किसान आंदोलन का एक महीना पूरा : पूरी शिद्दत से डटे हैं किसान
हाड़ कंपाती ठंड के बीच नौजवानों के साथ ही हजारों बुजुर्ग, बच्चे और महिलाएं दिल्ली के बॉर्डर्स पर डटे हुए हैं।
• पूर्वा स्टार ब्यूरो
नई दिल्ली। कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन कर किसानों के आंदोलन को आज एक महीना पूरा हो गया। इस कड़कड़ाती ठंड में खुले आसमान के नीचे बैठे नौजवानों के साथ ही हजारों बुजुर्ग, बच्चे और महिलाएं दिल्ली के बॉर्डर्स पर डटे हुए हैं। इनकी एक ही मांग है कि मोदी सरकार अपने कृषि क़ानूनों को वापस ले ले।
फिर बातचीत के लिए बुलाया किसानों को मनाने की सारी कोशिशें कर थक-हार चुकी केंद्र सरकार ने एक बार फिर हिम्मत बांधी है और किसानों को बातचीत के लिए बुलाया है। मोदी सरकार की ओर से गुरूवार को किसान संगठनों को पत्र भेजा गया है। पत्र में कहा गया है कि वे कृषि क़ानूनों को लेकर अगले दौर की बातचीत के लिए तारीख़ और वक़्त तय करें। इससे पहले कई दौर की बातचीत बेनतीजा हो चुकी है।
ठंड के कारण मौत!
किसान नेताओं का कहना है कि आंदोलन शुरू होने के बाद से अभी तक 40 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें से अधिकतर की मौत का कारण ठंड है। आने वाले दिनों में ठंड और ज़्यादा बढ़ेगी, कोरोना का डर अलग से है, ऐसे में सरकार सुप्रीम कोर्ट के सुझाव को मान ले तो, कोई हर्ज नहीं है। किसान को डर है कि नए कृषि क़ानूनों के जरिये उसकी ज़मीन पर कॉरपोरेट्स का कब्जा हो जाएगा, इसलिए वह दिन-रात ठंड में धरने पर बैठा है। और बार-बार कह रहा है कि चाहे जान चली जाए इन क़ानूनों को हटाए बिना वह यहां से नहीं जाएगा। बारी अब सरकार की है कि वह इस बात को समझे बजाए इसके कि किसानों को यह बताया जाए कि ये कृषि क़ानून उसके फ़ायदे में हैं और वह बिचौलियों से आज़ाद हो जाएगा। किसान की आशंका, किसान का डर अपनी जगह वाजिब है क्योंकि वह नहीं चाहता कि उसकी ज़मीन पर कोई पांव भी रखे।
खेती में कॉरपोरेट्स की घुसपैठ, मंडियों के ख़त्म होने की आशंका, एमएसपी, पराली और बिजली अध्यादेश के अलावा किसानों की आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं से अन्नदाता बुरी तरह डरा हुआ है, लेकिन सरकार और बीजेपी इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं।
सिर्फ़ पंजाब का आंदोलन!
बीजेपी ने अपनी पूरी ताक़त ये साबित करने में लगाई हुई है कि देश के दूसरे राज्यों में किसानों का आंदोलन नहीं हो रहा है और यह आंदोलन सिर्फ़ पंजाब के किसानों का है। इसे खालिस्तान समर्थकों से लेकर वामपंथियों का आंदोलन बताने तक के बयान बीजेपी के आला नेताओं की ओर से आ चुके हैं।
केंद्र सरकार में मंत्री तक कह चुके हैं कि इस आंदोलन में चीन और पाकिस्तान का हाथ है। ऐसे में क्या बीजेपी और मोदी सरकार को लगता है कि वह कृषि क़ानूनों को वापस भी ले लेती है, तो किसान और आम लोग इन बातों को कभी भूल पाएंगे।
मोदी सरकार के आला मंत्रियों और बीजेपी के रणनीतिकारों की चिंता यह भी है कि अगर किसान आंदोलन इसी तरह चलता रहा तो आने वाले कुछ महीनों में कई राज्यों में होने जा रहे चुनावों में पार्टी को ख़ासा नुक़सान हो सकता है। ऐसे में सरकार के सामने इसके सिवा कोई रास्ता नहीं है कि वह कृषि क़ानूनों को वापस ले ले।
फिर बातचीत के लिए बुलाया
किसानों को मनाने की सारी कोशिशें कर थक-हार चुकी केंद्र सरकार ने एक बार फिर हिम्मत बांधी है और किसानों को बातचीत के लिए बुलाया है। मोदी सरकार की ओर से गुरूवार को किसान संगठनों को पत्र भेजा गया है। पत्र में कहा गया है कि वे कृषि क़ानूनों को लेकर अगले दौर की बातचीत के लिए तारीख़ और वक़्त तय करें। इससे पहले कई दौर की बातचीत बेनतीजा हो चुकी है।
सरकार पर बढ़ा सियासी दबाव
कृषि क़ानूनों के मसले पर तमाम विपक्षी दलों ने भी केंद्र सरकार पर ख़ासा दबाव बढ़ा दिया है। किसानों की भूख हड़ताल से लेकर भारत बंद तक के कार्यक्रम को विपक्षी दलों का समर्थन मिला है। हालांकि किसानों ने अपने आंदोलन को पूरी तरह ग़ैर राजनीतिक रखा है लेकिन मोदी सरकार से लड़ने में ख़ुद को अक्षम पा रहे विपक्ष को किसान आंदोलन से ऊर्जा मिली है और वह खुलकर किसानों के समर्थन में आगे आया है।
टिकरी-सिंघु से लेकर ग़ाजीपुर बॉर्डर तक बड़ी संख्या में इकट्ठा हो चुके किसानों का आंदोलन बढ़ता जा रहा है। इन जगहों पर चल रहे धरनों में पंजाब-हरियाणा और बाक़ी राज्यों से आने वाले किसानों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश से भी बड़ी संख्या में किसानों ने दिल्ली कूच किया है। रेवाड़ी बॉर्डर पर भी किसानों का धरना जारी है। किसानों ने कहा है कि 27 दिसंबर को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मन की बात करेंगे, वे उस दिन उसी वक़्त देश भर के लोगों से थालियां बजाने की अपील करते हैं।
