इस सदी के महानतम लेखकों में एक थे पंडित नेहरू
पंडित नेहरू एक आन्दोलनकारी, राजनेता, वैज्ञानिक चेतना से भरे कुशल प्रशासक और आधुनिक हिन्दुस्तान के चितेरे होने के साथ ही इस सदी के महानतम लेखकों में एक थे। उनका लिखा हमारे स्वाधीनता संग्राम के सैनिक द्वारा लिखा अन्दरूनी प्रामाणिक इतिहास है। उनके लेखन में क्लिष्ट दार्शनिक सवाल, बहता भूचाल, एक साथ थपकियां और थपेड़े, रुद्र गायन और अभिसार, उन्मत्त यौवन और गहरा सन्यास सभी कुछ है। उन्होंने आंकड़ों, तथ्यों एवं घटनाओं से लैस होने की अपेक्षा इतिहास में जीवन की सांस फूंकी है। शब्दों से भाषायी नक्काशी करते मनुष्य के अस्तित्व को देखने की अनोखी नई दूरबीन ईजाद की। उनकी आध्यात्मिक रहस्यमयता, बौद्धिक क्रियाशीलता और लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता मिलकर उन्हें बेहतर इंसान बनाती रहीं।
● कनक तिवारी
जवाहरलाल नेहरू संविधान सभा के स्वप्नदर्शी राजकुमार थे, ठीक यूनानी दार्शनिक प्लेटो की अनुकृति में। उद्देशिका संबंधी मूल प्रस्ताव नेहरू ने अपनी नायाब भाषण शैली और मोहक अदाओं के साथ रखा था। उनका भाषण लगभग स्वगत में बोला गया कथन था जो शिलालेख की तरह संविधान सभा के यादघर की डायरी में दर्ज़ है।
1937 की अंतरिम सरकार के चुनावों के बाद भाव विह्वल होकर नेहरू ने भारत के मेहनतकश किसानों और मजदूरों के सपनों का हिन्दुस्तान बनाने का रोमान्टिक आह्वान किया था। वह सपना उनमें पकता, खदबदाता रहा। रवींद्रनाथ टैगोर ने जवाहरलाल को ‘यौवन और अपराजेय सुख को अभिव्यक्त करने वाला ऋतुराज‘ घोषित किया। गुरुदेव की यह उक्ति उनके आकर्षक व्यक्तित्व पर शब्दश: चरितार्थ होती है।
बैंसिल मैथ्यूस ने (जिन्हें जवाहरलाल नेहरू ने अपनी ‘विश्व इतिहास की झलक‘ समर्पित की थी) ठीक ही कहा था कि भविष्य के आईने में नेहरू की तस्वीर एक प्रखर राजनीतिज्ञ के रूप में भले न उभरे, कलम के धनी के रूप में वह सदियों याद किये जायेंगे। ‘भारत की खोज‘ में उन्होंने भारत के अतीत की महानता के गीत गाए हैं। जवाहरलाल की कृतियां संसार में आदर और चाव के साथ पढ़ी जाती हैं।
‘विश्व इतिहास की झलक‘ में उनका वर्णन पेशेवर इतिहासकारों की तरह केवल मृत घटनाओं और स्थलों का उल्लेख मात्र नहीं है। आंकड़ों, तथ्यों एवं घटनाओं से लैस होने की अपेक्षा उन्होंने इतिहास में जीवन की सांस फूंकी है। उनकी मृत्यु के बाद ही उनके लेखक का रूप उभरकर सामने आया।
‘नेहरू अभिनंदन ग्रंथ‘ में टाम विंट्रिगम ने सही बात लिखी है-‘‘भारत की अगली पीढ़ियां अंग्रेज़ी पढ़ने में इस बात पर जिद करेंगी कि वह उन्हें मेकाले या गिबन की अपेक्षा ‘विश्व इतिहास की झलक‘ से पढ़ाई जाये। इससे वे अधिक प्रामाणिक इतिहास तथा अच्छी भाषा सीख सकेंगे।‘ नेहरू इस सदी के महानतम लेखकों में एक थे।
दिवंगता पत्नी कमला को समर्पित ‘आत्मकथा‘ जवाहरलाल नेहरू ने जून 1934 से फरवरी 1935 के बीच लिखी। गांधी की आत्मकथा के बाद यह दूसरी राष्ट्रीय कृति थी जिसमें भारतीय जनता के संघर्ष का आभास परोक्ष रूप से मिलता है।
गांधी के अतिरिक्त जवाहरलाल की यह अद्भुत काव्य-सृष्टि शिल्प और शक्ति में रूसो, गिबन, सेंट आगस्टाइन, जान स्टुअर्ट मिल और फ्रैंकलिन की आत्मकथाओं से टक्कर लेती है। ‘वह हमारे स्वाधीनता संग्राम के सैनिक द्वारा लिखा अन्दरूनी प्रामाणिक इतिहास है।‘
‘आत्मकथा‘ में वह तत्व है जिसे टी.एस. इलियट ने ‘व्यक्तित्व का विलोप‘ कहा है। उन्होंने कारावास की अवधि में ही अपनी विख्यात कृति ‘ए डिस्कवरी ऑफ इंडिया‘ लिखी। छः सौ से अधिक पृष्ठों का यह ग्रंथ उन्होंने पांच महीनों (अप्रैल-सितम्बर 1944) से भी कम अवधि में लिखा।
बेटी इन्दिरा के नाम लिखे नेहरू के पत्र इतिहास अध्ययन के पाठ्यक्रम में पत्थर की लकीर हैं। जेलों में बैठकर किताबों से अधिक स्मृति और श्रुति के सहारे जवाहरलाल ने शब्दों से भाषायी नक्काशी करते मनुष्य के अस्तित्व को देखने की अनोखी नई दूरबीन ईजाद की।
प्रकाशित पुस्तकें –
■ पिता के पत्र : पुत्री के नाम – 1929
■ विश्व इतिहास की झलक (ग्लिंप्सेज ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री) – (दो खंडों में) 1933
■ मेरी कहानी (ऐन ऑटो बायोग्राफी) – 1936
■ भारत की खोज/हिन्दुस्तान की कहानी (दि डिस्कवरी ऑफ इंडिया) – 1945
■ राजनीति से दूर
■ इतिहास के महापुरुष
■ राष्ट्रपिता
■ जवाहरलाल नेहरू वाङ्मय (11 खंडों में लेखों – चिट्ठियों का संग्रह)
उनकी आध्यात्मिक रहस्यमयता, बौद्धिक क्रियाशीलता और लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता मिलकर उन्हें बेहतर इंसान बनाती रहीं। बीसवीं सदी के भारत पर सबसे ज़्यादा असर नेहरू का रहा है। वे अपने जीवनकाल में उपेक्षित नहीं हुए। कभी जवाहरलाल ने खुद को अपने खिलाफ लेख लिखकर तानाशाह कहा था। उनसे प्यार करने को अंगरेज रमणियों और हिन्दुस्तानी सन्यासिनों से लेकर अकिंचन बच्चों तक के किस्से मुख्तसर हैं। भारत से नेहरू को अनोखा और स्पन्दनशील प्यार था।
विश्व इतिहास में शायद ही कोई वसीयत नेहरू की गंगा वसीयत से ज्यादा प्राणवान हो। हमारी स्मृतियां तक बोझ नहीं बन जाएं, इससे उनका इतिहास में ठहरा यश वक्त के आयाम में बहता हुआ अहसास बन जाये, यह वसीयतकार जवाहरलाल का इच्छा लेख है।
गंगा से हम हैं, हमसे गंगा नहीं। गंगा का चलना भारत का चलना है। गंगा लेकिन अभी तक पुरातन होकर भी अप्रासंगिक नहीं बनी। जवाहरलाल की गंगा दास कबीर की चादर की तरह ज्यों की त्यों वक्त के बियाबान में सबको द्रवित करती अपनी पहचान बनाए हुए है। उसके गर्भ में हमारा अतीत आज भी जीवित है। वह हमारे सूखते प्रदूषित वर्तमान का चेहरा है। गंगा हमारे भविष्य का आईना है।
नदी को तो पहचाना जवाहरलाल ने। जवाहरलाल की गंगा हमारी गंगा नहीं है। वह शायद भगीरथ की गंगा भी नहीं। वह भारतीय अंधविश्वासों, दन्तकथाओं और अनुष्ठानों की भी गंगा नहीं है। वह गंगा आखिर है क्या?
नेहरू के लिए गंगा इतिहास का स्निग्ध अहसास, उनके सोच का सम्बल और जीवन रक्त हुई है।
जवाहरलाल इतिहासकार नहीं थे। राजारानी के स्वयंवरों, अनावश्यक युद्धों और घटनाओं की यायावरी की परिभाषा का इतिहास नेहरू से अनछुआ रहा। उनकी प्रज्ञा मनुष्य की छठी इन्द्रिय की तरह इतिहास का अर्क अपने व्यक्तित्व की खुशबू में आत्मसात करती थी।
प्राणवान होना स्थायी होना है जबकि वसीयतें मृत्यु के बाद का अफसाना हैं। इसलिए गंगा एक पहेली, क्लिष्ट दार्शनिक सवाल, बहता भूचाल सभी कुछ है। उसमें एक साथ थपकियां और थपेड़े, रुद्र गायन और अभिसार, उन्मत्त यौवन और गहरा सन्यास सभी कुछ है।
प्रगतिशील इस्लामी मुल्कों और मानवोचित चेहरे के साम्यवादी देशों से मिलकर तीसरी दुनिया का उनका सपना अमेरिकी हेकड़बाजी के मुकाबले सोवियत मैत्री और पंचशील सहित जवाहरलाल का गोदनामा है। नेहरू की मौत के बाद तकिए के पास शंकरदर्शन की पुस्तक, कमला नेहरू की भस्मि और अमेरिकी कवि राॅबर्ट फ्राॅस्ट की कविता की पंक्तियां मिली थीं जिनमें भविष्य के लिए कुछ करने का जज्बा था।
विश्वविख्यात पत्रकार जाॅन गुन्थर के अनुसार इस सदी में नेहरू की टक्कर के लेखक इने-गिने ही हुए हैं। दुर्भाग्य का विषय है कि राजनीति ने एक मौलिक प्रबुद्ध चिन्तक और असाधारण लेखक उससे छीन लिया था।