मंदी और नेहरूफोबिया

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हालिया वर्षों में ऐसा क्या हो गया कि कुछ साल पहले तक तकनीक में आगे बढऩे के सपने देखने वाला युवा अब गोबर और गोमूत्र के सहारे विश्वगुरू बनने के सपने देखते हुए हर फेक न्यूज़ पर यकीन कर रहा है। वह इस कदर दिग्भ्रमित कैसे हो गया? क्या होगा आनेवाले सालों में, जब यही युवा नेता बनेगा?

देश की अर्थव्यवस्था मंदी से घिरती जा रही है। महंगााई में तेजी से इजाफा हो रहा है। हालात पहले से ज्यादा मुश्किल होते जा रहे हैं। बजट से महंगाई को काबू करने की उमीद थी लेकिन अब ज्यादातर अर्थशास्त्रियों को लोगों को लगता है इससे महंगाई कम नहीं होगी। बढ़ती कीमतों और महंगाई के कारण आम जनता की बैचैनी को शांत करने में केंद्रीय बजट विफल रहा है।
सरकार सिजयों खासकर ह्रश्वयाज की कीमतों में तेज वृद्धि की वजह से पहले से ही आलोचनाओं के घेरे में है। बढ़ती कीमतों ने देशभर के घरों का बजट बिगाड़ कर रख दिया है। दिसंबर में खुदरा महंगाई दर पिछले पांच साल में अधिकतम 7.35 फीसदी थी। इसके अलावा, थोक महंगाई दर भी तेजी से बढ़ती हुई नवंबर के 0.58 फीसदी के मुकाबले दिसंबर में उछलकर 2.59 फीसदी हो गई। अपेक्षा से अधिक महंगाई से केंद्रीय बैंक की चिंता साफ झलक रही है। कंज्यूमर डिमांड में कमी की वजह से बेरोजगारी में इजाफा होना सरकार के लिए बेहद खराब स्थिति है।


क्रोनोलॉजी
दिल्ली विधानसभा के संपन्न हुए पूरे चुनाव में गोली मार दो, शाहीनबाग की औरतें ये हैं, वो हैं, फलाने ने गोली मार दी जैसी बातें ही गूंज रही थी। देश के गृहमंत्री गली-गली परचे बांटते रहे और दिल्ली में दो बार गोली चल गई। दुनिया के एक सुपरपावर देश की राजधानी में चुनावी प्रचार-प्रसार के बीच गोलियां चल रही हैं? और वो भी तब जब हमें बताया जा रहा है कि देश को पटेल के बाद सबसे ‘मजबूत गृहमंत्रीÓ मिले हैं।
यह बात चिंता में डालती है कि हालिया वर्षों में ऐसा या हो गया कि कुछ साल पहले तक तकनीक में आगे बढऩे के सपने देखने वाला युवा अब गोबर और गोमूत्र के सहारे विश्वगुरू बनने के सपने देखते हुए हर फेक न्यूज़ पर यकीन कर रहा है। वह इस कदर दिग्भ्रमित कैसे हो गया? या होगा आनेवाले सालों में, जब यही युवा नेता बनेगा? पिछले दस साल में सोशल मीडिया पर योद्धा बन चुके तेजिंदर बग्गा को आखिरकार टिकट मिला ही है और वो अगली पीढ़ी के युवा नेता बनने की दिशा में आगे बढ़ चले हैं।
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के जवाब में 100 मिनट के अपने वक्तव्य में प्रधानमंत्री मोदी ने नेहरू का नाम 23 बार लिया। इसके पहले भी 2014 के बाद से ही मोदी देश के कमोबेश हर समस्या के लिए नेहरू का नाम ही लेते रहे हैं। यहां सवाल यह है कि आखिर वो नेहरू-गांधी परिवार के सभी नेताओं में केवल नेहरू पर ही यों हमले करते हैं? वैसे तो यह विशुद्ध राजनीति का मामला है। लेकिन वे जानते हैं कि काँग्रेस इस परिवार पर ही टिकी हुई है, जिस की जड़ें व्यापक रूप से नेहरूवादी आभामंडल में गड़ी हुई हैं।
वे समझते हैं कि इन जड़ों को उखाडऩे में सफल हुए तो नेहरू-गांधी परिवार का जन मानस पर छाया प्रभाव खत्म होने के साथ ही विरासत में उन्हें मिली उनकी विचारधारा तथा उनकी पार्टी कांग्रेस का भी खात्मा हो जाएगा। बाकी तमाम नेताओं, छोटे-मोटे विपक्षी दलों से तो वे एक-एक कर निबट ही लेंगे। ऐसा करके वे भविष्य के लिए ऐसी जगह बना देंगे कि भारत को आरएसएस की विचारधारा के मुताबिक ढाल सकें।

विजाहत करीम
संपादक (पूर्वा स्टार)

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