बुझने मत देना।लोकतंत्र मरने मत देना। सिक्कों के झनकारों में फंस।ओहदों और अनारों में फंस।जात धर्म के नारों में फंस।खेती को जलने मत देना।लोकतंत्र मरने मत देना। जंगल नदी पहाड़ व पानी।उजली धोती साड़ी धानी।आम आदमी और […]

नाट्य प्रस्तुति और जनगीत गायन से आरिफ अज़ीज़ लेनिन को याद किया गया

वरिष्ठ रंगकर्मी आरिफ अजीज लेनिन की आठवीं पुण्यतिथि पर रविवार को प्रेमचंद पार्क में जनगीत गायन और नाटक ‘अभी वही है निजामे कोहना -3’ का मंचन हुआ। नाटक में कोरोना महामारी के दौरान प्रवासी मजदूरों की स्थिति और शासन सत्ता द्वारा किये गए क्रूर व्यवहार को दिखाया गया। ● पूूर्वा स्टार ब्यूरो गोरखपुर। प्रेमचंद साहित्य संस्थान […]

बगावत

मुझे गुनहगार साबित कर दें, ये आपकी अदालत है,अगर ऐसा आप करते हैं, तो ये आपकी जहालत है। मुझे इल्म है कि आपकी कलम अब दबाव में रहती है, अगर ऐसा है तो यह सच के साथ खिलाफत है। मेरा हाकिम अब हिटलर बनना चाहता है,अगर ऐसा है, तो मेरे हाकिम तुझ पे लानत है। […]

कविता के रंग

वेद प्रकाश कविता अपने जन्म से ही मन को आंदोलित करती रही है । वैसे, कविता मूलत: लोग गीत को ही आज भी मानते हैं । कविता गीत का रूप हो सकती है, लेकिन, जब केवल कविता की बात होगी तो, उसमें हमारे ऊबड़-खाबड़ हिस्से शामिल हो जाते हैं। मैं इसकी शुरूआत धूमिल से ही […]

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