क्या हस्तिनापुर के षडयंत्र भरे चक्रव्यूह में इस बार फंसा ‘अभिमन्यु’ जीवित निकलेगा?

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षड्यंत्र दिल्ली (हस्तिनापुर) का चरित्र है, स्वभाव है। जो पांच हजार सालों से ज्यादा वक्त से कायम है। समय ने बहुत कुछ बदला। इतिहास, भूगोल, यमुुना का बहाव के साथ उसके पानी का रंग भी। बदलती तारीखों के साथ इसका नाम बदला, सल्तनत बदली लेकिन चरित्र न बदला। तब भी सत्ता के लिये साजिशें रची जाती थीं, अब भी वही हो रहा है। यहां आज भी चारो ओर षड्यंत्रों का बोलबाला है। रोज चौसर बिछता है और नयी नयी चालों में पाण्डव फंसाये जाते हैं। नित्य अभिमन्यु वध होता है। 

● आलोक शुक्ल

गांवों में पुरनिया लोग अक्सर कहते हैं कि “दिल्ली षड्यंत्रों की राजधानी है।” पुरनियों की ये बात सोलह आने सच है। दिल्ली का यही तो इतिहास है सर्वदा से। कोई साढ़े पांच हजार साल पहले कौरवों ने यहीं बैठकर पाण्डवों के खिलाफ कैसे कैसे षड्यंत्र रचे। तब इसका नाम हस्तिनापुर था। कुरुक्षेत्र का इलाका भी लगा हुआ है जहां तत्कालीन सत्ताधीशों ने चक्रव्यूह में घेरकर अभिमन्यु का वध किया था। दिल्ली के मुगलिया सल्तनत के षड्यंत्रों से इतिहास की किताबें भरी पड़ी हैं। बादशाह शाहजहाँ अपने ही पुत्र से बन्दी बनाया जाता है। दाराशिकोह अपने छोटे भाईयों की साजिशी जाल में फंसकर दर दर भटकता है, अकेले लड़ता है और मारा जाता है। तख्ते ताउस पर कब्जे के लिये हुई औरंगजेबी तिकड़मों और सारी हदों को तोड़ती क्रूरता को कोई कैसे भूल सकता है भला।

समय ने बहुत कुछ बदला। इतिहास भूगोल सब। यमुुना का बहाव भी बदला और उसके पानी का रंग भी। एक लंबे कालखंड में हस्तिनापुर दिल्ली में बदल गयी। बदलती तारीखों के साथ इसका नाम बदला, सल्तनत बदली लेकिन चरित्र न बदला। तब भी सत्ता के लिये साजिशें रची जाती थीं, अब भी वही हो रहा है। यहां आज भी चारो ओर षड्यंत्रों का बोलबाला है। रोज चौसर बिछाया जाता है। नयी नयी चालों में पाण्डव फंसाये जाते हैं। नित्य अभिमन्यु वध होता है। कभी ताजदार तो कभी बेबस शाहजहाँ, सिंहासन के लिए भागता लड़ता हांफता मरता दाराशिकोह और तिकड़मी व क्रूर औरंगजेब देखे जा सकते हैं। षड्यंत्र दिल्ली का चरित्र है, स्वभाव है। जो पांच हजार सालों से ज्यादा वक्त से कायम है। 

इन बातों के बीच एक तथ्य ये भी है कि दिल्ली के तमाम षड्यंत्रों से पाण्डवों को छोड़कर दूसरा कोई उबर नहीं सका। पाण्डव भी तब पार पा सके जब वे हस्तिनापुर से बाहर निकले। अपनी सेना संगठित की। प्रजा को कौरवों की असलियत से वाकिफ कराया। दुर्योधन, शकुनि आदि के षड्यंत्रों को उजागर किया। प्रजा को भीष्म पितामह, विदुर और द्रोणाचार्य आदि की लाचारगी बतायी। तब जनता का साथ मिला, कृष्ण जैसा रणनीतिकार मिला।

अब बात करते हैं दिल्ली के मौजूदा षडयंत्रों की। दिल्ली के इन षड्यंत्री चालों की नयी शिकार अभी देश की ‘प्रजा’ है। जो प्रजा स्वयं को दिल्ली का भाग्यविधाता समझने के गुमान में इठलाती फिरती है वही प्रजा अभी भाग्यविधाता बन बैठी दिल्ली के चौसर की चालों में फंसी छटपटा रही है। दिल्ली की ‘गोदी’ में बैठे धन्ना सेठों की लपलपाती जीभों को काट देने को तैयार ‘अभिमन्यु’ (किसान) को चक्रव्यूह में फंसाकर मार डालने की साजिशें भी महाभारत सरीखी ही हैं।

अब जरा 26 जनवरी की घटना पर नजर दौड़ाइये। दो महीने से दिल्ली के बार्डर्स पर धरना बिल्कुल शांतिपूर्वक चल रहा था। कहीं कोई हिंसा नहीं, उपद्रव नहीं। ऐसा नहीं है कि हिंसा फैलाने के प्रयास नहीं हुए। ऐसा कई बार हुआ कि कुछ बाहरी लोगों ने उपद्रव करना चाहा लेकिन किसानों की सक्रियता की वजह से सफल नहीं हो सके। दिल्ली सल्तनत की ओर से आंदोलन तोड़ने के भी कई प्रयास हुए। पर जत्थेबंदिया नहीं टूटी। फिर किसानों ने गणतंत्र दिवस के मौके पर ट्रैक्टर परेड की घोषणा की तो दिल्ली के मनसबदारों की बांछें खिल गयीं। 

यह समझने की बात है कि जब खुफिया एजेंसियों और दिल्ली पुलिस ने 26 जनवरी को सुरक्षा का खतरा बताकर ट्रैक्टर परेड की इजाजत देने से मना कर दिया तो गृह मंत्रालय ने परेड की इजाजत कैसे और क्यों दे दी। इससे भी आगे, शनि देओल के चीफ इलेक्शन कैम्पेनर व इलेक्शन एजेंट ने एक पूूर्व गैंगस्टर के साथ पुलिस के रूट से अलग रूट लेने का ऐलान किया, लेकिन उसको पकड़ा नहीं गया।

अब आप समझ गए होंगे कि खुफिया एजेंसियों और पुलिस के रोकने के बावजूद ट्रैक्टर परेड की इजाजत क्यों दी गई। उस दिन जानबूझ कर कम फोर्स रखी गई। उपद्रव के दौरान कई दर्जन पुलिसकर्मी आराम करते पाए गए। जिस लाल किले पर परिंदा पर नहीं मार सकता, वहां पर एक भीड़ को जाने दिया गया। गाजीपुर बॉर्डर पर बैरीकेड्स तोडने के बाद भीड़ को सीधा आईटीओ पर रोकने का दिखावा किया गया, तब तक भीड़ लाल किला पहुंच चुकी थी। लाल किले का गेट उनके स्वागत में खुला था।

अब कोई ये न समझाए कि पुलिस और सुरक्षाबल बड़े लाचार हैं। वे लाचार हैं क्योंकि उनसे जो कहा जाता है वही करते हैं। ऐसा संभव नहीं है कि राजधानी में कुछ हजार की भीड़ कहीं भी घुस जाए। 

सवाल ये भी है कि यदि परेड के दिन सुरक्षा के लिए फोर्स की कमी थी तो अगले ही दिन बॉर्डर पर इतनी पुलिस कहां से आ गई? लाल किले पर झंडा लगाने वाला आराम से उतर आया तो पुलिस उसे पकड़ने की जगह झंडा उतारने खंभा चढ़ रही थी। वह आराम से चला गया। वहां तक पहुंचे उपद्रवी आराम से टहलते हुए वापस आए। किसान नेता राकेश टिकैत जब कहते हैं कि किसानों के साथ छल हुआ है और 26 जनवरी को जो हुआ, वह आंदोलन को कुचलने का षडयंत्र था तो लोग उनकी बातों पर यूं ही यकीन नहीं कर लेते। लोगों का भरोसा देख पता चलता है कि लोग खुद भी ऐसा ही सोच समझ रहे हैं।

‘दिल्ली’ की हर चाल को ध्यान से देखिये। उसके फायदा-नुकसान का गुणा गणित लगाइये, अल्पकालिक और दूरगामी दोनों प्रभावों का विश्लेशण करिये और समझने की कोशिश करिये कि आपकी कीमत पर किसको क्या दिया लिया जा रहा है? ये देखिये कि आपसे कोई नारा लगवाते हुये दिल्ली ने आपका कुछ चुरा तो नहीं लिया? ध्यान इसपर भी रहे कि कल आपके पास क्या था जो आज कहीं खो गया सा लगता है? हां, यह सब करते-सोचते-समझते समय अपने भीतर जड़ जमाये ‘सिंहासन’ के प्रति भक्तिभाव को कुछ समय के लिए बाहर रख दीजिये। थोड़ी देर के लिये ही सही, भूल जाइये कि आप भीष्म हैं और सिंहासन की रक्षा के मर्यादा में बंधे हैं। यदि आप ऐसा कर सके तो आपको दिल्ली और उसका चरित्र यकीनन समझ में आयेगा।

ये सही है कि मौजूदा हालात से निराशा झलक रही है, कहीं न कहीं लाखों नागरिको की तरह हताश मैं भी हूं लेकिन इतना जान लीजिए कि जीत सदैव धर्म सत्य व न्याय की होती है। अधर्म और झूठ कभी स्थाई नही रह सकता है। 

रावण, कंस, दुर्योधन ये तीनो भी बहुत ताकतवर थे, इनके पास बहुमत भी था, एक समय इनके भी हजारों समर्थक अंधभक्त की तरह इनके इर्द गिर्द थे। लेकिन अंततः तीनों मारे गए। अतः सभी किसानों को धैर्य बनाए रखना होगा। दिल्ली के षड्यंत्र से पार पाने के लिये हरेक को युधिष्ठिर, भीमसेन, अर्जुन, सहदेव और नकुल यानी पाण्डव बनना होगा। अपने घरों से बाहर निकलना होगा यानी खुद के भीतर घर कर चुके भ्रम या भक्तिभाव को बाहर निकालना होगा। समरांगण में कुशल मार्गदर्शन के लिये एक नीतिनिपुण कृष्ण गढ़ना होगा। इस बार कोई विदुर नहीं है इसलिए खुद ही लाक्षागृह की पहचान करनी होगी, उससे बचना होगा और इस बार अपने अभिमन्यु को भी बचाना होगा। 

समर की मुकम्मल तैयारी करनी होगी। रास्ता लम्बा और कठिन जरुर है पर इसका शार्टकट नहीं है।

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