श्रद्धया इदं श्राद्धम्

Read Time: 5 minutes

सनातन धर्म में माता-पिता की सेवा सबसे बड़ी पूजा मानी गयी है। धर्म शास्त्रों में पितरों का उद्धार करने के लिए पुत्र की अनिवार्यता मानी गई हैं। जन्मदाता माता-पिता को मृत्यु-उपरांत लोग विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है। भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक सोलह दिन पितृपक्ष के नाम से विख्यात है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस अवधि में हमारे पूर्वज मोक्ष प्राप्ति की कामना लिए अपने परिजनों के निकट अनेक रूपों में आते हैं। इस पर्व में अपने पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है और उनसे जीवन में खुशहाली के लिए आशीर्वाद की कामना की जाती है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार जिस तिथि में माता-पिता, दादा-दादी आदि परिजनों का निधन होता है, इन 16 दिनों में उसी तिथि पर उनका श्राद्ध करना उत्तम रहता है।
आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ब्रह्माण्ड की ऊर्जा तथा उस उर्जा के साथ पितृप्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है। धार्मिक ग्रंथों में मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति का बड़ा सुन्दर और वैज्ञानिक विवेचन मिलता है। मृत्यु के बाद दशगात्र और षोडशी-सपिण्डन तक मृत व्यक्ति की प्रेत संज्ञा रहती है। पुराणों के अनुसार भौतिक शरीर छोडऩे पर आत्मा जो सूक्ष्म शरीर धारण करती है, प्रेत होती है। प्रिय के अतिरेक की अवस्था ‘प्रेत’ है क्योंकि आत्मा जो सूक्ष्म शरीर धारण करती है तब भी उसके अन्दर मोह, माया, भूख और प्यास का अतिरेक होता है। सपिण्डन के बाद वह प्रेत, पित्तरों में सम्मिलित हो जाता है।
एकैकस्य तिलैर्मिश्रांस्त्रींस्त्रीन् दद्याज्जलाज्जलीन् यावज्जीवकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति।
अर्थात् जो अपने पितरों को तिल-मिश्रित जल की तीन-तीन अंजलियाँ प्रदान करते हैं, उनके जन्म से तर्पण के दिन तक के पापों का नाश हो जाता है। हमारे सनातन धर्म-दर्शन के अनुसार जिस प्रकार जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है। उसी प्रकार जिसकी मृत्यु हुई है, उसका जन्म भी निश्चित है। ऐसे कुछ विरले ही होते हैं जिन्हें मोक्ष प्राप्ति हो जाती है। पितृपक्ष में तीन पीढिय़ों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढिय़ों तक के माता पक्ष के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता हैं। इन्हीं को पितर कहते हैं। दिव्य पितृ तर्पण, देव तर्पण, ऋषि तर्पण और दिव्य मनुष्य तर्पण के पश्चात् ही स्व-पितृ तर्पण किया जाता है। जिस तिथि को माता-पिता का देहांत होता है, उसी तिथि को पितृपक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है। माता-पिता आदि सम्मानीय जनों का अपमान करने से, मरने के बाद माता-पिता का उचित ढंग से क्रियाकर्म और श्राद्ध नहीं करने से, उनके निमित्त वार्षिक श्राद्ध आदि न करने से पितरों को दोष लगता है।
धर्मग्रंथों के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण प्रमुख माने गए हैं- पितृ ऋण, देव ऋण तथा ऋषि ऋण। इनमें पितृ ऋण सर्वोपरि है। पितृ ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सब बुजुर्ग भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने तथा उसका विकास करने में सहयोग दिया। पितृपक्ष में मन, कर्म एवं वाणी से संयम का जीवन जीना चाहिए। पितरों को स्मरण करके जल चढ़ाना चाहिए। निर्धनों एवं ब्राह्मणों को दान देना चाहिए।
‘त्रिविधं श्राद्ध मुच्यते’
मत्स्य पुराण में तीन प्रकार के श्राद्ध बतलाए गए है, जिन्हें नित्य, नैमित्तिक एवं काम्य श्राद्ध कहते हैं।
यमस्मृति में पांच प्रकार के श्राद्धों नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि और पार्वण के नाम से श्राद्ध का वर्णन मिलता है।

कैसे करें श्राद्ध

तर्पण और श्राद्ध सामान्यत: दोपहर 12 बजे के लगभग करना ठीक माना जाता है। इसे किसी सरोवर, नदी या अपने घर पर किया जा सकता है। परंपरानुसार, पितरों के आवाहन के लिए पका हुआ चावल, काले तिल व घी का मिश्रण करके पिंड दान व तर्पण किया जाता है। इसके पश्चात भगवान विष्णु व यमराज की पूजा-अर्चना के साथ-साथ अपने तीन पीढ़ी पूर्व तक के पितरों की पूजा की जाती है। ब्राह्मण द्वारा श्राद्ध सम्पन्न कराने के उपरांत पितरों के लिए बनाया गया विशेष भोजन उन्हें समर्पित किया जाता है। फिर आमंत्रित ब्राह्मण को पितरों का पसंदीदा भोजन करा कर दक्षिणा, फल, मिठाई और वस्त्र आदि देकर उनसे आशीष लेना चाहिए। पितृपक्ष में पिंडदान करने से देवों व पितरों का आशीर्वाद मिलता है। सामान्यत: पितृ पक्ष में पितरों के लिए कद्दू की सब्जी, दाल-भात, पूरी व खीर बनाना शुभ माना गया है। पूजा के बाद पूरी व खीर सहित अन्य सब्जियां एक थाली में सजाकर गाय, कुत्ता, कौवा और चींटियों को देना चाहिए। कहा जाता है कि कौवे व अन्य पक्षियों द्वारा भोजन ग्रहण करने पर ही पितरों को भोजन प्राप्त होता है, क्योंकि पक्षियों को पितरों का दूत व विशेष रूप से कौवे को उनका प्रतिनिधि माना जाता है। पितृ पक्ष में अपशब्द बोलना, ईष्र्या करना, क्रोध करना बुरा माना जाता है व इनका त्याग करना चाहिए।

गया

पितृपक्ष में प्रत्येक परिवार में मृत माता-पिता का श्राद्ध किया जाता है, परंतु गया श्राद्ध का विशेष महत्व है। वैसे तो इसका भी शास्त्रीय समय निश्चित है, परंतु ‘गया सर्वकालेषु पिण्डं दधाद्विपक्षणंं’ कहकर सदैव पिंडदान करने की अनुमति दे दी गई है। गया में दो स्थान बोधगया और विष्णुपद मन्दिर श्राद्ध तर्पण हेतु प्रसिद्ध है। माना जाता है कि विष्णुपद मंदिर में स्वयं भगवान विष्णु के चरण उपस्थित हैं। दूसरा प्रमुख स्थान ‘फल्गु नदी’ का तट है। ऐसा माना जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने स्वयं इस स्थान पर अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था। तब से यह माना जाने लगा की इस स्थान पर आकर कोई भी व्यक्ति अपने पितरों के निमित्त पिंड दान करेगा तो उसके पितृ उससे तृप्त रहेंगे और वह व्यक्ति अपने पितृऋण से उऋण हो जायेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related

‘उसने गांधी को क्यों मारा’- गांधी हत्या के पीछे के ‘वैचारिक षड्यंत्र’ को उजागर करती किताब

Post Views: 254 गांधी की हत्या, उसके कारण, साजिश और ‘विकृत मानसिकता’ के उभार को अपनी हालिया किताब ‘उसने गांधी को क्यों मारा ‘ में लेखक अशोक कुमार पांडेय ने प्रमाणिक स्त्रोतों के जरिए दर्ज किया है। ● कृष्ण मुरारी ‘भारत एक अजीब देश है। इस देश में सत्ता हासिल करने वालों को नहीं त्याग […]

न बैंक खाता, न ही पंजीकरण फिर आरएसएस ने कैसे की महामारी में इतनी धन उगाही?

Post Views: 184 ● पूर्वा स्टार ब्यूरो नागपुर। नागपुर के एक कार्यकर्ता मोहनीश जबलपुरे ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और आयकर (आईटी) विभाग को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के ख़िलाफ़ शिक़ायत दर्ज़ करके संगठन के धन के स्रोत की जांच की मांग की है। गौरतलब है कि पिछले साल जून में आरएसएस ने दावा किया था […]

ये सीएम की भाषा है…युवाओं की संपत्ति जब्त करने की धमकी दे ट्रोल हुए योगी आदित्यनाथ

Post Views: 260 उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने प्रदेश में गुंडाराज के खिलाफ अक्सर ही बयान देते रहते हैं। इसी मुद्दे पर उन्होंने एक ट्वीट किया। ट्वीट की भाषा को लेकर सोशल मीडिया पर खूब प्रतिक्रिया आ रही है। ● पूर्वा स्टार ब्यूरो उत्तर प्रदेश में गुंडाराज के खिलाफ अक्सर ही बयान देते […]

error: Content is protected !!
Designed and Developed by CodesGesture