क्या टूटेगा बीजेपी-निषाद पार्टी का सवा साल पुराना गठबंधन?
लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी से गठबंधन करने वाली निषाद पार्टी अब बीजेपी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर हमलावर है। पार्टी के अध्यक्ष बीजेपी के खिलाफ आन्दोलन का मोर्चा खोलने की घोषणा कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बीजेपी और निषाद पार्टी का करीब सवा साल पुराना संबंध अब टूटने वाला है? निषाद पार्टी के भीतर क्या पक रहा है? और आगे क्या होगा?
- आलोक शुक्ल

करीब तीन साल पहले की बात है, गोरखपुर की प्रतिष्ठापरक सीट पर योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद इस्तीफा देने से खाली हुई सीट पर हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर एक नौजवान ने भारतीय जनता पार्टी को पटखनी देकर बाजी मार ली। इस अप्रत्याशित चुनाव परिणाम ने एकबारगी समूची बीजेपी को सकते में ला दिया था। लखनऊ से दिल्ली तक भगवा खेमे में सन्नाटा पसर गया। चुनाव जीते थे निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद के पुत्र इन्जीनियर प्रवीण निषाद।
संघ का गढ़ होने से गोरखपुर बीजेपी की पारंपरिक सीट मानी जाती है। योगी आदित्यनाथ यहां से पांच बार लगातार सांसद रहे और ऐसा माना जाता है कि गोरखपुर शहर व ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र तथा नगर निगम में मेयर के पद पर उनका आशीर्वाद प्राप्त उम्मीदवार ही चुना जाता है। ऐसे में उप चुनाव में मिली हार बीजेपी नेताओं, खासकर सीएम योगी आदित्यनाथ के गले में मछली के कांटे की तरह चुभता रहा। वे आम चुनाव में इस सीट को दुबारा बीजेपी की झोली में लाने के लिए सारे जतन करने में लगे थे।
फलत: 2019 के आम चुनाव में भगवा खेमा निषाद पार्टी को अपने पाले में लाने में सफल रहा। संजय निषाद ने समाजवादी पार्टी से संबंध विच्छेद कर भाजपा से गठबंधन कर लिया और अपने सांसद पुत्र को बीजेपी में शामिल करा दिया। बीजेपी ने प्रवीण निषाद को गोरखपुर की बजाय खलीलाबाद सीट से उतारा जहां से जीत कर वह दुबारा संसद पहुंचे।
उस वक्त ऐसा माना जा रहा था कि आगे चलकर बीजेपी निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद को अपने कोटे से राज्यसभा में भी भेजेगी। निषाद पार्टी के लोग तो ऐसा मानते ही थे, भाजपा के कई नेता-कार्यकर्ता भी ऐसी चर्चा करते रहे हैं। पर ऐसा हुआ नहीं, राज्यसभा के लिए यूपी से खाली हुई सीट पर बीजेपी ने बसपा से आये पूर्व मंत्री जय प्रकाश निषाद को अपना उम्मीदवार बनाकर सदन में पहुंचा दिया। बीजेपी का यह कदम संजय निषाद का महत्व कम करने और उनके मुकाबले निषादों का एक नया नेता खड़ा करने वाला माना जा रहा है।
अब, जब संजय निषाद को बीजेपी ने राज्यसभा नहीं भेजा और उनकी ही जाति के दूसरे नेता का कद बढ़ाने में लगी है तब उनका बीजेपी से मोहभंग होना ही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर निशाना साध कर उन्होंने इसका संकेत भी दे दिया है। संजय निषाद ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधते हुए कहा कि सीएम निषादों के साथ किए हुए अपने वायदे को भूल चुके हैं। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री को उनके वायदे को याद दिलाने के लिए शुक्रवार को निषाद समुदाय के लोग मर्यादा पूर्ण आरक्षण की मांग लेकर शुक्रवार को सांसद रवि किशन शुक्ला का घेराव करेगी।
निषाद आरक्षण की आग फिर चमकेगी: संजय निषाद
पादरी बाजार स्थित निषाद पार्टी के कार्यालय पर शुक्रवार को पत्रकार वार्ता कर राष्ट्रीय अध्यक्ष ने निषाद आरक्षण की आग फिर चमकाने की बात कही। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सांसद रहते हुए 2015 में निषाद आरक्षण की मांग को लेकर मंडलायुक्त कार्यालय के सामने कहा था कि भाजपा सत्ता में आएगी तो निषादों को आरक्षण जरूर मिलेगा, लेकिन निषादों के वोट से सत्ता में आने के बाद बीजेपी अब छल कर रही है। वह आरक्षण देने के अपने वादे से पीछे हट रही है। मुख्यमंत्री ने सांसद रहते सदन में निषाद आरक्षण की मांग उठाई थी, इसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।
11 सितंबर से शुरू होगा आन्दोलन
उन्होंने कहा कि हम मित्र हैं। इसलिए याद दिलाना जरूरी है। कुछ लोग सिर्फ गुमराह करने पर लगे हैं। इससे सरकार को नुकसान हो सकता है। उन्होंने कहा कि निषादों के साथ किए गए वायदे को याद दिलाने के लिए निषाद समाज के लोग 11 सितंबर को प्रदेश भर के सभी सांसद आवास का घेराव व धरना प्रदर्शन करेंगे। 15 सितंबर को सभी जिला अधिकारियों को ज्ञापन देंगे और 25 सितंबर को जंतर-मंतर पर अपनी आवाज को पहुंचाने के लिए पहुंचेंगे।
निषाद पार्टी का यह कदम अलगाव की दिशा में बढ़ा पहला कदम है
बीजेपी की सहयोगी निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर वादाखिलाफी का आरोप और सरकार के खिलाफ सांसदों के घर प्रदर्शन की घोषणा बीजेपी से अलगाव की ओर बढ़ाया गया पहला कदम माना जा रहा है। कई राजनीतिक विश्लेषक और पत्रकार ऐसा मान रहे हैं कि जय प्रकाश निषाद के राज्यसभा जाने से संजय निषाद अब बीजेपी में अपने लिए कुछ खास लाभ दिख नहीं रहा है। वे समझ रहे हैं कि भविष्य में बीजेपी उनके दबाव में नहीं आने वाली ऐसे में डेढ़ साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में उन्हें अपनी पार्टी के लिए ज्यादा सीटें हासिल करना है तो अभी से ही दबाव बनाना होगा। बीजेपी दबाव में आ गयी तो ठीक (जो अब तक दिख नहीं रहा है) अन्यथा सपा या कांग्रेस से गठबंधन के रास्ते खुले ही हैं।
