यूपी से लेकर हरियाणा और राजस्थान तक किसान महापंचायतों में रही जबरदस्त भीड़

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पिछले करीब हप्ते भर से यूपी, हरियाणा, राजस्थान के विभिन्न जिलों में केंद्र सरकार के नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आयोजित हो रही किसान महापंचायतों में जुुट रही भीड़ से केंद्र सरकार के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ा दी हैं। रविवार को महापंचायतों को लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा का माहौल ख़ासा गर्म रहा।

● पूर्वा स्टार ब्यूरो 

केंद्र सरकार के नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ रविवार को पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा का माहौल ख़ासा गर्म रहा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अमरोहा के अलावा हरियाणा के चरखी दादरी और मेवात में किसान महापंचायतें हुईं और इनमें जितनी बड़ी संख्या में लोग उमड़े हैं, वह यह बताने के लिए काफी है कि इन राज्यों में किसान कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ लंबी लड़ाई के लिए तैयार हो चुके हैं। महापंचायतों में उमड़ रही किसानों की भीड़ से केंद्र सरकार के भीतर बेचैनी बढ़ती जा रही है।

चरखी दादरी में हुई किसान महापंचायत में 50 हज़ार से ज़्यादा लोग जुटे। संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले हुई महापंचायत में किसान नेता दर्शन पाल, बलबीर सिंह राजेवाल और राकेश टिकैत पहुंचे। 

‘क़ानून वापस होने तक करेंगे आंदोलन’ 

चरखी दादरी में राकेश टिकैत ने एक बार फिर अपनी बात दोहराई कि जब तक ये कृषि क़ानून वापस नहीं होंगे तब तक किसान अपने घर वापस नहीं जाएंगे। टिकैत ने किसान आंदोलन का समर्थन करने के लिए खाप पंचायतों और उनके नेताओं की तारीफ़ की और कहा कि सरकार को इन क़ानूनों को वापस लेना ही होगा। उन्होंने एमएसपी को लेकर क़ानून बनाने और गिरफ़्तार किए गए किसान नेताओं को रिहा करने की भी मांग की। उन्होंने कहा कि ये जन आंदोलन है और ये फ़ेल नहीं होगा। 

‘खट्टर सरकार को उखाड़ फेंको’

दर्शन पाल ने कहा कि किसानों का आंदोलन खेती में चल रहे संकट के कारण खड़ा हुआ है। उन्होंने हरियाणा की खट्टर सरकार को किसान विरोधी बताते हुए सत्ता से उखाड़ने की अपील की। बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि हरियाणा सरकार पर दबाव बनाए जाने की ज़रूरत है और इसका सीधा असर केंद्र सरकार पर होगा। इस सभा में दादरी के निर्दलीय विधायक और सांगवान खाप के मुखिया सोमबीर सांगवान भी मौजूद रहे। सोमबीर ने पिछले साल दिसंबर में कृषि क़ानूनों के मुद्दे पर हरियाणा की खट्टर सरकार से समर्थन वापस ले लिया था।

किसानों के आंदोलन का लगातार विस्तार होते देख विपक्षी सियासी दल भी आंदोलन के समर्थन में आगे आ चुके हैं। कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी, एनसीपी, राष्ट्रीय लोकदल, शिव सेना, इंडियन नेशनल लोकदल, शिरोमणि अकाली दल, समाजवादी पार्टी सहित कई दलों के नेताओं ने किसान आंदोलन को समर्थन दिया है।

मेवात की किसान महापंचायत

मेवात के सुनहेड़ा बॉर्डर पर हुई किसान महापंचायत में हरियाणा के साथ ही राजस्थान के किसानों और आम लोगों ने भी भाग लिया। किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी भी महापंचायत में पहुंचे। इसमें किसान नेताओं ने पूरी ताक़त से कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ने का आह्वान किया। हरियाणा-राजस्थान के खेड़ा और शाहजहांपुर बॉर्डर पर लंबे वक़्त से किसानों का धरना चल रहा है।

अमरोहा में महापंचायत

इधर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अमरोहा के मुकारी गांव में हुई राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) की ओर से किसान महापंचायत का आयोजन किया गया। आरएलडी के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी ने कहा कि किसानों को आज जिस तरह की मुश्किलों से जूझना पड़ रहा है, बीजेपी को न सिर्फ़ 2022 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बल्कि अगले आम चुनाव में भी इसके राजनीतिक नतीजे भुगतने होंगे। जयंत ने कहा कि उनकी पार्टी इस तरह की किसान महापंचायतों का आयोजन करती रहेगी। 

2013 में मुज़फ्फरनगर के सांप्रदायिक दंगों के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजनीतिक ताक़त खो चुकी आरएलडी किसान आंदोलन के जरिये अपने सियासी आधार को मजबूत करने में जुटी है।

कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुज़फ्फरनगर के बाद बाग़पत, मथुरा, बिजनौर और शामली में महापंचायत हो चुकी हैं। शामली में तो प्रशासन की ना के बाद भी महापंचायत हुई और बड़ी संख्या में लोग पहुंचे। इसके अलावा हरियाणा के जींद और राजस्थान के दौसा और मेहंदीपुर बालाजी में भी किसान महापंचायतों का आयोजन किया जा चुका है।

इन महापंचायतों में उमड़ी भीड़ से बीजेपी नेता और केंद्र सरकार परेशान है। अगर किसान आंदोलन लंबा चलता है, जिसका राकेश टिकैत संकेत दे चुके हैं तो निश्चित रूप से मोदी सरकार को सियासी नुक़सान तो होगा ही देश की अर्थव्यवस्था पर भी इसका असर पड़ेगा क्योंकि सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर आंदोलन के कारण पंजाब और हरियाणा में कारोबार प्रभावित हो रहा है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह किसान आंदोलन के कारण पंजाब की माली हालत ख़राब होने और इससे राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर होने की बात कह चुके हैं। 

इन महापंचायतों से केंद्र सरकार तक एक संदेश सीधा जा रहा है कि वह इनमें उमड़ रही भीड़ के बाद कृषि क़ानूनों को लेकर अपने स्टैंड पर विचार करे। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का संसद में यह कहना कि यह एक राज्य का आंदोलन है, इन महापंचायतों में आ रही भीड़ से ग़लत साबित हो जाता है। 

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