इन्दिरा की साड़ियों से लेकर राजनीति तक सबका इस्तेमाल करती प्रियंका

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राजनीति साहस की चीज है। प्रियंका ने इन्दिरा गांधी से सीखा। इन्दिरा भी तो ऐसे ही एक दिन अचानक उठकर बेलछी की तरफ रवाना हो गईं थीं। वहां भी पानी बरस रहा था। जाने का कोई साधन नहीं था। ऐसे में इस परिवार के साथ हमेशा आम आदमी खड़ा होता है। एक महावत ने पूछा दीदी हाथी से चलेंगी? और इन्दिरा हाथी पर बैठ गईं। प्रियंका केवल इन्दिरा गांधी की साड़ियां ही आल्टर करके नहीं पहनतीं बल्कि उनकी राजनीति को भी वक्त के हिसाब से बदलकर अपनाती रहती हैं।

● शकील अख्तर

मौसम बदल रहा है। उत्तर प्रदेश में किसान, दलित, महिलाओं का सम्मान, मंत्री पुत्र के लिए अलग कानून, मंत्री की बर्खास्तगी जैसे वास्तविक मुद्दों पर बात होने लगी है। प्रियंका गांधी वहां चिमटा गाड़ कर बैठ गईं हैं। बनारस यूपी की नब्ज है। वहां उनके तेवर और किसान न्याय रैली में उमड़ी भीड़ को देखकर सिर्फ सत्तारुढ़ भाजपा की ही नहीं कई विपक्षी दलों की भी नींद उड़ गई है। अगर वे चुनाव तक नहीं हिलीं तो सरकार हिला देंगी।

उनका पहले रात को ही लखीमपुर के लिए निकलना जब बाकी विपक्ष के नेताओं ने जाने की सोचा भी नहीं था और फिर रात के अंधेरे, बारिश में पुलिस के साथ मुठभेड़, और हिरासत में झाड़ू उठाने ने यूपी की हवा ही बदल दी।

बनारस रैली में काशी के पण्डितों ने अन्याय जुल्म के खिलाफ डटी प्रियंका को तलवार भेंट की।

प्रियंका केवल इन्दिरा गांधी की साड़ियां ही आल्टर करके नहीं पहनतीं बल्कि उनकी राजनीति को भी वक्त के हिसाब से बदलकर अपनाती रहती हैं। काफी पहले अमेठी रायबरेली में इन पंक्तियों के लेखक से बात करते हुए प्रियंका ने अपनी साड़ियों का कोई जिक्र होने पर बताया था कि ये इन्दिरा जी की साड़ियां हैं। जिन्हें वे थोड़ा बहुत चेंज करके पहनती रहती हैं। भारतीय महिलाओं की यह पुरानी आदत है। दादी के कपड़ों को सहेजना।

प्रियंका ने साथ में आदतें भी ले ली हैं। इन्दिरा जी विपक्ष को विकल्प नहीं देती थीं। खेल उन्हीं की पिच पर होता था। गरीबी हटाओ! या तो आप उनके समर्थन में हैं या गरीबी हटाने के विरोध में। तीसरा रास्ता नहीं देतीं थीं वे। चाय लेंगे या काफी? और कोई कोल्ड ड्रिंक वगैरा की गुंजाइश नहीं होती थी।

राजाओं की मोटी तनखाएं- भत्ते, विशेषाधिकार बंद कर दिए। सारी बहस इस पर आ गई कि लोकतंत्र में राजाओं की अलग से हैसियत और सुविधाएं क्यों? भाजपा जो उन दिनों जनसंघ थी सहित सारे दल जिनमें कांग्रेस के पुराने नेता भी शामिल थे सिंडिकेट के नाम से एक गुट बनाकर जैसे आज जी 23 बनाया है, राजा रानियों के समर्थन में आ गए। मगर जनता इन्दिरा के साथ हो गई। नतीजा 71 का चुनाव इन्दिरा गांधी ने दो तिहाई बहुमत से जीता।

उस समय भी जनसंघ ने कभी राजाओं का मुद्दा, कभी बैंक राष्ट्रीयकरण के खिलाफ सेठ साहूकारों का समर्थन, कभी हिन्दु मुसलमान का सवाल उठाने की कम कोशिश नहीं की। मगर इन्दिरा गांधी ने गरीब, कमजोर के समर्थन की जो मुहिम चलाई उसके सामने उनके सारे मुद्दे फीके पड़ गए।

आज प्रियंका फिर गरीब कमजोर की आवाज बनकर खड़ी हुई हैं। तीन दिन में राजनीति किस तरह चेंज होती है इसकी एक बड़ी मिसाल प्रियंका गांधी ने दिखाई।

पिछले रविवार- सोमवार की दरम्यानी रात 3- 4 अक्तूबर को लग रहा था कि योगी सरकार किसी भी कीमत पर प्रियंका को लखीमपुर पहुंचने नहीं देगी। पुलिस वाले जिस तरह उनसे बात कर रहे थे वह शर्मनाक दृश्य था। आतंकवाद से लड़ते हुए अपने प्राणों का बलिदान कर देने वाले एक पूर्व प्रधानमंत्री की बेटी और एक पूर्व प्रधानमंत्री की पोती के साथ पुलिस की हाथापाई करने की कोशिश? यह पहली बार नहीं था।

इससे पहले भी हाथरस और यूपी में कई जगह ऐसा किया जा चुका है। दूसरी तरफ किसानों को कुचलने के आरोपी केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री के बेटे को प्यार और सम्मान के साथ बुलाना? क्या दृष्टांत पेश कर रहें हैं हम? मगर जैसा कि राहुल गांधी ने कहा कि हमारे साथ पुलिस कैसा ही दुर्व्यवहार करे हम विचलित नहीं होते। प्रियंका अपने लक्ष्य किसानों को न्याय पर डटी रहेंगी। और वाकई वैसा ही हुआ। प्रियंका को लखीमपुर जाने भी दिया गया और मंत्री पुत्र को सपर्पण भी करना पड़ा।

हाथी पर सवार होकर बेलछी जाती इंदिरा गांधी।

राजनीति साहस की चीज है। प्रियंका ने इन्दिरा गांधी से सीखा। इन्दिरा भी तो ऐसे ही एक दिन अचानक उठकर बेलछी की तरफ रवाना हो गईं थीं। वहां भी पानी बरस रहा था। जाने का कोई साधन नहीं था। ऐसे में इस परिवार के साथ हमेशा आम आदमी खड़ा होता है। एक महावत ने पूछा दीदी हाथी से चलेंगी? और इन्दिरा हाथी पर बैठ गईं। ये 1977 की बात है। इन्दिरा विपक्ष में थीं। बेलछी में दलितों को जिन्दा जला दिया गया था। जैसे लखीमपुर की खबर मिलने के बाद प्रियंका खुद को नहीं रोक पाईं ऐसे ही इन्दिरा भी चल पड़ीं। दिल्ली से पटना जहाज से। वहां से कार में बैठीं मगर कार कुछ देर बाद कीचड़ में फंस गई। वहां से ट्रैक्टर लिया। मगर आगे चढ़ी हुई नदी।

अगस्त का महीना था। तेज बारिश, अंधेरी रात हाथी पर इन्दिरा गांधी और चढ़ती हुई नदी। लेकिन वे इन्दिरा थीं। नदी पार कर गईं। गांव वालों के लिए यह बड़ी बात थी कि ऐसे में कोई उनका दुःख सुनने आया है। इन्दिरा गांधी बुरी तरह भीगी हुईं थीं। गांव की महिलाओं ने पहले उन्हें सूखी साड़ी दी। फिर जो दर्द सुनाया है कि किस तरह एक दर्जन से ज्यादा लोगों को जिन्दा आग में जलाया। और एक 15-16 साल का लड़का निकल कर भागने लगा तो उसे पकड़ कर फिर आग में झौंक दिया गया। इन्दिरा ने सुखी साड़ी तो पहन ली थी मगर अंदर तक वे दुःख और करुणा से भीग गईं।

77 की हार के बाद हताश इन्दिरा फिर घर में बैठी नहीं रह सकीं। बाद का इतिहास सबको मालूम है। जनता पार्टी की सरकार हारी और इन्दिरा ने फिर धमाकेदार वापसी की।

आज प्रियंका भी उसी तेवर के साथ मैदान में हैं। उनके सीतापुर में जहां वे हिरासत में रखी गईं थीं कमरे को साफ करने पर मुख्यमंत्री योगी का यह कहना कि जनता ने उन्हें झाडू लगाने लायक ही छोड़ा है को प्रियंका ने बड़ा मुद्दा बना दिया। वे लखनऊ की दलित बस्ती के वाल्मिकी मंदिर में झाड़ु लगाने पहुंच गईं। कहा इसे छोटा काम बता रहे हैं। देश भर की महिलाएं यह करती हैं। हमारे दलित भाई, सफाई कर्मचारी करते हैं। साफ सफाई तो अच्छी बात है। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से कहा कि पूरे यूपी में झाडू लगाओ।

प्रियंका को मालूम है कि यूपी में उनकी ताकत कम है। मगर झाड़ू की ताकत वे जानती हैं। एक झाड़ू पूरा घर आंगन साफ कर देती है। दो तीन लोग मिल जाएं तो पूरी गली मोहल्ला साफ हो जाता है। प्रियंका उन्हीं दो तीन लोगों के सामने आने का इंतजार कर रही हैं। अखिलेश यादव लखीमपुर नहीं जा पाए। दरअसल वे कहीं नहीं गए। मुजफ्फरनगर से लेकर हाथरस कहीं नहीं। अब चुनाव के समय ये सवाल उठने लगे हैं। जनता दुखी है। नाराज है। मगर अखिलेश से उसे शिकायत भी है कि मुख्य विपक्षी दल क्या वे केवल नाम के हैं।

लखीमपुर खीरी में मारे गये एक किसान परिवार से मिलते हुए राहुल-प्रियंका

प्रियंका इन ढाई सालों में दो दर्जन से ज्यादा जगहों पर गईं होगीं। अखिलेश एक जगह भी लोगों के दुख दर्द बांटने नहीं पहुंचे। मायवती को तो कोई अब याद भी नहीं करता। उन्होंने तो लखीमपुर जाने की बात भी नहीं की। हाथरस जहां दलित लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ और वह मर गई। उसकी लाश भी परिवार को नहीं सौंपी। चुपचाप जला दी। परिवार आज भी आतंक के साये में जी रहा है। उसे हिम्मत दिलाने भी नहीं गईं।

प्रियंका ने अभी उसी घटना को याद करते हुए मीडिया को बुरी तरह धो दिया। कहा कि तुम्हारे घर में किसी बच्ची के साथ हो जाए तो यही कहोगे कि हम वहां क्यों गए? हम ही नहीं जाएंगे तो कौन जाएगा? किससे न्याय मांगोगे? हमसे कहते हो राजनीति करते हैं! प्रियंका ने पूरी तरह गोदी मीडिया को एक्सपोज कर दिया। ये जरूरी भी है। राहुल लिहाज करते हैं। हर प्रेस कान्फ्रेंस में जो उन्होंने इस कोरोना काल में दर्जनों की हैं पत्रकारों से पहला सवाल पूछते हैं कैसे हैं आप! और मीडिया फूफा की तरह और मुंह फुला लेता है। प्रियंका ने बताया कि गोदी मीडिया को ज्यादा सिर चढ़ाने की जरूरत नहीं है जैसे मोदी जी रखते हैं कदम सतर वैसे ही रखना चाहिए!

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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