किसान आंदोलन का असर! निकाय चुनाव में बीजेपी-जेजेपी की हार

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किसान आंदोलन की तपिश से जूझ रहे हरियाणा में बीजेपी को स्थानीय निकाय के चुनावों में करारा झटका लगा है।

● पूर्वा स्टार ब्यूरो

हरियाणा में सरकार चला रहे बीजेपी-जेजेपी गठबंधन का स्थानीय निकाय के चुनाव में प्रदर्शन बेहद ख़राब रहा है। हरियाणा इन दिनों किसान आंदोलन से ख़ासा प्रभावित है और यह माना जा रहा है कि इसका खामियाजा उसे उठाना पड़ा है। तीन नगर निगमों में से बीजेपी-जेजेपी गठबंधन को सिर्फ़ एक निगम में जीत मिली है। पिछले महीने बरोदा सीट पर हुए उपचुनाव में भी बीजेपी-जेजेपी गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा है।

बीजेपी-जेजेपी के गठबंधन को सोनीपत और अंबाला नगर निगम में हार और पंचकूला में जीत मिली है। पंचकूला में बीजेपी के उम्मीदवार कुलभूषण गोयल ने कांग्रेस नेता उपिंदर कौर आहलूवालिया को 2057 वोटों से चुनाव हराया। रेवाड़ी नगर पालिका में बीजेपी की उम्मीदवार पूनम यादव को जीत मिली है।

कांग्रेस को सोनीपत नगर निगम में लगभग 14 हज़ार वोटों के अंतर से जीत मिली है। पार्टी के उम्मीदवार निखिल मदान सोनीपत के पहले मेयर होंगे। सोनीपत जिला सिंघु बॉर्डर से लगता हुआ है। सिंघु बॉर्डर पर ही किसानों का सबसे बड़ा आंदोलन चल रहा है। अंबाला नगर निगम में हरियाणा जनचेतना पार्टी (एचजेसीपी) की उम्मीदवार शक्ति रानी शर्मा को जीत मिली है। 

दुष्यंत चौटाला के इलाक़े हिसार जिले के उकलाना में जेजेपी को हार मिली है। जेजेपी को रेवाड़ी की धारूहेड़ा सीट पर भी हार का मुंह देखना पड़ा है।

अंबाला नगर निगम में बीजेपी को 8, एचजेसीपी को 7, कांग्रेस को 3 और हरियाणा डेमोक्रेटिक फ्रंट को 2 वार्डों में जीत मिली हैं। सोनीपत नगर निगम में बीजेपी को 10, कांग्रेस को एक और एक वार्ड में निर्दलीय उम्मीदवार को जीत मिली है। पंचकूला में बीजेपी ने 9, कांग्रेस ने 7 और जेजेपी ने 2 वार्डों में जीत हासिल की है। 

दिल्ली और हरियाणा की सीमाएं कई बॉर्डर्स पर आपस में मिलती हैं। पंजाब से शुरू हुए किसानों के आंदोलन में हरियाणा के किसानों की भी खासी भागीदारी है। किसान आंदोलन शुरू होने के बाद से ही हरियाणा में बीजेपी की मुसीबतें बढ़ गई थीं। पार्टी के कई सांसदों ने कहा था कि किसानों के इस मसले का हल निकाला जाना चाहिए। साथ ही जेजेपी के अंदर भी किसानों के समर्थन में नहीं आने के कारण उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला से नाराज़ होने की ख़बरें हैं। 

बीजेपी की बढ़ती मुश्किलें

कृषि क़ानूनों के कारण बीजेपी को पहले ही काफी सियासी नुक़सान हो चुका है। शिरोमणि अकाली दल के अलावा राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) ने भी एनडीए से अपनी राहें अलग कर ली हैं। अब दुष्यंत चौटाला पर जबरदस्त दबाव बना हुआ है। किसानों की सभाओं में दुष्यंत पर बीजेपी के साथ सरकार में बने रहने के कारण लगातार हमले किए जा रहे हैं। पिछले हफ़्ते दुष्यंत के हैलीकॉप्टर के जींद के उचाना कलां में उतरने से पहले ही ग्रामीणों ने हैलीपेड की जगह पर खुदाई कर दी थी। इसके अलावा हरियाणा के कई गांवों में लोगों ने बीजेपी-जेजेपी के नेताओं के बहिष्कार का एलान किया हुआ है। पंजाब से दिल्ली कूच कर रहे किसानों के लिए पंजाब-हरियाणा की सीमा पर सड़कें खुदवाने, उन पर पानी की बौछारें छोड़ने के कारण हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की खासी आलोचना हुई थी।

बीरेंद्र सिंह ने बढ़ाई मुसीबत

एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनकी सरकार के मंत्री, बीजेपी के तमाम आला नेता कृषि क़ानूनों के समर्थन में कूदे हुए हैं, वहीं दूसरी ओर पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह इन क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों के समर्थन में धरने पर बैठकर पार्टी की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। 

किसान आंदोलन ने पंजाब की ही तरह हरियाणा की सियासत को भी तगड़े ढंग से प्रभावित किया है। पूरी खट्टर सरकार डरी हुई है कि न जाने कब सरकार गिए जाए। सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय विधायक सोमबीर सांगवान अलग हो चुके हैं और सहयोगी जेजेपी के अंदर भी इस मामले में जबरदस्त उथल-पुथल मची हुई है। 

जब स्थानीय निकाय के चुनाव के लिए प्रचार शुरू हुआ था तो बीजेपी और जेजेपी को अहसास हो गया था कि उनके लिए राह आसान नहीं है और अब चुनाव नतीजों से यह साबित हो गया है कि किसान आंदोलन ने उनके सियासी गठबंधन और सरकार का भविष्य कठिन कर दिया है। 

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