गंगा में बह रहे शवों के लिए ‘नंगे राजा’ पर उंगली उठाने वाली गुजराती कवयित्री से ख़फ़ा भाजपा
गंगा में बहे शवों को देखकर व्यथित हुई गुजराती कवियत्री पारुल खक्कर ने अपने दुख को चौदह पंक्तियों की एक कविता की शक्ल दी, जिसे लेखकों के साथ-साथ आमजनों ने भी पसंद किया। हालांकि इसके बाद मूल रूप से गैऱ राजनीतिक पारुल सत्तारूढ़ भाजपा की ट्रोल आर्मी के निशाने पर आ गईं।
● दीपल त्रिवेदी
अहमदाबाद। किसी जमाने में दक्षिणपंथी झुकाव रखने वाले साहित्यकारों द्वारा ‘गुजराती साहित्य का अगला आइकॉन’ बताई जाने वाली कवयित्री अब भाजपा आईटी सेल की ट्रोल सेना की ताजातरीन शिकार बनी हैं। इसकी वजह बनी है कवयित्री की वह कविता जो उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा महामारी की दूसरी लहर के निराशाजनक प्रबंधन के कारण भारतीयों पर आयी विपदा पर लिखी है। पारुल खक्कर की कविता शववाहिनी गंगा, जो उन्होंने 11 मई को अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर साझा की थी, गुजराती में लिखा गया एक छोटा मगर बेहद मारक व्यंग्य है, जिसमें प्रधानमंत्री का वर्णन उस ‘राम राज्य’ पर शासन कर रहे ‘नंगे राजा’ के तौर पर किया गया है, जिसमें गंगा ‘शववाहिनी’ का काम करती है।
देखते ही देखते 14 पंक्तियों की इस कविता का कम से कम छह भाषाओं में अनुवाद हो गया और यह कविता उन सभी भारतीयों की आवाज बन गई, जो महामारी द्वारा लाई गई त्रासदियों से दुखी हैं और सरकार की उदासीनता और हालातों के कुप्रंबंधन से आक्रोशित हैं।
लेखिका मृणाल पांडे ने खक्कर की कविता की तारीफ की है। 1973-74 में भ्रष्टाचार के आरोपों पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल को सत्ता से बेदखल करने वाले नवनिर्माण आंदोलन की अध्यक्षा रहीं, मनीषी जानी ने भी इसकी प्रशंसा की है। स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता जयप्रकाश नारायण ने नवनिर्माण आंदोलन की तारीफ इसकी मौलिकता, ऊर्जाशीलता और रचनात्मकता के लिए की थी।
दूसरी तरफ भाजपा की ट्रोल सेना भी सक्रिय हो गई और उसने खक्कर पर अपनी चिरपरिचित गाली-गलौज भरी और स्त्रीद्वेषी टिप्पणियों से हमला बोल दिया है।
सच बयां करने वाली कवयित्री
एक ऐसे राज्य, जहां दो दशक पहले ‘रामराज्य’ की शुरुआत हुई थी से आने वाली खक्कर की कविता, उस भाषा में है, जिसे नरेंद्र मोदी- ‘नंगा राजा’- सबसे अच्छी तरह से जानते हैं, और ये सत्ता को सच का आईना दिखाती है। कविता एक ऐसे निजाम का वर्णन करती है, जहां अपने देश के नागरिकों के प्रति राजा की उदासीनता सबसे सामने आ गई है और चौतरफा लाचारी, गरीबी और कुप्रबंधन है।
यह कविता न केवल सरकार पर वार करती है बल्कि मुख्यधारा के मीडिया, विपक्षी राजनीतिक दलों और दूसरों पर भी प्रहार करती है, जिन्होंने ‘नंगे राजा’ के शासन में चुप रहना और रीढ़विहीन होना चुना है।
इस तथ्य के मद्देनजर कि भारत में महामारी की दूसरी लहर की हकीकतों को कम करके या गलत तरीके से बताया जा रहा है, यहां तक कि उस पर पाबंदी तक लगाई जा रही है, खक्कर की कविता अपने आप में एक जोखिम भरा काम है।
गुजरात एक कोविड-19 हॉटस्पॉट है। यह भाजपा की सरकार बनाने वाला पहला राज्य भी था। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृहराज्य भी है, जिनकी दुनियाभर में कोविड-कुप्रबंधन के कारण आलोचना हो रही है। लेकिन इस कविता को लिखने के पीछे खक्कर का इरादा बिल्कुल भी राजनीतिक नहीं था। वे तो महज भारत की सबसे पवित्र और भारतीय संस्कृति की प्रतीक गंगा नदी में बह रहीं कोविड के शिकार लोगों की सौ के करीब लाशें देखकर व्यथित हो गई थीं।
खक्कर के एक दूर के रिश्तेदार ने बताया कि पारुल खक्कर खुद को पार्ट टाइम कवि और फुल टाइम गृहिणी के तौर पर देखती हैं। उनको जानने वाले लोगों के मुताबिक उनकी रचनात्मकता का सबसे अच्छा क्षण तब आता है जब वे घर साफ कर रही होती हैं या रोटी बना रही होती हैं। बैंक में काम करने वाले उनके पति को उनकी रचनात्मकता और लेखन पर गर्व है।
उनके रिश्तेदार ने बताया, भारत की कई युवतियों की तरह खक्कर, जो जुलाई में 51 साल की होने वाली हैं, ने ग्रैजुएशन के दूसरे वर्ष में कॉलेज छोड़कर शादी कर ली थी और परिवार की शुरुआत की थी। लेकिन उन्हें लिखना हमेशा से पसंद था।
उनकी पहली कविता 1984 में लिखी गई थी, जब वे दसवीं कक्षा में थीं। यह कविता इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व और उनकी हत्या को लेकर थी। उनकी नजरों में यह कविता खास थी, लेकिन शादी होने के बाद उन्होंने लिखना छोड़ दिया। 2011 में खक्कर के बेटे ने उनका परिचय इंटरनेट और सोशल मीडिया से करवाया और उन्होंने कविता के लिए अपने प्रेम की एक तरह से फिर से खोज की।
उनके परिचित का कहना है कि उन्होंने महसूस किया गज़ल लिखना उन्हें ‘बादलों पर चलने’ का एहसास कराता है। अपने ब्लॉग की भूमिका में खक्कर कहती हैं, ‘कविता मेरे जीवन का मौन सहारा रहा है। मेरा पहला प्यार। मैं जीवन की मुश्किलों को पार करने में मदद करने के लिए हमेशा कविता पर भरोसा कर सकती थी। मैं गुजराती, हिंदी और उर्दू में लिखती हूं। मैं ग़ज़ल लिखना पसंद करती हूं। मैं आध्यात्मिक और धार्मिक हूं। मैं खुद को ईश्वर की सबसे अच्छी संतान समझती हूं।’
राजकोट में स्त्रीवाद पर डिजर्टेशन लिख रहे पत्रकारिता के एक छात्र को दिए एक इंटरव्यू में खक्कर ने इस बात पर जोर दिया था कि वे ठेठ किस्म की स्त्रीवादी नहीं हैं और उनकी सबसे बड़ी खुशी परिवार के आसपास रहना और घरेलू काम करना है।
दक्षिणी खेमे की आइकॉन
विरोध की कविता कभी भी पारुल की विधा नहीं रही, लेकिन राम राज्य में गंगा के शववाहिनी बन जाने की उनकी दमदार कविता ने समकालीन भारत की दर्दनाक हकीकत को बयान किया है। अभी तक इसका अनुवाद असमिया, हिंदी, अंग्रेजी और तमिल में हो चुका है और भोजपुरी, मलयालम और बंगाली अनुवाद भी हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर साझा किया गया इसका हर अनुवाद वायरल हो गया है।
इस कविता की रचना से पहले तक खक्कर बेहद ध्रुवीकृत गुजरात राज्य के दक्षिणपंथी झुकाव वाले साहित्यकारों की आंखों का तारा थीं।
राजनीतिक इतिहासकार और 22 साल की उम्र से ही आरएसएस और इसके गुजराती मुखपत्र साधना से जुड़े रहे विष्णु पांड्या- जिन्हें मोदी के मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पद्मश्री दिया गया था- ने खक्कर को ‘गुजराती कविता का अगला बड़ा आइकॉन’ कहा था।
खक्कर ने कम से कम छह कविताएं श्रीनाथ जी पर लिखी है। श्रीनाथ जी भगवान कृष्ण के एक रूप हैं, जिनकी पूजा गुजरात में वैष्णवों द्वारा की जाती है। उन्होंने राधा और कृष्ण पर भी कविताएं लिखी हैं, जो लोकप्रिय गुजराती गाने बन गई हैं। लेकिन कभी मंच पर खक्कर की मुक्त कंठ से प्रशंसा करने वाले पांड्या ने भाजपा की ट्रोल सेना के खिलाफ खक्कर का बचाव नहीं किया है।
भाजपा की ट्रोल सेना ने ‘राष्ट्रद्रोही’, ‘अपरिपक्व’ और हिंदू विरोधी जैसे शब्दों से खक्कर पर हमला किया और उन पर ‘खराब चरित्र वाली और नैतिक मूल्यविहीन औरत’ का तगमा जड़ दिया।
खक्कर के सोशल मीडिया एकाउंट और उनकी कविता को शेयर करने वाले एक लाख से ज्यादा लोगों के एकाउंट पर 28,000 से ज्यादा गाली- गलौज वाली और स्त्रीद्वेषी टिप्पणियां की जा चुकी हैं।
ऐसा लगता है कि ये सारी टिप्पणियां भाजपा की आईटी सेल की तरफ से पोस्ट की गई हैं, जो सरकार का विरोध करने वाले किसी भी व्यक्ति को परेशान करने के लिए, चाहे वह राजनीति से जुड़े हों या नहीं, कुख्यात है। इसके कारण खक्कर को फेसबुक और इंस्टाग्राम पर अपने पब्लिक एकाउंटों को पर्सनल लॉक्ड एकाउंटों में बदलना पड़ा है।
गुजरात से भाजपा के एक नेता ने बताया कि एक गैर राजनीतिक कवि को उनकी पार्टी द्वारा जिस तरह से ट्रोल किया गया है, वह काफी खराब था और इसने इस बात को और उजागर करने का काम किया कि पार्टी जमीनी हालात से किस कदर कटी हुई है। उन्होंने कहा कि कविता में इस्तेमाल किए गए ‘बिल्ला रंगा’ और ‘राजा नंगा’ शब्द उन पर किए जा रहे हमले का मुख्य कारण हैं।
खक्कर के कुछ नजदीकी दोस्त हैं, लेकिन उनसे सिर्फ सामाजिक परिचय रखने वाले भी यह दावा करते हैं कि ‘पारुल एक अंतर्मुखी और दिल से काफी अच्छी महिला हैं।’ उनका कहना है कि वे अपने ‘हिंदू होने पर गर्व करने वाली’ एक औसत गुजराती हैं, जिन्होंने मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर उनकी खुलकर प्रशंसा की थी।
राजनीतिक तौर पर उनका परिवार भाजपा की तरफ झुका हुआ है। राजकोट में रहने वाले एक सुपरिचित कवि ने पहचान उजागर न करने की इच्छा जताते हुए कहा कि खक्कर कभी भी भाजपा विरोधी नहीं रही हैं। लेकिन गंगा में तैर रहे शवों की तस्वीरों ने उनके अंदर के कवि को झकझोर दिया।
उनके एक अन्य मित्र का कहना है कि उनका इरादा कोई राजनीतिक बयान देने का नहीं था। वे सिर्फ भारतीय नागरिकों के कष्टों को देखकर हुए अपने दुख को शब्द देना चाहती थीं। एक कवि, जो पहले पत्रकार हुआ करते थे, ने कहा, ‘किसी प्रकार के विरोध को आवाज देने के लिए गुजरात एक सुरक्षित स्थान नहीं है। हमें बहुत कम लोग जानते हैं।’
गुजरात को काफी बारीक नजर से देखने वाली उवर्शी कोठारी ने कहा, ‘कोई कवि वही लिखता है, जो वह महसूस करता है और वह खुद को साहसी नहीं समझती है। उसके लिए यह बस उसके विचारों की अभिव्यक्ति का मामला है।’ लेकिन साथ ही उन्होंने यह जोड़ा, ‘लेकिन जो चीज सबसे ज्यादा परेशान करने वाली है, वह है इस मामले में गुजरात द्वारा की गई शाब्दिक हिंसा। मैं यह नहीं कहूंगी कि उनको गाली देने वाला हर व्यक्ति वेतनशुदा भाजपाई ट्रोल है, लेकिन गुजरात में जहर इतने भीतर तक धंसा हुआ है कि यह राज्य के सामाजिक ताने-बाने में घुल गया है।
कवयित्री को समर्थन
खक्कर द्वारा शववाहिनी गंगा प्रकाशित करने के दो दिन बाद भाजपा समर्थक ट्रोल्स ने यह घोषणा की कि कवयित्री ने अपने फेसबुक पेज से कविता हटा ली है। लेकिन सच यह है कि वह कविता आज भी वहां है और चूंकि उनका एकाउंट अब प्राइवेट है, इसलिए इसे सिर्फ उनके दोस्त देख सकते हैं। और खक्कर के दोस्तों का कहना है कि वे इस बात को लेकर दृढ़निश्चयी हैं कि वे इस कविता को नहीं हटाएंगी।
इस बीच गुजराती लेखक मंडल, जिसमें गुजरात के एक हजार से ज्यादा कवि हैं, बोलने की हिम्मत करने वाली कवि के समर्थन में बयान दिया है। गुजराती लेखक मंडल की अध्यक्ष और नवनिर्माण आंदोलन की पूर्व अध्यक्षा मनीषी जैन ने 13 मई का फोरम पर एक सूचना जारी की जिसमें अपरोक्ष तरीके से भाजपा आईटी सेल के ट्रोल्स का जिक्र किया गया है।
उस विज्ञप्ति में कहा गया, ‘पारुल खक्कर को उनकी कविता के कारण गाली गलौज और भारी ट्रोलिंग का शिकार बनाया जा रहा है। सोशल मीडिया पर ऐसे खास तरीके के लोग भरे हुए हैं जो गाली-गलौज वाली भाषा में उन पर निशाना बना रहे हैं और उन्हें अपनी अभिव्यक्ति पर अंकुश लगाने के लिए विवश कर रहे हैं। लेखक मंडल इसकी और एक समूह द्वारा लेखक की अभिव्यक्ति की आजादी को दबाने की कोशिशों की आलोचना करता है।’
जानी और गुजराती लेखक मंडल के सचिव मनहर ओझा ने सोशल मीडिया पर ‘आई सपोर्ट पारुल खक्कर’ का हैशटैग चलाया है और हर भारतीय से उनके पक्ष में खड़े होने की अपील की है।
मूल गुजराती कविता –
એક અવાજે મડદાં બોલ્યાં ‘સબ કુછ ચંગા-ચંગા’
રાજ, તમારા રામરાજ્યમાં શબવાહિની ગંગા.
રાજ, તમારા મસાણ ખૂટયા, ખૂટયા લક્કડભારા,
રાજ, અમારા ડાઘૂ ખૂટયા, ખૂટયા રોવણહારા,
ઘરેઘરે જઈ જમડાંટોળી કરતી નાચ કઢંગા
રાજ, તમારા રામરાજ્યમાં શબવાહિની ગંગા.
રાજ, તમારી ધગધગ ધૂણતી ચીમની પોરો માંગે,
રાજ, અમારી ચૂડલી ફૂટે, ધડધડ છાતી ભાંગે
બળતું જોઈ ફીડલ વગાડે ‘વાહ રે બિલ્લા-રંગા’!
રાજ, તમારા રામરાજ્યમાં શબવાહિની ગંગા.
રાજ, તમારા દિવ્ય વસ્ત્ર ને દિવ્ય તમારી જ્યોતિ
રાજ, તમોને અસલી રૂપે આખી નગરી જોતી
હોય મરદ તે આવી બોલો ‘રાજા મેરા નંગા’
રાજ, તમારા રામરાજ્યમાં શબવાહિની ગંગા.
पारुल खक्कर की कविता का रीता और अभिजित कोठारी द्वारा किया गया अंग्रेजी अनुवाद –
:Lord, your crematoriums are too few; fewer the wood for pyres
Lord, our pall-bearers are too few, fewer yet the mourners
Lord, in every home Yama performs the dance macabre
Lord, in your ideal realm the hearse is now the Ganga
Lord, your smoke belching chimneys now seek respite
Lord, our bangles are shattered, shattered are our hearts
The fiddle plays while the towns are ablaze, “Wah, Billa-Ranga”
Lord, in your ideal realm the hearse is now the Ganga
Lord, your clothes are divine, divine is your radiance
Lord, the town entire sees you in your true form
If there be a real man here, come forward and say
“The emperor has no clothes”
Lord, in your ideal realm the hearse is now the Ganga.
इलियास शेख द्वारा किया गया हिंदी अनुवाद –
एक साथ सब मुर्दे बोले ‘सब कुछ चंगा-चंगा’
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा
ख़त्म हुए शमशान तुम्हारे, ख़त्म काष्ठ की बोरी
थके हमारे कंधे सारे, आँखें रह गई कोरी
दर-दर जाकर यमदूत खेले
मौत का नाच बेढंगा
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा
नित लगातार जलती चिताएँ
राहत माँगे पलभर
नित लगातार टूटे चूड़ियाँ
कुटती छाति घर घर
देख लपटों को फ़िडल बजाते वाह रे ‘बिल्ला-रंगा’
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा
साहेब तुम्हारे दिव्य वस्त्र, दैदीप्य तुम्हारी ज्योति
काश असलियत लोग समझते, हो तुम पत्थर, ना मोती
हो हिम्मत तो आके बोलो
‘मेरा साहेब नंगा’
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा
सलिल त्रिपाठी द्वार कविता का किया गया अंग्रेजी अनुवाद –
Don’t worry, be happy, in one voice speak the corpses
O King, in your Ram-Rajya, we see bodies flow in the Ganges
O King, the woods are ashes,
No spots remain at crematoria,
O King, there are no cares,
Nor any pall-bearers,
No mourners left
And we are bereft
With our wordless dirges of dysphoria
Libitina enters every home where she dances and then prances,
O King, in your Ram-Rajya, our bodies flow in the Ganges
O King, the melting chimney quivers, the virus has us shaken
O King, our bangles shatter, our heaving chest lies broken
The city burns as he fiddles, Billa-Ranga thrust their lances,
O King, in your Ram-Rajya, I see bodies flow in the Ganges
O King, your attire sparkles as you shine and glow and blaze
O King, this entire city has at last seen your real face
Show your guts, no ifs and buts,
Come out and shout and say it loud,
“The naked King is lame and weak”
Show me you are no longer meek,
Flames rise high and reach the sky, the furious city rages;
O King, in your Ram-Rajya, do you see bodies flow in the Ganges?