कृषि अध्यादेश आने के बाद नई मंडियों के निर्माण पर योगी सरकार ने क्यों लगाई रोक?
जून 2020 में आया यह कृषि अध्यादेश आगे चलकर सितंबर में कानून बन गया। जो उन तीन कृषि कानूनों में से एक है, जिसके खिलाफ किसान बीते नौ महीनों से प्रदर्शन कर रहे हैं।
● बसंत कुमार
केंद्र सरकार द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली के सिंघु, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर भारी संख्या में किसान बीते नौ महीनों से प्रदर्शन कर रहे हैं। इस दौरान किसान नेताओं और सरकार के बीच 11 दौर की बातचीत हुई, लेकिन इसका में कोई हल नहीं निकला। दरअसल सरकार इन कानूनों को किसान हित में बता रही है, वहीं किसान नेता इसे काला कानून बताकर सरकार से वापस करवाने की मांग पर अड़े हैं।
प्रदर्शन कर रहे किसानों के मन में इन तीनों कृषि कानूनों को लेकर कई आशंकाएं हैं। इनमें से एक आशंका यह है कि इस कानून के बाद मंडियां खत्म हो जाएंगी। हालांकि केंद्र सरकार इससे बार-बार इंकार कर रही है। लेकिन उत्तर प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी सरकार में कृषि विपणन मंत्री श्रीराम चौहान के विधानसभा में दिए गए एक जवाब से किसानों के इस आरोप को बल मिला है।
दरअसल 19 अगस्त, गुरुवार को सहारनपुर से समाजवादी पार्टी के विधायक संजय गर्ग ने विधानसभा में सवाल पूछा कि प्रदेश में जिलावार कुल कितनी अनाज और सब्जी की मंडी हैं तथा उनमें से कितनी मंडी, ई-मंडी से जुड़ी हैं और कितनी शेष हैं? क्या सरकार शहरों में जनसंख्या के अनुपात के हिसाब से अनाज एवं सब्जी मंडी की संख्या बढ़ाएगी? यदि नहीं, तो क्यों?
इस सवाल का जवाब राज्यमंत्री श्रीराम चौहान ने दिया। चौहान लिखित जवाब में कहते हैं, ‘‘251 अधिसूचित मंडी समितियों में से 220 मंडी परिसर निर्मित हैं, जहां कारोबार संचालित है। इनमें से 125 मंडी समितियां ई-नाम परियोजना से आच्छादित हैं।’’
वहीं मंडी की स्थापना को लेकर पूछे गए सवाल पर उन्होंने बताया, ‘‘मंडी की स्थापना उस क्षेत्र के लाइसेंसों की संख्या तथा उस क्षेत्र से होने वाली आय के आधार पर की जाती है, किन्तु 05 जून, 2020 द्वारा पारित अध्यादेश/अधिनियम के प्रकाश में बदली हुई परिस्थितियों में परिसर के बाहर मंडी शुल्क की देयता नहीं रह गयी है, जिसके फलस्वरूप मंडी की आय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।’’
इसी जवाब में चौहान आगे कहते हैं, ‘‘तत्क्रम में नवीन मंडी स्थलों के निर्माण कराये जाने के संबंध में संचालक मण्डल की 158वीं बैठक दिनांक 13.06.2020 को हुई थी, जिसमें निर्णय लिया गया है कि बदली हुई परिस्थितियों में नवीन निर्माण के स्थान पर पूर्व से सृजित अवस्थापना सुविधाओं की मरम्मत एवं आधुनिकीकरण पर बल प्रदान किया जाए, ताकि कृषि विपणन की व्यवस्था मजबूत हो सके, तद्नुसार नवीन मंडी स्थलों के निर्माण कार्य को वर्तमान में स्थगित रखा गया है।’’
चौहान अपने जवाब में पांच जून को पारित जिस अध्यादेश की बात कर रहे हैं, वो किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020 है। यह उन तीन कृषि कानूनों में से एक है, जो सरकार ने 14 सितंबर को विधेयक के रूप में लोकसभा में प्रस्तुत किया था।
विपक्षी सांसदों के विरोध के बावजूद इसे आनन-फानन में पास करा लिया गया। वहीं राज्यसभा में भी विपक्ष ने इसका विरोध किया, लेकिन वहां भी इसे पास करा लिया गया। इसके बाद 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने इसपर हस्ताक्षर कर दिए। जिसके बाद यह कानून में तब्दील हो गया।
पांच जून को जब केंद्र सरकार ये अध्यादेश लेकर आई तभी से पंजाब और हरियाणा के किसानों ने आंदोलन शुरू कर दिया। पहले उन्होंने अपने जिले में इसके खिलाफ प्रदर्शन किया। सितंबर में जब ये कानून बन गया तो प्रदर्शन तेज हो गया और 26-27 नवंबर को किसान दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन करने पहुंच गए। जो अब तक जारी है।
किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) 2020, कानून में किसानों को मंडी से बाहर अपने मन से फसल बेचने की आज़ादी होने की बात कही गई है। जबकि एपीएमसी एक्ट के तहत किसानों को मंडी में अपनी फसल बेचनी होती थी। बाहर किसी तरह की खरीद बिक्री को वैध नहीं माना जाता था। मंडी में खरीद-बिक्री होने के कारण खरीदार को राज्य सरकार को टैक्स देना होता था।
वहीं इस नए अध्यादेश (जो बाद में कानून बना) में मंडी में तो टैक्स व्यवस्था कायम रही, लेकिन मंडी के बाहर टैक्स मुक्त कर दिया गया। ऐसे में किसानों का आरोप था कि टैक्स नहीं देने की स्थिति में प्राइवेट खरीदार मंडी की तुलना में ज़्यादा पैसे देकर कुछ सालों तक खरीदारी करेंगे। ऐसे में किसान मंडी से दूर होते जाएंगे और धीरे-धीरे मंडी खत्म हो जाएंगी। मंडी सिस्टम खत्म होने के बाद प्राइवेट खरीदार अपने हिसाब से खरीद करेंगे। प्रदर्शनकारी किसान इसके लिए बिहार के किसानों का उदाहरण देते हैं। जहां एपीएमसी खत्म होने के बाद मंडियां खत्म हो गईं और किसान अपना उत्पादन औने पौने दामों में बेचने को मज़बूर हैं।
नए कानून के बाद मंडियां खत्म होने के किसानों के आरोप को सरकार मानने से इंकार करती है। लेकिन योगी सरकार के मंत्री ने अपने जवाब में साफ-साफ लिखा है कि 5 जून 2020 को आए अध्यादेश के बाद मंडी के बाहर देय शुल्क यानी टैक्स की व्यवस्था नहीं रही जिसका मंडी की आय पर असर पड़ा। ऐसे में नवीन मंडी स्थलों के निर्माण कार्य को वर्तमान में स्थगित रखा गया। यानी मंडियों की आमदनी कम होने के कारण नई मंडी के निर्माण पर योगी सरकार ने रोक लगा दी।
स्वराज इंडिया के प्रमुख और किसान आंदोलन के नेताओं में से एक योगेंद्र यादव, यूपी सरकार के मंत्री का जवाब सुनने के बाद कहते हैं, ‘‘इस जवाब से सरकार की नीयत बेनकाब हुई है। हमारा शुरू से ही यह संदेह था और आरोप था कि ये जो नया कानून है ये मंडी व्यवस्था को खत्म करने और उसे बर्बाद करने का तरीका है। इस उत्तर में सरकार दो बात स्वीकार कर रही है। पहला तो ये कि इस नए कानून से मंडी की आमदनी पर फर्क पड़ा है और मंडी की हालत खराब हुई है। नंबर दो, जो ज़्यादा महत्वपूर्ण है कि इस कानून के आने के बाद सरकार नई मंडियां बनाने से अपना हाथ खींच रही है। और अब ले-देके यह सिर्फ प्राइवेट प्लेयर के हाथ में छोड़ दिया जाएगा। बिलकुल यहीं तो हमारा आरोप था।’’
यादव आगे कहते हैं, ‘‘इस उत्तर से किसानों की शंका सच साबित हुई है। ये जो किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) 2020, कानून है इसका नाम मंडी तोड़ो कानून होना चाहिए।’’
आठ दिन में ही नुकसान का अंदाजा?
हैरानी की बात यह है कि पांच जून को अध्यादेश आया और महज आठ दिन बाद यानी 13 जून को ही मंडी संचालक मण्डल ने अपनी बैठक में नए मंडी के निर्माण को स्थगित करने का फैसला ले लिया। आठ दिन में ही सरकार को लगा कि इसका असर मंडी की आय पर पड़ रहा है। ये कैसे हुआ?
इसको लेकर यादव कहते हैं, ‘‘यह बिलकुल स्पष्ट है कि एक सप्ताह में कोई आंकड़ा नहीं आ सकता था। दरअसल यह केंद्र की तरफ से एक राजनैतिक इशारा था कि अब राज्य मंडी बनाने के काम से अपना हाथ पीछे खींच लें और इसे प्राइवेट लोगों के हाथों में छोड़ दिया जाए। और इस काम को बीजेपी की यूपी सरकार ने एक सप्ताह में शुरू कर दिया।’’
न्यूज़लॉन्ड्री में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश बीजेपी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने इस पूरे मामले पर सरकार की ही बात दोहराते हुए कहा, ‘‘सरकार मंडियों को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। मौजूदा मंडियों पर किसी तरह का कोई असर नहीं होगा।’’
2018-19 के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 20 हज़ार हाट को कृषि बाजार बनाने की घोषणा की। ऐसे में मंडियों के निर्माण पर रोक लगाना कहां तक जायज है? इस पर त्रिपाठी कहते हैं, ‘‘यह अलग-अलग बैठकों में तय होता है। हर बैठक के अपने निर्णय होते हैं। जहां तक रही मंडियों के निर्माण पर रोक तो हम नया विकल्प जब दे रहे हैं कि किसान कहीं भी उत्पादन को बेच सकता है। ऐसे में मंडियों को आगे और कितना बढ़ाना है, ये सरकार आगे तय करेगी। यह देखा जाएगा कि नए मंडियों की ज़रूरत है। क्योंकि ओपन मार्किट के कारण और मंडियां खोले जाने की ज़रूरत न हो। हालांकि यह मैं फिर स्पष्ट करना चाहता हूं कि पुरानी मंडियों को बंद नहीं किया जाएगा।’’
लेकिन आठ दिन में सरकार को मंडियों को होने वाले नुकसान का पता कैसे चल गया कि नई मंडियों के निर्माण को स्थगित कर दिया गया। इसपर त्रिपाठी कहते हैं, ‘‘आपका सवाल वाजिब है, लेकिन जिन्होंने रिपोर्ट बनाई है वहीं लोग इसका जवाब दे सकते हैं। क्योंकि अभी कानून लागू भी नहीं हुआ है।’’
केंद्र की बीजेपी सरकार या बीजेपी नेता भले ही कृषि कानूनों को किसान हित में बता रहे हों लेकिन यूपी सरकार का यह जवाब किसानों की आशंका को मज़बूत करता है कि मंडियां धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगी।