माफीनामों का ‘वीर’ : विनायक दामोदर सावरकर

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इस देश के प्रबुद्धजनों का यह परम, पवित्र व अभीष्ट कर्तव्य है कि इन राष्ट्र हंताओं, देश के असली दुश्मनों और समाज की अमन और शांति में पलीता लगाने वाले इन फॉसिस्टों और आमजनविरोधी विचारधारा के पोषक इन क्रूरतम हत्यारों, दंगाइयों को जो आज रामनामी चद्दर ओढे़ हैं, पूरी तरह अनावृत्त करके इनकी वास्तविक बदसूरत, खूँखार, हिंसक, कुरूप व अमानवीय चेहरे को बेनकाब करें।

● निर्मल कुमार शर्मा

सावरकर सन् 1911 से लेकर सन् 1923 तक अंग्रेज़ों से माफी मांगते रहे, उन्होंने छः माफीनामे लिखे और सन् 1923 के बाद वह लगातार ही इस देश की जनता को बांटने की बात करते रहे। नफरत और हिंसा की राजनीति करते रहे। सन् 1923 में उन्होंने एक लेख लिखा, हिंदुत्व, जिसमें उन्होंने अवधारित किया कि ‘हिंदुस्तान में दो राष्ट्र बसते हैं एक हिंदू और एक मुसलमान, ये दोनों एक साथ नहीं रह सकते।’ उसके बाद सावरकर सारी जिंदगी यही बात कहते रहे और इसी अवधारणा पर गंभीरता से कार्य करते रहे। जिन्ना ने सन् 1939 में मुस्लिम लीग की तरफ से यह बात की और और भारत को हिंदू और मुसलमान दो राष्ट्रों में बांटने की बात करते रहे।

सावरकर, जिन्ना और अंग्रेजों की मिली-भगत से ही इस देश के दो टुकड़े कर दिए गए, इस देश के लाखों लोगों को अनावश्यक रूप से मरवाया गया और यह देश दो टुकड़ों में बंट गया। हिंदुस्तान और पाकिस्तान। यह बंटवारा अंग्रेजों द्वारा समर्थित और सावरकर और जिन्ना द्वारा अवधारित नीतियों का ही परिणाम था।

भारत को बांटने की इस अवधारणा को अंग्रेजों का पूरा समर्थन प्राप्त था और वह अपने वतन को वापस जाते-जाते हमारी प्रिय भारत भूमि और मातृभूमि को हिंदुस्तान और पाकिस्तान नामक दो देशों में बांटकर चले गये, जिसका कुफल हम आज तक अपने हजारों जवानों और निरीह, बेकसूर सीमा के पास रहने वाले लोगों को हर साल मौत के मुंह में जाते हुए देखने को विवश और लाचार हैं।

बेशक सन् 1911 से पहले सावरकर वाकई में एक क्रांतिकारी पुरुष थे। उन्होंने भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पुस्तक लिखी, जिसमें हिंदुओं और मुसलमानों को भारत की दो आंखें बताया गया था। बाद में उन्होंने आजादी की लड़ाई में भी भाग लिया और अंग्रेजों को भगाने के लिए हर वह प्रयत्न किया, जो समयोचित था और किया जाना चाहिए था।

मगर 1911 के बाद सावरकर को इन्हीं क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण अंडमान निकोबार जेल में डाल दिया गया। यहां के हालात बहुत कठिन थे उन्हें मिली सजा को देखकर वह डर गए, घबरा गये और 1911 के बाद उन्होंने अंग्रेजों से माफी मांगनी शुरू की और 1920 तक 6 माफीनामे अंग्रेजों को लिखे।

अपने माफीनामों में सावरकर ने यह बात स्पष्टता से स्वीकार किया कि वह अंग्रेजों के राज को दुनिया में सबसे ज्यादा श्रेष्ठ समझते हैं और अगर अंग्रेज उन्हें जेल से रिहा कर दें तो वह अंग्रेजों के लिए काम करेंगे और जैसा अंग्रेज कहेंगे वैसा ही करेंगे।

उन्होंने अंग्रेजी साम्राज्य और अंग्रेजी कानून की भूरि-भूरि प्रशंसा की और अंग्रेजों द्वारा लाए गए सुधारों की भी भरपूर प्रशंसा करते रहे। उन्होंने 3 माफीनामे 1911,1913 और 1914 में ही लिख दिए थे जबकि महात्मा गांधी 1915 के बाद दक्षिण अफ्रीका से भारत आते हैं। अतः अब यह कहना की सावरकर ने गांधी के कहने पर माफ़ीनामे मांगे थे, यह बिल्कुल झूठ और बेबुनियाद बात है।

यह हकीकत को पलटने की बात है और इतिहास को दबाने और बदलने की बात है और अब लग रहा है कि आरएसएस और बीजेपी सावरकर को महान बनाने की कोई साजिश रच रहे हैं। अगले आने वाले समय में लगता है सावरकर को महात्मा गांधी से भी बड़ा पुरुष बताया जाएगा।

सावरकर ने अंग्रेजों को दिए गए वचन के अनुसार 1923 में एक ऐसा लेख लिखा ‘हिंदुत्व’ और उसमें अवधारित किया कि यहां पर दो राष्ट्र हैं, एक हिंदू और एक मुसलमान, ये दोनों एक साथ नहीं रह सकते और इसके बाद लगातार वह यही हिंदू मुस्लिम एकता को तोड़ने का काम करते रहे।

1936 में भी अपने हिंदू महासभा के अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने यही बात दोहराई कि यहां पर दो राष्ट्र हैं,एक हिंदू और एक मुसलमान, ये दोनों एक साथ नहीं रह सकते। यही बात सन् 1939 में जिन्ना और मुस्लिम लीग ने भी कही। जिन्ना ने भी कहा कि यहां पर दो राष्ट्र हैं, एक हिंदू और एक मुस्लिम, यह दोनों एक साथ नहीं रह सकते और यहीं से हिंदू मुसलमान की एकता टूटने की बात शुरू हो गई ।

सन् 1920 के बाद सावरकर लगातार हिंदू-मुस्लिम एकता तोड़ने के अभियान में लगे रहे। भारत का विभाजन अंग्रेजों, सावरकर और जिन्ना की मुस्लिम लीग की साजिश थी। उसी का परिणाम था कि भारत दो टुकड़ों में बंट गया।

सावरकर पर गांधी की हत्या का आरोप लगा और यह बात तथ्यों में आई है कि सावरकर ने गोडसे और उसके गैंग को यह कहकर अपने घर से विदा किया था कि ‘जाओ और विजयी हो कर लौटो ‘, यानी महात्मा गांधी की हत्या करके वापस आओ और अंत में गोडसे और उसके गैंग ने सावरकर की साजिश के अनुसार गांधी की हत्या 30 जनवरी, 1948 को कर दी।

इसके बाद सावरकर को किसी तरह से गांधी की हत्या के प्रयास से बचा लिया गया मगर लोगों को यह बात गले नहीं उतरी और जस्टिस जीवनलाल कपूर कमीशन की 1971 में स्थापना की गई, जिसमें यह पता लगाना था कि क्या सावरकर गांधी की हत्या की साजिश में शामिल थे?

जस्टिस जीवन लाल कपूर ने अपने निष्कर्ष में यह पाया कि गांधी की हत्या की साजिश सावरकर ने ही रची थी। बीजेपी और आरएसएस के अपने सर्वमान्य नेता कोई भी महान व्यक्ति नहीं हैं, इसीलिए कभी वह भगत सिंह की शरण में जाते हैं, कभी सुभाष चंद्र बोस की जय बोलने लगते हैं कभी गांधी जी की जयकार करने लगते हैं, कभी सरदार बल्लभ भाई पटेल के गुणगान करने लगते हैं, जबकि भारत के तत्कालीन गृहमंत्री के रूप में सरदार वल्लभ भाई पटेल ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिन्दू महासभा पर गांधीजी की हत्या के जघन्यतम अपराध करने के लिए बहुत दिनों तक प्रतिबंध लगा दिए थे।

अभी पिछले दिनों हमने देखा कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह को भी जाट बता कर उनका नाम हड़पने की कोशिश बीजेपी ने ही की थी। मगर हकीकत यह है कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह एक कम्युनिस्ट विचारधारा के बुद्धिजीवी थे, वे भारत में अंग्रेजों को भगाकर क्रांति लाना चाहते थे। उन्होंने 1915 में काबुल में एक सरकार भी कायम की थी जिसके प्रथम राष्ट्रपति राजा महेंद्र प्रताप सिंह ही बने थे और जिसके प्रथम प्रधानमंत्री बरकतुल्लाह खान बने थे और गृहमंत्री ओबेदुल्ला खान बने थे।

अब क्योंकि आरएसएस और बीजेपी एक साजिश के तहत सावरकर का महिमामंडन कर रहे हैं इसलिए वह अब गांधी का सहारा ले रहे हैं। गांधी ने जब सावरकर माफी मांग रहे थे तभी लिखा था सावरकर देशभक्त होने का प्रमाण खो चुके हैं क्योंकि वह पहले ही कई माफीनामे लिख चुके हैं।

यहां पर यह कहना गलत है कि सावरकर ने गांधीजी के कहने पर माफीनामे लिखे थे। गांधीजी तो सन् 1915 में दक्षिण अफ्रीका से वापस आए थे। उससे पहले सावरकर 3 महीनों में तीन माफीनामे पहले ही अंग्रेजों को लिख चुके थे। सावरकर ने कुल मिलाकर 6 माफीनामे अंग्रेजों से मांगे और हर बार वह अंग्रेजों, उनके शासन, उनके कानून और उनके साम्राज्य की जमकर तारीफ किए। उसे दुनिया का सबसे अच्छा और सबसे मानवीय तथा नेक साम्राज्य बताते रहे।

हिंदू-मुस्लिम एकता को तोड़ने की बात करते रहे। तो यक्षप्रश्न है ऐसे देशविरोधी, नफरत फैलाने वाले और भारतीय राष्ट्रराज्य और यहां के संपूर्ण समाज के अमन-चैन और शांति में पलीता लगाने वाले असामाजिक, हिंसक, असहिष्णु, अमानवीय, क्रूर, बर्बर, देशद्रोही, देश को दो टुकड़ों में बाँटने वाले व्यक्ति को वीर कैसे कहा जा सकता है ? किस दृष्टिकोण से कहा जा सकता है ? या ऐसे आदमी को महात्मा गांधी की ओट में छिपाकर, राष्ट्रभक्त कैसे कहा जा सकता है ?

ये ढेर सारे अनुत्तरित प्रश्न अभी भी इस राष्ट्र राज्य के अरबों लोगों के जहन में कौंध रहे हैं, इसलिए सावरकर जैसे व्यक्ति को बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा बारम्बार देशभक्त और वीर साबित करने की हर नापाक कोशिश को विफल करना ही चाहिए ।

इस देश के असली सपूत और महानायक शहीद-ए-आजम भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला, पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, सुखदेव, राजगुरु, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस आदि लोग थे, जो जीए भी तो इस देश, इस राष्ट्र राज्य और यहां के समाज के लिए और मरे भी तो इस देश, इस राष्ट्र राज्य और यहाँ के समाज के लिए।

ये बहुत ही विरोधाभासी बात है कि इस देश, इस राष्ट्र-राज्य और यहाँ के समाज से गद्दारी करके, स्वतंत्रता संग्राम में उक्तवर्णित स्वतंत्रता सेनानियों का साथ न देकर इस देश के असली दुश्मन और शोषक ब्रिटिशसाम्राज्यवादियों की चाटुकारिता और प्रशंसा करने वाले कायर सावरकर बार-बार माफीनामे लिखकर भी वीर की उपमा से नवाजे जाएं और इस देश के कथित प्रधानजनसेवक जी के द्वारा भारतरत्न का प्रबलतम दावेदार बनाया जाए।

यह विद्रूपता, असहज करने वाली स्थितियाँ इस देश के असली सपूत और महानायक शहीद-ए-आजम भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला, पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, सुखदेव, राजगुरु, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस आदि लोगों के लिए, जो इस देश की गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने के लिए हंसते-हंसते स्वतंत्रता की बलिवेदी पर अपने जीवन को होम कर देने वाले सपूतों का घोर अपमान है।

वर्तमान समय में इस देश की सत्ता पर तमाम तिकड़मों, साजिशों और धोखेबाजी से सत्ता पर बैठे कुनायक उसी विचारधारा के पोषक हैं। जो इस देश को स्वतंत्र कराने वाले स्वातंत्र्य वीरों का साथ न देकर इस देश की करोड़ों जनता पर अकथनीय जुल्म ढाने वाले दरिंदे, अत्याचारी ब्रिटिशसाम्राज्यवादियों का खुलेआम साथ दिए थे ।

इसलिए इस देश के प्रबुद्धजनों का यह परम, पवित्र व अभीष्ट कर्तव्य है कि इन राष्ट्र हंताओं, देश के असली दुश्मनों और समाज की अमन और शांति में पलीता लगाने वाले इन फॉसिस्टों और आमजनविरोधी विचारधारा के पोषक इन क्रूरतम हत्यारों, दंगाइयों को जो आज रामनामी चद्दर ओढे़ हैं, पूरी तरह अनावृत्त करके इनकी वास्तविक बदसूरत, खूँखार, हिंसक, कुरूप व अमानवीय चेहरे को बेनकाब करें।

पुरस्कार और सम्मान पाने के वास्तविक हकदार लोगों यथा इस देश के असली सपूत और महानायक शहीद-ए-आजम भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला, पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, सुखदेव, राजगुरु, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस आदि लोगों को खूब पुरस्कार और सम्मान मिले। जो इस देश को जिसे ब्रिटिशसाम्राज्यवादियों से गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था, को मुक्त कराने के लिए स्वतंत्रता की बलिवेदी पर अपने अमूल्य जीवन सहित सबकुछ न्योछावर कर दिए।

लेकिन जिन माफीनामे लिखने वाले, ब्रिटिश-साम्राज्यवादियों की प्रशंसा में कसीदे काढ़ने वाले सावरकर जैसे कायरों को वीर शब्द से संबोधित करने सहित उस कापुरुष को भारतरत्न देने की सोच ही किसी भी देशभक्त और स्वाभिमानी व्यक्ति के रोम-रोम में सिहरन पैदा कर देती है !

मोदी जैसे निरंकुश, फासिस्ट, असंवेदनशील, गरीब, मजदूर-किसान विरोधी शासक कुख्यात जर्मन क्रूर तानाशाह एडोल्फ हिटलर और नाजीवाद के कुख्यात समर्थक इटली के बदनाम शासक बेनिटो मुसोलिनी के विचारों के समर्थक हैं, का पुरजोर विरोध करें।

(लेख एडवोकेट मुनेश त्यागी और निर्मल कुमार शर्मा ने लिखा है।)

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