संसद से सड़क तक कृषि विधेयकों के विरोध की तैयारी में विपक्षी दल, होगा देश व्यापी प्रदर्शन

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विपक्षी दल नये कृषि विधेयक के ख़िलाफ़ लड़ाई को अब संसद से सड़कों पर ले जाने की तैयारी में हैं। कांग्रेस से लेकर पश्चिम बंगाल की तृणमूल, लेफ़्ट फ्रंट, दिल्ली की आम आदमी पार्टी, तमिलनाडु की पार्टी डीएमके, सब इन कृषि विधेयकों पर सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलेंगी। अभी तक कई राज्यों में किसान छिटपुट प्रदर्शन कर रहे थे, पर अब किसान संगठन और ट्रेड यूनियन देश भर में एक साथ विरोध में उतरेंगे। यानी सरकार को देश भर में भारी विरोध झेलना पड़ेगा। कांग्रेस के नेतृत्व में गुरुवार से देशव्यापी प्रदर्शन होगा। संसद में विरोध को ‘मैनेज’ कर रही मोदी सरकार सड़क पर इस साझे विरोध का सामना कैसे कर पाएगी?

• पूर्वा स्टार ब्यूरो

कृषि विधेयक के विरोध में कांग्रेस और भारतीय किसान यूनियन सहित विपक्षी दल और किसानों के संगठनों ने विवादास्पद कृषि विधेयकों के विरोध में देश भर में ज़बरदस्त आंदोलन की घोषणा की है। लोकसभा में ध्वनिमत से पारित करा लिये गए इन दो विधेयकों को राज्यसभा में रविवार को जब पास किया जा रहा था तब इस पर काफ़ी हंगामा हुआ। मोदी सरकार संसद में जब इन विधेयकों को कृषि हितैषी बताकर पेश कर रही थी और इसे पास करा रही थी तो संसद से बाहर सड़कों पर किसान प्रदर्शन करते रहे।

अब चूँकि ये दोनों कृषि विधेयक संसद के दोनों सदनों से पास हो चुके हैं और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर करते ही क़ानून बन जाएँगे। किसान इन विधेयकों का विरोध कर रहे हैं और कह रहे हैं कि ये विधेयक साफ़ तौर पर मौजूदा मंडी व्यवस्था को ख़त्म करने वाले हैं। इसके अलावा ये विधेयक किसानों की आमदनी का एकमात्र ज़रिया “न्यूनतम समर्थन मूल्य” को ही ख़त्म कर देंगे। पंजाब और हरियाणा के किसान पिछले तीन महीने से तब से इस मुद्दे पर प्रदर्शन कर रहे हैं जब सरकार इसके लिए अध्यादेश लेकर आई थी। 

कृषि विधेयकों के इस पूरे मामले में सरकार का रवैया ही कई सवाल खड़े करता है। सरकार की ओर से रखी गई हर सफ़ाई ही संदेह पैदा करती है।

पहला तो सवाल तब उठा था जब सरकार अध्यादेश लेकर आई थी। अध्यादेश तब लाया जाता है जब संसद का सत्र नहीं चल रहा हो और क़ानून बनाना ज़रूरी हो। अब कृषि पर अध्यादेश लाने की ऐसी क्या मजबूरी थी? ऐसी कौन सी आफ़त आ गई थी? सत्र शुरू होने पर यह क़ानून बनाया जा सकता था। दूसरा, सरकार कह रही है कि नये विधेयक से किसान मुक्त हो जाएँगे और देश भर में कहीं भी अनाज बेच सकेंगे। तो सवाल है कि क्या अब तक ऐसी कोई पाबंदी थी कि किसान देश भर में अनाज नहीं बेच सकता है। क्या ऐसा कोई नियम या क़ानून है जो किसानों को देश में कहीं भी अनाज बेचने से रोकता हो? फिर सरकार यह तर्क देकर क्या किसानों को गुमराह कर रही है? 

यदि सरकार किसानों के हित में फ़ैसला ले रही है तो फिर न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी किसानों के उपज की न्यूनतम क़ीमत देने पर क़ानून बनाने पर राज़ी क्यों नहीं है?

जब इन विधेयकों को संसद में पेश किया गया तो कांग्रेस सांसद राहुल गाँधी और प्रताप सिंह बाजवा ने इन विधेयकों को किसानों के लिए ‘डेथ वारंट’ क़रार दिया। अब जो देशव्यापी प्रदर्शन होने वाला है उसका नेतृत्व कांग्रेस करेगी। रिपोर्टों में कहा गया है कि ज़िला स्तर पर प्रदर्शन किया जाएगा। इसमें हस्ताक्षर अभियान भी चलाया जाएगा जिसे देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन 14 नवंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को सौंपा जाएगा। ‘पीटीआई’ की रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने कहा, “2 अक्टूबर को महात्मा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री के जन्मदिन पर ‘किसानों और खेत मज़दूरों को बचाएँ’ दिवस के रूप में मनाया जाएगा। हम हर राज्य की राजधानी और ज़िला मुख्यालयों पर रैली और मार्च निकालेंगे और कृषि विधेयकों को वापस लेने की माँग करेंगे।”

रिपोर्ट है कि शुक्रवार को ज़बरदस्त प्रदर्शन किया जाएगा। भारतीय किसान यूनियन राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन करेगी और सड़कों को जाम करेगी। यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने मोदी सरकार को किसान विरोधी क़रार दिया और कहा कि बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार ने किसानों का विश्वास खो दिया है। ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमेटी ने भी प्रदर्शन की घोषणा की है। कई बड़ी ट्रेड यूनियनों ने भी इसका समर्थन किया है। पंजाब में किसानों से जुड़े कम से कम 30 संगठनों ने प्रदर्शन का आह्वान किया है और आम आदमी पार्टी भी इसमें शामिल होगी। पश्चिम बंगाल में लेफ़्ट फ्रंट और उससे जुड़ी पार्टियाँ किसानों के साथ प्रदर्शन करेंगी और सड़कों पर जाम लगाएँगी। ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस भी प्रदर्शन करेगी। तमिलनाडु में डीएमके नेता एमके स्टालिन ने भी किसानों के समर्थन में पूरे राज्य में प्रदर्शन की घोषणा की है। अब ज़ाहिर है यह मुद्दा और तूल पकड़ेगा।

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