भगतसिंह के नायक नेहरू, आधुनिक भारत के ‘प्रोमेथिअस‘

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● कनक तिवारी

वेस्टमिन्स्टर प्रणाली का प्रशासन, यूरो-अमेरिकी ढांचे की न्यायपालिका, वित्त और योजना आयोग, बड़े बांध और सार्वजनिक क्षेत्र के कारखाने, ​शिक्षा के उच्चतर संस्थान, संविधान के कई ढके मुंदे दीखते लेकिन समयानुकूल सैकड़ों उपक्रम हैं जिन्हें बूझने में जवाहरलाल की महारत का लोहा मानना पड़ता है।

नेहरू भारतीय समस्याओं के प्रवक्ता थे। गांधी के बाद राष्ट्रीय संग्राम की चेतना के सबसे बड़े प्रतिनिधि थे। वे जनता के जीवन थे। जनता के संवेगों पर उनके जीवन का कुतुबनुमा घूमता था। उन्होंने स्पष्ट किया है- ‘जन संपर्क आपको नई ज़िन्दगी और निष्ठा प्रदान करता है और लेखक जन भावनाओं की ताकत को पहचानकर ही ज्यादा अच्छा कार्य कर सकता है।‘ वे ‘आधुनिक भारत के प्रोमेथिअस‘ थे।

अशेष क्रांतिकारी नायक भगतसिंह ने सुभाषचंद्र बोस के प्रति आदर रखने के बावजूद भगतसिंह उन्हें एक भावुक युवक नेता की तरह ही तरजीह देते थे। तत्कालीन राजनीति में उनकी दृष्टि में जवाहरलाल नेहरू अकेले ऐसे नेता थे जिन पर इस अग्निमय नायक ने पूरी तौर पर भरोसा किया था।

भगतसिंह ने अपने एक महत्वपूर्ण लेख में जुलाई 1928 में ‘किरती‘ में नेहरू को लेकर अपने तार्किक विचार रखे हैं। भगतसिंह को नेहरू का यह तर्क बेहद पसंद आया जिसमें उन्होंने कहा था ‘‘प्रत्येक नौजवान को विद्रोह करना चाहिए। राजनैतिक क्षेत्र में ही नहीं बल्कि सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक क्षेत्र में भी। मुझे ऐसे व्यक्ति की कोई आवश्यकता नहीं जो आकर कहे कि फलां बात कुरान में लिखी हुई है। कोई बात जो अपनी समझदारी की परख में सही साबित न हो उसे चाहे वेद और कुरान में कितना ही अच्छा क्यों न कहा गया हो, नहीं माननी चाहिए।‘‘

भगतसिंह ने यह एक तरह का प्रमाण पत्र दिया था-

‘‘हमारे नेता किसानों के आगे झुकने की जगह अंगरेज़ों के आगे घुटने टेकना पसंद करते हैं। पंडित जवाहरलाल को छोड़ दें तो क्या आप किसी भी नेता का नाम ले सकते हैं जिसने मज़दूरों या किसानों को संगठित करने की कोशिश की हो। नहीं, वे खतरा मोल नहीं लेंगे। यही तो उनमें कमी है। इसीलिए मैं कहता हूं वे संपूर्ण आज़ादी नहीं चाहते।‘‘

नेहरू ने भी लगातार भगतसिंह की क्रांति का गांधी के विरोध के बावजूद समर्थन किया। अपनी आत्मकथा में नेहरू ने साफ लिखा था ‘‘भगतसिंह अपने आंतकवादी कार्य के लिए लोकप्रिय नहीं हुआ बल्कि इसलिए हुआ कि वह उस वक्त, लाला लाजपतराय के सम्मान और उनके माध्यम से राष्ट्र के सम्मान का रक्षक प्रतीत हुआ। उस पर अनगिनत गाने गाए गए और जो लोकप्रियता उसने पाई, वह चकित करने वाली थी।‘‘

भगतसिंह और साथियों की गिरफ्तारी के बाद जेल में उन पर असाधारण जुल्म किए गए। जवाहरलाल नेहरू भूख हड़ताल पर बैठे कैदियों से मिलने गए और जेल में उनकी तकलीफों को देखा। वे व्यक्तिगत तौर पर सभी से मिले और उनके बुरे हालात पर बहुत संजीदा होकर बोले। कहा, ‘‘मुझे इनसे पता चला है कि वे अपने इरादे पर कायम रहेंगे, चाहे उन पर कुछ भी गुज़र जाए।”

असेम्बली बम कांड में भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त के बयान को नेहरू ने कांग्रेस बुलेटिन में प्रकाशित किया तो कांग्रेसी हलकों में प्रायः इस कार्यवाही की सराहना हुई।

कुछ कांग्रेसियों के विरोध के बावजूद नेहरू ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा ‘‘हमारे राष्ट्रीय तिरंगे झंडे और मज़दूरों के लाल झंडे के बीच न कोई दुश्मनी है और न होनी चाहिए। मैं लाल झंडे का सम्मान करता हूं और उसे इज्ज़त बख्शता हूं क्योंकि यह मज़दूरों के खून और दुःखों का प्रतीक है।‘‘

1942 के बाद विशेषकर 1945 के आसपास जवाहरलाल ने कुछ चिट्ठियां गांधी को लिखीं वे नेहरू के चरित्र की नमनीयता के अनुकूल नहीं हैं। गांधी ने अलबत्ता कहा था कि भविष्य में जवाहर उनकी भाषा बोलेगा। गांधी की गांव की समझ को दरकिनार कर नेहरू ने नगर आधारित भारत का जो ढांचा खड़ा किया उसको गलत लोग हिला रहे हैं।

‘स्मार्ट सिटी‘, ‘बुलेट ट्रेन‘, ‘डिजिटल इंडिया‘, ‘गूगल‘, ‘मेक इन इंडिया‘, ‘एफडीआई‘ वगैरह नए अमेरिकी शोशे नेहरू द्वारा रखी गई नागर संस्कृति पर उठने वाली इमारतें तो हैं लेकिन दोनों में संवेदना का कोई आपसी रिश्ता नहीं है।

14 नवम्बर 1889 अतीत की सतरों पर नेहरू के शिशु प्रेम की वजह से पहला बाल दिवस है। 1964 में 27 मई को मौत के बाद जवाहरलाल का यश इतिहास की थाती है। उनका अनोखापन ताजा भारत में बेमिसाल है। नेहरू में दोष भी ढूंढ़े जा सकते हैं। मौजूदा हुकूमत की विचारधारा सब पापों की गठरी उनके सिर लादकर उसे इतिहास की गंदगी ढोती गाड़ियों में बिठाकर गुमनामी के रेवड़ों में धकेल देना चाहती है। नेहरू यादों और विस्मृति के जंगलों के अंधेरे में जुगनू की तरह दमकते रहते है। अकेले स्वतंत्रता सैनिक हैं जो दक्षिणपंथी हमले का शिकार हैं।

(लेखक प्रख्यात राजनीतिक विचारक और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।)

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