पूर्वांचल के विकास पुरुष वीर बहादुर सिंह
गोरखपुर जैसे कस्बाई शहर को विश्व पटल पर स्थापित करने का सपना पाले वीरबहादुर सिंह द्वारा शुरू की गई अनेक परियोजनाओं का अभी तक अधूरापन यहां के राजनीतिक नेतृत्व को जोर जोर से झिझोड़ रहा है। उनका सपना था कि गोरखपुर शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढे। किसान-मजदूर खुशहाल हो। नौजवान के हाथ में काम हो। गरीब किसान परिवार में पैदा होने के नाते किसान, मजदूर और नौजवानों के बेरोजगारी की पीड़ा उन्हें बखूबी पता थी। आज 18 फरवरी को उनकी जयंती पर उन्हें शत शत नमन।
● आलोक शुक्ल
वीर बहादुर सिंह। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री। भारत संघ के पूर्व संचार मंत्री। अब हमारे बीच सशरीर तो नही हैं लेकिन लोगो के दिलों में बदस्तूर कायम हैं। उन्हें गए तैतीस बरस हो गए हैं लेकिन पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि अभी कल ही तो आये थे और मेयर पवन बथवाल (तत्कालीन) और एमएनए को कह कर गए हैं कि “शहर में पार्कों, सड़कों और अन्य नागरिक सुविधाओं के काम पूरा करने में देर न करो। जल्द पूरा करो। समय नहीं है, अभी बहुत काम करना है। जल्दी करो भाई।”
इस धरा पर अपना किरदार निभाकर वर्ष 1989 में 30 मई के दिन वे इहलोक से चले गए। वे चले भले ही गए लेकिन उनकी आत्मा यहीं है और यहां की पीड़ा से अब भी वैसे ही बावस्ता है जैसे तब थी। क्योंकि,
वीरबहादुर कोई हुक्मरान नहीं, जननेता हैं। हैं इसलिए कि वीरबहादुर मरे नहीं हैं। वे कभी मर नहीं सकते। उनके जैसे लोग मरा भी नहीं करते। तभी तो गोरखपुर, जहां की माटी में वे जन्मे, पले बढ़े वहां के कण कण में, लोगों की धड़कन में उनकी मौजूदगी अब भी तारी है।
गोरखपुर जैसे एक कस्बाई शहर को विश्व पटल पर स्थापित करने का सपना पाले वीरबहादुर सिंह के शुरू किए अनेक परियोजनाओं का अभी तक अधूरापन यहां के राजनीतिक नेतृत्व को जोर जोर से झिझोड़ रहा है। चुनौती दे रहा है। उनका सपना था कि गोरखपुर शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढे। किसान-मजदूर खुशहाल हो। नौजवान के हाथ में काम हो। गरीब किसान परिवार में पैदा होने के नाते किसान, मजदूर और नौजवानों के बेरोजगारी की पीड़ा उन्हें बखूबी पता थी। उन्होंने जनपद के सुदूर दक्षिण हरिहरपुर जैसे गांव में पशुओं को बीमारी से बचाने के लिए जैविक औषधि उत्पादन संस्थान और सहजनवा इलाके में उद्योगों का जाल बिछाने के लिये गीडा व खजनी में कम्बल कारखाना की नींव डाली।
गोरखपुर शहर को नगर महापालिका का दर्जा तथा नगर निगम एव विकास प्रधिकरण बनाकर एक तरफ जहां शहरी विकास को गति दी वहीं कई तहसीलों, ब्लाकों की स्थापना कर सामान्य जन की प्रशासन तक आसान पहुंच बनायी। विशाल रामगढ़ झील को वैश्विक स्तर पर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना उनका ड्रीम प्रोजेक्ट था। ये उनके कामों की कुछ बानगी भर है। वैसे तो जिले में जिधर देखेंगे वीरबहादुर सिंह का सपना आपको ललकारता मिलेगा। अपने किये कामों, पूर्वांचल को विकसित करने के लिए देखे सपनों की बदौलत वीरबहादुर सिंह पूर्वांचली दिलो में हमेशा कायम रहेंगे।
पूर्वांचल की राजनीति में वीर बहादुर सिंह का उभार
गोरखपुर की राजनीति में भले ही अभी गोरखनाथ मंदिर का प्रभाव है लेकिन एक दौर में यहां बाबा राघवदास (देवरिया) की मजबूत छवि थी। बाबा राघवदास को पूर्वांचल का गांधी कहा जाता था। इसके बाद प्रोफ़ेसर शिब्बन लाल सक्सेना और समाजवादी उग्रसेन (देवरिया) का उभार हुआ। गोरखपुर यूनिवर्सिटी में पंडित सूरतनारायण मणि त्रिपाठी और महंत दिग्विजय नाथ की राजनीतिक लड़ाई चर्चा में रही। यादवेन्द्र सिंह ने रामायण राय को हराया था और मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह को राम कृष्ण द्विवेदी हराकर गोरखपुर की राजनीति में चमक चुके थे।
वीर बहादुर छात्र राजनीति से निकले थे। पढ़ाई के दौरान ही यूथ कांग्रेस में सक्रिय हो गए थे। 1980 में वो वीपी सिंह की सरकार में मंत्री बन गये। फिर 24 सितम्बर 1985 से 24 जून 1988 के बीच यूपी के सीएम रहे। बाद में राजीव गांधी की कैबिनेट में संचार मंत्री बने।
तब तक वीर बहादुर बहुत बड़े नेता तो नहीं बने थे लेकिन उनका नाम भी चर्चा में आना शुरू हो गया था। बड़ा दांव उन्होंने खेला 1974 में। विधान परिषद के चुनाव होने थे। हरिशंकर तिवारी मैदान में थे। स्थानीय कांग्रेसी उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं करते थे। वीर बहादुर सिंह ने उनके खिलाफ किसी को चुनाव लड़वाने की ठानी और बस्ती के शिवहर्ष उपाध्याय को हरिशंकर तिवारी के खिलाफ उतार दिया। शिवहर्ष ने हरिशंकर तिवारी को ग्यारह वोटों से हरा दिया। हरिशंकर तिवारी और वीर बहादुर के बीच ठन गई और ये दूरी बनी रही। लेकिन ये एक तरह से वीर बहादुर की पहली बड़ी जीत थी। यहां से वीर बहादुर सिंह के कदम तेजी से बढ़े तो फिर उनके जीवित रहते उन्हें कोई पछाड़ नहीं सका।