योगी के सिर पर विज्ञापन के ओले!

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● सुसंस्कृति परिहार

इन दिनों योगी आदित्यनाथ एक झमेले की गिरफ्त में आ गए हैं जिसने उनकी भगवा छवि को इतनी बुरी तरह आहत किया है कि इससे राहत मिलनी मुश्किल लगती है। तो साहिबान योगी जी के सिर पर आजकल चुनाव का भूत तारी है तथा संघ का मजबूत साथ है इसलिए संघी फितरत चुनाव में नज़र आने लगी है। बकौल तुलसीदास जिनका सिद्धांत ये हो

झूठ ही लेना झूठ ही देना,

झूठ ही भोजन झूठ चबैना।

झूठ की बुनियाद पर खड़ा संघ और भाजपा सरकार के आईटी सेल अब आजकल इतने परिपक्व हो चुके हैं कि वह नेहरू, इंदिरा ही नहीं बल्कि आज़ादी का नया इतिहास बताते रहते हैं। सरदार पटेल भले ही नेहरू को सम्मान देते रहे हों, भले ही महात्मा गांधी की बात सरदार पटेल मानते रहे हों लेकिन एक उनका बिल्कुल नया इतिहास रचा जा रहा है। विवेकानंद, सरदार पटेल, भगतसिंह को भी अपना बना लिया है जबकि पटेल ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने संघ पर प्रतिबंध लगवाया था, भगत सिंह तो वाम विचारधारा से जुड़े ही थे।

अब संघ के घोर विरोधी व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई भी उनके सिर पर सवार हो चुके हैं विदित हो भाजपा के लोगों ने गत दिनों एक बैनर में बाकायदा भाजपाई झंडे के साथ अपने आलोचक परसाई जी की जयंती पर नमन किया। हो सकता है यह नादानी में हुआ हो लेकिन यह उनका लेखक के प्रति नया प्रेम दर्शाता तो है ही। इसके खंडन की भी कोई ख़बर नहीं। विदित हो संघ के लोगों ने निहत्थे परसाई पर हमला भी किया था।

लगता है अब कुछ वाम लेखकों को संघ अपना बताने को बेताब है वह किस तरह होगा ये तो जब नयी इतिहास की पुस्तकें आएंगी तभी ज़ाहिर होगा। हर किसी देश, समाज के लोगों से जिस तरह सदियों पुराना रिश्ता मोदी जी निकालते हैं शायद ऐसा ही कुछ कुछ होगा। लेकिन जो होगा बड़ा रोचक, इसमें शक ओ सुबहा की कोई गुंजाइश नहीं। समीक्षकों को काम भी मिल जायेगा।

कतिपय लोगों का ख़्याल है कि जैसे भाजपा कांग्रेसमयी है ठीक वैसे ही संघ अब कांग्रेस के लोगों के साथ वामपंथियों पर भी डोरे डालकर उन्हें अपनाने में लगा है। वजह साफ़ उनके अपने आईकान नाथूराम, हेडगेवार, सावरकर वगैरह को आम जनता नकार चुकी है तो फिर यही एक उपाय बचता है। जैसे नाम बदलो अभियान जोरों से जारी है। किसी का जीवन किसी के नाम हो जाए तो क्या आश्चर्य। बहरहाल झूठ के दिलचस्प इतिहास का इंतजार करिए आज़ादी के अमृतमहोत्सव में चयनित लेखक इसका काम प्रारंभ कर दिए हैं और आज़ादी की हीरक जयंती पर इस साहित्य को जनता के बीच लाया जाएगा।

आइए अब बात करें भगवाधारी योगी जी के उत्तर प्रदेश की। बात, तो संघ ने अपने झूठे तिलस्म से एक शानदार पूरे पेज का विज्ञापन शासन से जारी करवाया है। बड़े-बड़े अखबारों में। जिसमें योगी जी का शानदार चित्र अखबारों में आभा बिखेर रहा है वे एक सुंदर से फ्लाईओवर पर खड़े हैं और सामने एक कारखाने की ख़ूबसूरत तस्वीर मनमोह लेती है। यह चित्र दर्शाता है कि योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश को कितना बेहतरीन बना दिया है। वह भी सिर्फ साढ़े चार साल में ही। अखबार इतनी तादाद में घर घर बांट दिए गए कि लोगों की नज़र को ये विकास तलाशने की ज़रूरत महसूस हुई।

वे जानने को उद्यत हो गए कि आखिरकार उनके प्रदेश में इतनी तरक्की कहां हो गई और उन्हें कुछ पता ही नहीं चला। बूढ़े-जवान सब हलकान। खोज में लग गए। लेकिन धत् तेरे की। मामला जब समझ में आया तो योगी जी की थू-थू करने में लग गए। विरोधियों को मसाला मिल गया।

चित्र में जो फ्लाईओवर दिख रहा है वह बंगाल का मां फ्लाई ओवर है और जो कारखाने जैसी बड़ी इमारत दिखाई दे रही थी वह विदेशी किसी कंपनी थी। जिसका यहां नामोनिशान नहीं।

मध्यप्रदेश में मामा सरकार ने पिछले चुनाव प्रचार में प्रदेश की नवनिर्मित सड़कों का चित्र इसी तरह प्रदर्शित किया था वह भी कहीं विदेश का ही था जिससे मामा ने अपनी छवि बनाई थी। काफ़ी हो हल्ला हुआ लेकिन वह इतना निर्णायक साबित नहीं हुआ की शिवराज चौहान को हरा दे।

अफ़सोसनाक यह है, उत्तर प्रदेश में जो घटित हुआ है उसका असर उल्टा हो रहा है। ठीक वैसे ही जैसे भारत सरकार ने कह दिया कि ऑक्सीजन के अभाव में देश में कहीं मृत्यु नहीं हुई। झूठ के समुंदर में गोते लगा रही जनता अब झूठ पहचानने लगी है। कहते हैं, झूठ ज़्यादा दिन नहीं चलता है।

महत्वपूर्ण बात यह है झूठ का जैसा खेल संघियों ने आज़ादी के दौरान अंग्रेजों को ख़ुश करने के लिए खेलना शुरू किया वह सतत जारी है अब खेल के तौर तरीके बदल गए हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि अब फ़र्ज़ीवाड़े की पोल खोलने वाले खेल बिगाड़ने में लग गए हैं। भाजपा के रुष्ट नेताओं ने भी इसमें महारत हासिल कर ली है। अब इस सबसे काम सफल होने वाला नहीं है। सबूत सामने है इस बार पहले ही प्रचार में योगी जी ढां हो गये।

अभी तो शुरुआत है यदि इसी तरह झूठ का कारोबार चलता रहा तो यकीन मानिए जनता आक्रोशित होकर बुरी तरह झूठ बोलने वालों की फजीहत कर देगी।

वैसे भी राममंदिर और हिंदू-मुस्लिम के नशे में अब दम नज़र नहीं आ रहा। इसलिए संघ हिंदू-मुस्लिम का एक डीएनए बताने में लगा है। हो सकता है, कल मार्क्स को भी संघ अपना बताने लगे।

यदि योगी सरकार अपनी वापसी चाहती है तो वह कुंभ के शानदार आयोजन उसकी व्यवस्थाओं को दिखाए। राम मंदिर को लोग भूलते जा रहे हैं उनकी चेतना वापस लाएं। बताएं इसके निर्माण और इतिहास को। अयोध्या के दीपोत्सव की याद दिलाएं। मॉब लिंचिंग की यादें ताज़ा करवाई जाएं और बलात्कारियों को संरक्षण तथा उनके स्वागत का स्मरण कुछ ऐसी घटनाएं हैं जो सम्मोहक हैं उनको विज्ञापित करें तो बात बन जाए। अपनी ये महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां ज़रुर दिखाई जानी चाहिए। मोदी से सीधे टकराव की अपनी हैसियत भी बयां कीजिए तो जनता को बल मिलेगा।

याद रखिए संघियों और भाजपाइयों के झूठ से अब तक जो जीतें दर्ज़ हो चुकी हैं वे आखिरी हैं क्योंकि जनता को जगाने के लिए अब बहुत से लोग लग गए हैं। साथ ही साथ वह भी सात साल में सबको अच्छे से जान गयी है।

हम सब जानते ही हैं झूठ एक दो बार से ज्यादा नहीं चलता। ट्रकों के पीछे अक्सर लिखा होता है झूठ का मुंह काला। अब शायद ऐसे दिन नज़दीक आ पहुंचे हैं। सबेरा करीब है।

(सुसंस्कृति परिहार स्वतंत्र लेखिका हैं।)

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