‘बॉलीवुड में सामाजिक मुद्दों पर फिल्में बनाने का दौर चल रहा है’
यूपी के गोरखपुर शहर से निकलकर कम समय में ही बॉलीवुड से हॉलीवुड तक का सफर तय कर चुके निर्माता-निर्देशक और अभिनेता फैजान करीम का नाम हिन्दी फिल्मों में किसी के लिए अपरिचित नहीं है। हिन्दी सिनेमा में एक खास मुकाम हासिल कर चुके फैजान एक बार फिर हॉलीवुड की ओर रूख करने की सोच रहे हैं। फैजान पिछले दिनों गोरखपुर में थे, इस दौरान ‘पूर्वा स्टार’ की उप सम्पादक गरिमा सिंह से उन्होंने अपने अब तक के फिल्मी सफर, कैरियर और भविष्य को लेकर खुलकर बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश…
गोरखपुर से आपका क्या सम्बन्ध है?
गोरखपुर मेरा घर है। मैं यहीं पैदा हुआ और अपना बचपन यहीं गुजारा। शहर के सेंट पॉल स्कूल में शुरूआती शिक्षा लेने के बाद दून स्कूल देहरादून से मैंने अपना हाई स्कूल और इंटर किया।
सिनेमा को कॅरियर कैसे बनाया, क्या बचपन से ही फिल्मों में जाना चाहते थे?
जब मैं छोटा था तो मैंने एक शार्ट फिल्म बनाई थी। शायद उसे बनाते समय ही अभिनेता और निर्देशक बनने का सपना मेरे अंदर बस गया था। फिर कॉलेज में पढ़ाई के समय थिएटर में काफी काम किया और फिर वहीं से फिल्मों में जाने की धुन सवार हो गई।
आप हॉलीवुड कैसे गए?
कॉलेज खत्म करने के बाद मैंने फिल्म निर्देशन और लेखन में न्यूयॉर्क फिल्म एकेडमी से अपना पोस्ट ग्रेजुएशन किया। अपने दो साल का कोर्स खत्म होने के पश्चात मैंने कुछ दोस्तों की शार्ट फिल्म में काम किया। लॉस एंजेलेस में मैंने इस्लामिक आतंकियों की मानसिकता के ऊपर फिल्म बनाई जिसका नाम था ‘नोइंग ऑफ अली’। इस फिल्म में मैंने मुख्य किरदार ‘अली’ का अभिनय भी किया था। मेरी उस फिल्म को लोगों ने बहुत सराहा। मैंने उस फिल्म का प्रीमियर वार्नर ब्रदर के बरबैंक स्थित स्टूडियो में किया और फिर मैं वापस मुंबई आ गया।
मतलब सीधा हॉलीवुड से बॉलीवुड?
जी बिलकुल! ये आपको शायद किसी फिल्म की कहानी लगे लेकिन मेरे साथ यही हुआ। एक बार जब मैं बॉलीवुड पंहुचा तो मुझे बम्बई के तौर तरीके समझने में थोड़ा समय लगा लेकिन करीब तीन महीने में मैंने वहां काम करना शुरू कर दिया था।
हॉलीवुड और बॉलीवुड में क्या अंतर लगा?
हॉलीवुड में लोग सीधी भाषा में बात करते हैं, घुमा फिरा के नहीं। बॉलीवुड में लोग आपके मुंह पर कुछ बोलते हैं और पीठ पीछे कुछ और। इसके अलावा अमेरिका में श्रम कानून को सख्ती से लागू किया जाता है जिसका मतलब है की न्यूनतम मजदूरी मिलना हर मजदूर का हक है। बम्बई में न्यूनतम कानून की सख्ती ना होने की वजह से काफी परेशानियां झेलनी पड़ती हैं। हालांकि आज भी बहुत सी मजदूर यूनियन ऐसी हैं जो मजदूर के हक की लड़ाई लड़ती हैं लेकिन फिल्म उद्योग छोटा होने की वजह से सरकार से बहुत ज्यादा उम्मीद रखना बेकार है। भाई-भतीजावाद एक और बड़ी बीमारी है जो अभिनेताओं और अभिनेत्रियों को रोज झेलना पड़ता है।
कुछ समय पहले आपने एक शार्ट फिल्म बनाई थी ‘सबका मालिक एक’ जिसे काफी सराहना मिली थी। उसके बारे में कुछ बताएं।
‘सबका मालिक एक’ एक ऑटोरिक्शा ड्राइवर और एक कॉर्पोरेट जॉब में काम करने वाले व्यक्ति के बीच में हो रही बातचीत के ऊपर आधारित है। ये फिल्म भारत में पिछले पांच साल में एक बदलती विचारधारा को लेकर थी। ये एक सामाजिक मुद्दे को सामने रखती है, इसीलिए इसको इतनी सराहना मिली। इस पिक्चर में मेरी एक्टिंग को भी काफी प्रशंसा मिली।
वैसे सामाजिक मुद्दों पर बॉलीवुड भी आजकल बहुत फिल्में बना रहा है…।
जी हां, बिलकुल। बॉलीवुड में सामाजिक मुद्दों पर फिल्में बनाने का दौर चल रहा है। हाल में ही कितनी सारी अच्छी फिल्मे आयी हैं जैसे ‘बधाई हो’, ‘बाला’, ‘पंगा’ इत्यादि। मेरे खयाल से बॉलीवुड की उन्नति के लिए ये कदम एक सही दिशा में उठाया जा रहा है। समाज में लोगों को सामाजिक मुद्दों के प्रति जागरूकता दिखाना बेहद अनिवार्य है।
अपने आनी वाली फिल्मों के बारे में कुछ बताना चाहेंगे?
कुछ समय पहले मैंने एक हिंदी फिल्म बनाई है ‘मोरजिम’। ये गोवा की कहानी है और इसमें जानी मानी अभिनेत्री दीपानिता शर्मा एक महत्वपूर्ण किरदार निभा रही हैं। पिक्चर में मैंने एक कॉमेडी रोल किया है। पांच करोड़ में बनी इस पिक्चर का हाल ही में पोस्ट प्रोडक्शन खत्म हुआ है और अब ये 2020 के मध्य थिएटर एवं ऑनलाइन मंचों पर प्रसारित की जायेगी। ये फिल्म एक सस्पेंस थ्रिलर है और इसकी आधी शूटिंग गोवा और आधी बम्बई में हुई है।
हॉलीवुड में भी आगे कुछ करने की सोच रहे हैं?
मेरी अगली फिल्म का नाम है ‘पाक चिक पाक राजा बाबू’। ये मेरी अपने जीवन की कहानी से प्रेरित है जहां पर हॉलीवुड से लौटा एक लडक़ा गोरखपुर की भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में फंस जाता है। इस पिक्चर की आधी शूटिंग लॉस एंजेलेस में होनी है और आधी गोरखपुर में।