निराशा, असफलता और मौत के शिकंजे में फंसा इलाहाबाद!

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कई क्रांतिकारी, कई नायक, प्रधानमंत्री और मंत्री देने वाला इलाहाबाद निराशा, असफलता और मौत के शिकंजे में कैसे आता जा रहा है? जिस शहर में खाली जेबें लेकर घूमते युवा दुनिया की तमाम मुश्किलों को हराकर जिंदगी की जंग जीत लेते थे, उस इलाहाबाद की युवा आंखें बेरोजगारी से सहम गई हैं। इलाहाबाद में तालीम लेने गए युवा निराश होकर खुदकुशी कर रहे हैं। इलाहाबादी युवा निराशा से मर रहा है। 

● कृष्ण कांत

आज मैं बहुत दुखी हूं। आज मैं इलाहाबाद से और इलाहाबादी युवाओं से बहुत कुछ कहना चाहता हूं। वही इलाहाबाद जो आईएएस बनाने की फैक्ट्री रहा है। वही इलाहाबाद जो आज भी सबसे ज्यादा पीसीएस बनाता है। उस इलाहाबाद को किसकी नजर लग गई? अब उस इलाहाबाद से रह-रहकर युवाओं के खुदकुशी करने की खबरें आती हैं।

कई क्रांतिकारी, कई नायक, प्रधानमंत्री और मंत्री देने वाला इलाहाबाद निराशा, असफलता और मौत के शिकंजे में कैसे आता जा रहा है? जिस शहर में खाली जेबें लेकर घूमते युवा दुनिया की तमाम मुश्किलों को हराकर जिंदगी की जंग जीत लेते थे, एक कुकर में दाल, चावल और भरते का आलू पका लेने वाला वह जुगाड़ू हुनर हार क्यों मानने लगा है? दाल-भात चोखा खाकर, खुद को मेहनत की भट्ठी में तपाने और देश चलाने वाले युवाओं को जिंदगी बोझ कैसे लगने लगी है?

इलाहाबाद वह जगह है जहां यूपी-बिहार की युवा आंखें सुनहरे कल का सपना गढ़ने आती हैं। आईएएस बनने का सपना, पीसीएस बनने का सपना, प्रोफेसर बनने का सपना, अपने खेतिहर परिवार को गरीबी से निकालने का सपना, अपने भाई-बहनों की जिंदगी संवारने का सपना, अपने मां-बाप को बुढ़ापे में गर्व से भर जाने का सपना… इलाहाबाद में आकर तमाम गंवई आंखें दुनिया देखने लगती हैं।

इलाहाबाद की युवा आंखें बेरोजगारी से सहम गई हैं। इलाहाबाद में तालीम लेने गए युवा निराश होकर खुदकुशी कर रहे हैं। इलाहाबादी युवा निराशा से मर रहा है। मुझे लगता है कि हमारा इलाहाबाद मर रहा है।

जब मैं पहली बार इलाहाबाद गया तो एक सीनियर से पूछा था कि इलाहाबाद की पहचान क्या है? उनका जवाब था, पहले नम्बर पर है यूनिवर्सिटी, फिर हाईकोर्ट और संगम। यही तीन चीजें इलाहाबाद के अत्यंत शांत जीवन की रौनक हैं।

विश्वविद्यालय के इर्द-गिर्द चार-छह किलोमीटर के मोहल्लों की पहचान इन युवाओं से है। शाम को आप सड़कों पर निकलिए तो चाय की दुकानों पर, सब्जी के ठेलों पर, सड़क पर घूमते हुए, सरकार बनाते हुए, सरकार गिराते हुए, दुनिया भर की घटनाओं पर मशवरे करते हुए हजारों युवा दिखते हैं। उन्हें देखकर लगता है कि ये भारत के भविष्य हैं। यह भविष्य बेरोजगारी से नहीं डर सकता।

आप सड़कों पर जिसे दोस्तों के साथ ठहाका लगाते देखेंगे, कभी उसकी आँखों में झांकिए तो आपको असल जिंदगी दिखेगी। आधे महीने तक अपनी खाली जेब का दबाव, किसान पिता की सूख चुकी फसल का दबाव, बीमार मां की पीड़ा का दबाव, बहन की शादी का दबाव, जल्दी नियुक्ति लेकर परिवार को कष्टों से मुक्ति देने का दबाव… वे हंसते हुए युवा अपने धैर्य और लगन से तमाम दुखों को कुचल कर जीत जाते हैं। इलाहाबाद की गलियां ऐसी हजारों अनकही कहानियों की गवाह हैं।

इधर अक्सर खबरें आने लगी हैं कि इलाहाबाद में तैयारी करने आये युवा खुदकुशी कर रहे हैं। इलाहाबाद को और इलाहाबाद में गंगा के तट पर आकार लेने वाले हजारों-हजार युवा सपनों को किसी की नजर लग गई है।

मेरे भाइयों, इलाहाबाद का नाम भले बदल गया हो, सूबे की सरकार भले बदल गई हो, आपकी मुश्किलें भले ज्यादा बड़ी हो गई हों, लेकिन इंसानियत ऐसे तुच्छ बदलावों से हार कहां मानती है?

इलाहाबाद वह धरती है जहां से देश का मुस्तकबिल बनता-बिगड़ता आया है।

यहां आईएएस बनने आया युवा हारता नहीं, वह आईएएस न बन सके तो पीसीएस बनकर, या क्लर्क बनकर ही लौटता है। आपको निराश होने की जगह अपनी शक्ति को पहचानना है। आपको फीनिक्स की तरह उठ खड़े होना है। आपको अपने परिवार के लिए, अपने समाज के लिए, अपने देश के लिए और अपने लिए कुछ करना है।

मेरी प्रिय आत्माओं! इलाहाबाद संघर्ष करने वाले नायकों की धरती है। आपको छोटी-मोटी मुश्किलों से हार नहीं माननी है। आपको हर मुश्किल पर फतह हासिल करनी है। आमीन!

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। लेख उनके फ़ेसबुक वॉल से साभार।)

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