अखिलेश के क्षेत्र में ‘दलित संघर्ष’ के मोर्चे पर फतह के साथ कांग्रेस की बढ़त नए सियासी संकेत देती है
नयी कांग्रेस बनाने के लिए तो ज़मीन पर संघर्ष करना होगा जो दिख रहा है। चाहे कोरोना की पहली लहर के समय हुए पलायन का मुद्दा हो या फिर किसानों का, या फिर दलित वंचित समाज के उत्पीड़न का। पार्टी हर समय संघर्ष की मुद्रा में रही और प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू तो जेल जाने का रिकॉर्ड ही बना रहे हैं। सियासी पंडित वोट के लिहाज़ से कांग्रेस को भले ही कमज़ोर मान रहे हों लेकिन वे यह स्वीकार करते हैं कि आगामी चुनाव में यूपी कांग्रेस प्रियंका गांधी के नेतृत्व में युद्ध में उतर कर पूरी जान लगाने को तैयार है।
● डॉ. प्रमोद कुमार शुक्ल
आगामी चुनाव में पूरी जान लगाने को तैयार कांग्रेस पार्टी जन संघर्ष के मोर्चे पर विपक्ष के दूसरे दलों को लगातार मात देती जा रही है। ‘बाइस में साइकिल’ की हवा पर सवार पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के संसदीय क्षेत्र, आज़मगढ़ में कांग्रेस ने दलित उत्पीड़न के मुद्दे पर एक अहम लड़ाई लड़ी है और एक हद तक जीत भी ली है।
आज़मगढ़ में करीब सप्ताह भर कार्यकर्ताओं के उपवास सत्याग्रह के बाद 12 जुलाई को पार्टी ने ‘दलित पंचायत’ आयोजित किया जिसमें जिले के हजारों दलित शामिल हुए। पंचायत में पंजाब और महाराष्ट्र के मंत्री समेत दलित समाज से ताल्लुक रखने वाले कई वरिष्ठ नेता मौजूद थे। जबकि इस मुद्दे पर न तो अखिलेश या उनकी पार्टी की ओर से कोई कार्रवाई की गयी और न ही दलित राजनीति करने वाली मायावती की तरफ से।
यूपी की राजनीति में विभिन्न दलों द्वारा की जाने वाली पारंपरिक तौर पर जाति-धर्म के गुणा भाग पर आधारित तैयारियों से अलग कांग्रेस ज़मीनी मुद्दों पर लगातार संघर्ष करती नज़र आ रही है। 12 जुलाई को प्रदेश के हर ज़िले में पेट्रोल-डीज़ल के निरंतर बढ़ते दाम और महँगाई के ख़िलाफ़ पार्टी की ओर से ज़ोरदार प्रदर्शन हुए जिसमें लंबे समय से सुस्त पड़े कार्यकर्ता भी सड़क पर दिखे। इससे लोगों को कांग्रेस के नारे और तिरंगे का नया दौर साफ़ दिखने लगा है।
बहरहाल, बात आज़मगढ़ की जो एक नयी परिघटना के तौर पर कांग्रेस की कहानी में नये पन्ने जोड़ गयी। दरअसल, 29 जून को आज़मगढ़ के रौनापार थाने के पलिया गांव में पुलिस ने कई दलितों के घर तोड़ दिया था। आमतौर पर योगी की पुलिस के ऐसे कारनामों पर चुप्पी रहती है या फिर बयानबाज़ी तक मामला सीमित रहता है। लेकिन कांग्रेस ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया। कांग्रेस की जिला इकाई ने घटना के विरोध में स्थानीय ग्रामीणों के आन्दोलन का नेतृत्व किया। प्रदेश संगठन सचिव अनिल यादव के साथ-साथ प्रदेश सचिव संतोष कटाई, यूथ कांग्रेस जिला अध्यक्ष अमर बहादुर यादव, एनएसयूआई सचिव मंजीत यादव और विशाल दुबे ने उपवास सत्याग्रह शुरू कर दिया। इस दौरान पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष विश्वविजय सिंह ने वहां लगातार कैंप कर आंदोलन की पुख्ता बुनियाद तैयार की और उसे कामयाब बनाया।
आजमगढ़ सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का संसदीय क्षेत्र है और इस लिहाज से वहां हुई दलित उत्पीड़न की इस घटना पर उम्मीद की जा रही थी कि वे पीड़ितों से मिलेंगे, कुछ करेंगे, लेकिन उनकी ओर से कोई पहल नहीं हुई। ऐसे में कांग्रेस नेताओं का भूख हड़ताल पर बैठना चर्चा का विषय बन गया। ख़ासतौर पर जाति ही जाति के मुद्दे उठाने वालों के दौर से जूझ रही यूपी की राजनीति में दलितों के मुद्दे पर सभी वर्गों का सक्रिय होना और उपवास का नेतृत्व किसी यादव द्वारा किया जाना भी चर्चा में रहा।
दलित उत्पीड़न के मुद्दों पर दलितों का वोटबैंक रखने का दावा करने वाली मायावती और बीएसपी की चुप्पी तो किसी को अब चौंकाती भी नहीं। दलित भी उनसे संघर्ष की उम्मीद छोड़ चुके हैं, ख़ासतौर पर मोदी-योगी राज में।
कांग्रेस द्वारा आज़मगढ़ में दलित उत्पीड़न को मुद्दा बनाने का असर ये रहा कि प्रशासन बैकफुट पर नज़र आया और उसे उत्पीड़न करने वाले इंस्पेक्टर को निलम्बित और पुलिस क्षेत्राधिकारी को हटाना पड़ा।
कांग्रेस ने 12 जुलाई को ‘दलित पंचायत’ आयोजित कर सरकार और दलित समाज को बड़ा संदेश दिया। पंचायत में प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू के साथ महाराष्ट्र के चर्चित दलित नेता और ऊर्जा मंत्री नितिन राउत, पंजाब सरकार के कैबिनेट मंत्री राजकुमार वैरका और बड़े दलित नेता और पूर्व सांसद उदित राज भी शामिल हुए। इन नेताओं ने छह दिन से उपवास सत्याग्रह पर बैठे नेताओं को जूस पिलाकर अनशन समाप्त कराया।

दलित पंचायत में नितिन राउत ने कहा कि यह कांग्रेस पार्टी के आंदोलन की जीत है कि पलिया में दलित परिवार की कुछ मांगे जिला प्रशासन ने पूरी कर दी है। अभी इस लड़ाई को और व्यापक बनाना है। उदित राज ने कहा कि दलित समाज कांग्रेस के झंडे के नीचे लामबंद होंगे। कांग्रेस ने दलितों के लिए जितना किया, किसी ने नहीं किया है।
पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने कहा कि कांग्रेस पार्टी हर लड़ाई लड़ने को तैयार है। पूरे प्रदेश में दलितों पिछड़ों की लड़ाई को मजबूत किया जाएगा। वहीं उपवास का नेतृत्व करने वाले प्रदेश संगठन सचिव अनिल यादव ने कहा कि आज़मगढ़ को सपा ने चारागाह बना दिया। अब यह नहीं चलेगा। कांग्रेस जल्द ही आज़मगढ़ से दलित स्वभिमान यात्रा निकालेगी।
कांग्रेस की यह पहलक़दमी बता रही है कि आजमगढ़ का आन्दोलन कोई अलग-थलग घटना नहीं है। प्रियंका गाँधी के यूपी प्रभारी बनने के बाद पार्टी संघर्ष के नये मोड में है जिसकी तुलना उस कांग्रेस से नहीं की जा सकती जिसके नेताओं को सत्ता विरासत में मिली थी।
नयी कांग्रेस बनाने के लिए तो ज़मीन पर संघर्ष करना होगा जो दिख रहा है। चाहे कोरोना की पहली लहर के समय हुए पलायन का मुद्दा हो या फिर किसानों का, या फिर दलित वंचित समाज के उत्पीड़न का। पार्टी हर समय संघर्ष की मुद्रा में रही और प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू तो जेल जाने का रिकॉर्ड ही बना रहे हैं।
इस बीच प्रियंका गाँधी का 16 जुलाई को लखनऊ पहुँच रही हैं। वे तीन दिन लखनऊ में रहकर कार्यकर्ताओं और संगठन पदाधिकारियों से मिलेंगी। उनके लखनऊ में स्थायी प्रवास की बात भी हो रही है। इसके लिए उनकी रिश्तेदार दीपा कौल का खाली पड़ा मकान सजधज कर तैयार है। सियासी पंडित वोट के लिहाज़ से कांग्रेस को भले ही कमज़ोर मान रहे हों लेकिन वे यह स्वीकार करते हैं कि आगामी चुनाव में यूपी कांग्रेस प्रियंका गांधी के नेतृत्व में युद्ध में उतर कर पूरी जान लगाने को तैयार है।