सुप्रीम कोर्ट ने लगाई कृषि क़ानूनों पर रोक

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विवादित कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे आन्दोलन पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम आदेश जारी किया है। 

● पूर्वा स्टार ब्यूरो 

विवादास्पद कृषि क़ानून 2020 के ख़िलाफ़ लगभग डेढ़ महीने से चल रहे किसान आन्दोलन पर सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए तीनों कृषि क़ानूनों पर रोक लगा दी है। अगले आदेश जारी होने तक यह रोक लगी रहेगी। 

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि वह एक कमेटी बनाएगा और यदि किसान समस्या का समाधान चाहते हैं तो उन्हें उसमें पेश होना होगा।  इस कमेटी में चार सदस्य होंगे। कोर्ट ने कमेटी के सदस्य के तौर पर हरसिमरत मान, प्रमोद जोशी, अशोक गुलाटी और अनिल धनवत के नाम सुझाए हैं।

आदेश का स्वागत

अटॉर्नी जनरल ने कमेटी बनाने के फ़ैसले का स्वागत किया है। हरीश साल्वे कहा कि सुप्रीम कोर्ट यह स्पष्ट कर सकता है कि यह किसी पक्ष की जीत नहीं होगी, बल्कि क़ानून की प्रक्रिया के जरिए जाँच की कोशिश होगी।

“जब तक क़ानूनों की वापसी नहीं होगी, किसानों की घर वापसी नहीं होगी। हम अपनी बात रखेंगे, जो दिक्क़तें हैं सब बता देंगे।”   

राकेश टिकैत, नेता, भारतीय किसा यूनियन

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक आदेश जारी करते हुए कहा, ‘अगर किसान सरकार के पास जा सकते हैं तो कमेटी के सामने क्यों नहीं आ सकते? अगर वे समस्या का समाधान चाहते है तो हम ये नहीं सुनना चाहते कि किसान कमेटी के समक्ष पेश नहीं होंगे।’

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस. ए. बोबडे ने कहा, ‘हमें कमेटी बनाने का अधिकार है। जो लोग सचमुच समस्या का हल चाहते हैं वे कमेटी के पास जा सकते हैं।

“हम अपने लिए कमेटी बना रहे हैं, कमेटी हमें रिपोर्ट देगी। कमेटी के समक्ष कोई भी जा सकता है। किसान खुद जा सकते हैं, वे वकील के माध्यम से भी वहाँ जा सकते हैं।”

जस्टिस एस. ए बोबडे, मुख्य न्यायाधीश

जस्टिस बोबडे ने कहा, “हम कृषि क़ानूनों को सशर्त रूप से सस्पेंड करना चाहते हैं, लेकिन अनिश्चितकाल के लिए नहीं। हम इस पर कोई नकारात्मक इनपुट नही चाहते।”

इससे पहले केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच आठ दौर की बातचीत नाकाम हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सरकार को इस मुद्दे पर फटकार लगाई और कहा कि वह यदि कृषि क़ानूनों पर कुछ दिनों के लिए रोक नहीं लगाएगी तो अदालत खुद ऐसा कर देगी।

अदालत ने कहा, “हम सबसे अच्छे तरीके से समस्या का हल निकालने की कोशिश कर रहे हैं। हमें अपनी शक्तियों में से एक का इस्तेमाल कर कृषि क़ानून को निलंबित करना होगा। हम समस्या का समाधान चाहते हैं। हम ज़मीनी हकीक़त जानना चाहते है और इसलिए कमिटी के गठन चाहते हैं।”

गणतंत्र दिवस के मौके पर प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने किसान संगठनों को नोटिस जारी किया है।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, “कोई भी ताक़त, हमें कृषि कानूनों के गुण और दोष के मूल्यांकन के लिए कमेटी गठित करने से नहीं रोक सकती। यह कमेटी न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा होगी। यह बताएगी कि किन प्रावधानों को हटाया जाना चाहिए।”

कृषि क़ानूनों को रद्द करना होगा’

उधर, किसानों ने अदालत की किसी कमेटी में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया है। 

नये कृषि क़ानूनों पर गतिरोध को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के समिति बनाने के सुझाव के बीच किसान ऐसी किसी कमेटी का हिस्सा बनने के पक्ष में नहीं हैं। संयुक्त किसान मोर्चा ने इस मामले में बयान जारी किया है। किसानों ने कहा है कि वे ऐसी किसी कमेटी का हिस्सा बनने के पक्ष में नहीं हैं। 

संयुक्त किसान मोर्चा ने अपने बयान में कहा है कि कृषि क़ानूनों को लागू किए जाने से रोकने के सुप्रीम कोर्ट के सुझाव का सभी संगठन स्वागत करते हैं लेकिन वे सामूहिक और व्यक्तिगत रूप से सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित किसी कमेटी की कार्यवाही में शामिल होने के प्रति अनिच्छुक हैं। उन्होंने कहा है कि वे सर्वसम्मति से कृषि कृानूनों को रद्द करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

दिल्ली का घेरा

हज़ारों किसान दिल्ली से सटे हरियाणा के इलाक़ों में लगभग डेढ़ महीने से डेरा डाले हुए हैं। उनकी शुरू से ही माँग है कि बीते साल विवादित तरीके से संसद से पारित तीन कृषि क़ानूनों को रद्द कर दिया जाए, क्योंकि इससे कृषि व्यवस्था चौपट हो जाएगी और वे आर्थिक रूप से बर्बाद हो जाएंगे।

केंद्र सरकार का कहना है कि वह किसानों की समस्याओं को सुनने, उस पर विचार करने और उसके हिसाब से क़ानूनों में संशोधन करने के तैयार है, पर ये क़ानून रद्द नहीं किए जाएंगे। लेकिन किसान क़ानूनों को रद्द करने की माँग पर अड़े हुए हैं।

क्या है मुख्य माँगें?

किसानों की मुख्य चार माँगे हैं- कृषि उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी को सुनिश्चित करने के लिए क़ानूनी प्रावधान किया जाए, कृषि उत्पाद मंडियों से छेड़छाड़ न किया जाए, बिजली संशोधन विधेयक वापस ले लिया जाए और पराली जलाने पर सज़ा के प्रावधान को ख़त्म किया जाए। 

क्या कहना है सरकार का?

सरकार अंत की दो माँगें यानी बिजली संशोधन विधेयक वापस लेने और पराली जलाने पर सज़ा के प्रावधान को ख़त्म करने पर राज़ी हो गई है। पर शुरू की दो माँगें यानी कृषि उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी को सुनिश्चित करने के लिए क़ानूनी प्रावधान करने और कृषि उत्पाद मंडियों से छेड़छाड़ न करने के लिए व्यवस्था करने की माँग नहीं मान रही है।  

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