बदहाल अर्थ व्यवस्था को जोर का झटका

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‘मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की’ वाली हालत बन गई है भारतीय अर्थ व्यवस्था की। पहले से ही संकट से जूझ रही अर्थव्यवस्था को 2019-२० की पहली तिमाही में जोरदार झटका लगा है। ग्रोथ रेट इस तिमाही में घटकर 5 फीसदी के नीचे पहुंच चुकी है। निवेश और मांग में कमी के चलते ऐसा हुआ है। पिछले साल इस तीमाही में ग्रोथ रेट 8 फीसदी थी। अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में उत्पादन में भारी कमी दर्ज की गई है। गाडिय़ों की बिक्री में कमी, घरेलू उड़ानों में यात्रियों की संख्या में गिरावट, रेल ढुलाई और आयात में कमी साफ तौर पर खपत की कमी दिखा रही है। देश में ऑटो सेक्टर बुरे दौर से गुुुजर रहा है। जुलाई में ऑटो सेक्टर की बिक्री में 31 फीसदी की भारी गिरावट दर्ज की गई है।

  • आलोक शुक्ल

इस साल आर्थिक सर्वे में मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान आर्थिक विकास दर सात फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया था। लेकिन सत्तर सालों में अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही इंडियन इकॉनमी की हालत लगातार बिगड़ती हालत ठीक करने के सारे उपाय बेअसर दिख रहे हैं।
अब जाकर केंद्र सरकार ने देश की आर्थिक सेहत सुधारने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक से १,७६,००० करोड़ रुपये की ‘स्ट्रांग डोज’ ली है। लेकिन सवाल है, क्या इससे कुछ फायदा होने वाला है? क्या इससे बुरी तरह पस्त इकॉनमी सेहतयाब होकर पहले की तरह ही फर्राटा भरने लगेगी? जवाब है, नहीं। तब सवाल है, क्या होगा इससे? आर्थिक विशेषज्ञों की मानें तो यह वैसे ही काम करेगा जैसे किसी कैन्सर रोगी को सामान्य पेनकिलर टेबलेट देकर फौरी तौर पर दर्द महसूस करने से राहत तो मिल जाती है किन्तु रोग बना रहता है जो भीतर ही भीतर बढ़ता जाता है, वही होना है। लगातर तेजी से गिरती विकास दर इसकी गवाही दे रही है।
अर्थव्यवस्था की हालत साल 2016 में की गई नोटबंदी और फिर जल्दबाजी में जीएसटी लागू किये जाने के बाद एक बार बिगडऩी आरंभ हुई तो फिर काबू से बाहर होती गयी। नोटबंदी और जीएसटी का दुष्प्रभाव अब साफ दिखने लगा है। इकॉनोमिक स्लोडाउन की वजह से सभी सेक्टर्स की हालत खस्ता हो गई है। उद्योग-धन्धे खस्ताहाल हैं। उत्पादन लगातार गिर रहा है। कल कारखाने बंद हो रहे हैं। निवेश ठप है। नौकरियां कम होती जा रही हैं। वित्तीय क्षेत्र में जारी संकट का असर अब आर्थिक विकास पर भी दिखने लगा है। कुल मिलाकर इस समय देश जबर्दस्त मंदी की गिरफ्त में है। अब तो सरकार के सभी आर्थिक विशेषज्ञ भी इसकी पुष्टि कर रहे हैं।
चालू वित्त वर्ष में बजट के तुरंत बाद प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के विशेषज्ञों ने तो बजट के आंकड़ों को ही गलत बताते हुए अर्थव्यवस्था की हालत खस्ता बतायी। फिर नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार और रिजर्व बैंक के मौजूदा गवर्नर शशिकान्त दास ने अर्थव्यवस्था की धीमी पड़ती चाल को लेकर चिंता जताई। इन तमाम संस्थानों की चिंता की वजह घटती विकास दर है।
देखा जाए तो तिमाही के आंकड़े भी देश की सच्ची तस्वीर पेश नहीं करते। यह सिर्फ 300 कारपोरेट कंपनियों का लेखा जोखा होता है जिसमें असंगठित क्षेत्र की बात कौन करे, पूरा संगठित क्षेत्र तक शामिल नहीं किया जाता। यह मान लिया जाता है कि संगठित क्षेत्र के विकास की रफ्तार से ही असंगठित क्षेत्र भी बढ़ रहा होगा। जबकि नोटबंदी के बाद से यह गणित गलत साबित हो रहा है। नोटबंदी के बाद से हमारा श्रम बल 45 करोड़ से घटकर 41 करोड़ रह गया है, यानी इसमें करीब 10 फीसदी की गिरावट आई है। अर्थव्यवस्था में असंगठित क्षेत्र की हिस्सेदारी 4.5 प्रतिशत है इसलिए इसमें 10 फीसदी की गिरावट 4-5 फीसदी की गिरावट है। अब सरकार के आंकड़ों से इसका योग करने पर उसमें छह फीसदी की दर से वृद्धि यानी 3.3 फीसदी विकास दर जुड़ जाएगा। इस तरह असल विकास दर निगेटिव दिखेगी। इसका अर्थ है कि हमारी असल विकास दर 5 फीसदी नहीं बल्कि शून्य या नकारात्मक है। सवाल है कि इससे कैसे निपटा जाए? इसके लिए निजी क्षेत्र कतई आगे नहीं आएगा, इसलिए सार्वजनिक क्षेत्र मे ही निवेश बढ़ाना होगा। जाहिर है, मौजूदा मंदी का उपाय सरकार ही कर सकती है। उसे विशुद्ध राजनीतिक फैसले लेने होंगे। असंगठित क्षेत्र को उभारने के प्रयास करने होंगे। वहां क्रय शक्ति बढ़ाने की जरूरत है। रोजगार सृजन पर ध्यान देना होगा। शिक्षा और स्वास्थ्य दो ऐसे क्षेत्र हैं जो खासा रोजगार पैदा कर सकते हैं। ग्रामीण भारत का इन्फ्रास्ट्रक्चर भी ठीक करना होगा। चूंकि देश के पास संसाधन कम हैं, इसलिए उनके सही स्थान पर समुचित इस्तेमाल की आवश्यकता है ताकि उसका अधिकाधिक लाभ मिले और यह फायदा निश्चित रूप से असंगठित क्षेत्र से ही मिलने वाला है।

‘सत्तर सालों में पहली बार ऐसा आर्थिक संकट’

पिछले 70 वर्षों में वित्तीय क्षेत्र की ऐसी हालत कभी नहीं रही है। निजी क्षेत्र में अभी कोई किसी पर भरोसा नहीं कर रहा और न ही कोई कर्ज देने को तैयार है। 2014 के बाद गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) बढऩे से अर्थव्यवस्था में सुस्ती आई है। नोटबंदी और जीएसटी तथा दिवालिया कानून के कारण खेल की पूरी प्रकृति बदल गयी। हर क्षेत्र में नकदी और पैसों को जमा किया जाने लगा है। इन पैसों को बाजार में लाने के लिए सरकार को अतिरिक्त कदम उठाने होंगे। निजी क्षेत्र को निवेश के लिए प्रोत्साहित किए जाने की जरूरत है, ताकि मध्य वर्ग की आमदनी में इजाफा हो सके। जिससे निजी क्षेत्र की कंपनियों की आशंका दूर हो और वे निवेश के लिये प्रोत्साहित हों। वित्तीय क्षेत्र में बने अप्रत्याशित दबाव से निपटने के लिए लीक से हटकर कदम उठाना होगा। निजी निवेश तेजी से बढऩे से भारत को मध्यम आय के दायरे से बाहर निकलने में मदद मिलेगी।
राजीव कुमार, चेयरमैन, नीति आयोग

ऐसी पूर्ण बहुमत पर आर्थिक वृद्धि दर दो अंकों में होती : मनमोहन

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह मोदी सरकार के कामकाज को एक अर्थशास्त्री के नजरिए से आंकते हैं। उनका कहना है कि दस साल गठबंधन सरकार चलाने के बावजूद भारत को मजबूत आर्थिक वृद्धि दर देने में सफल रहे पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का कहना है कि उनके पास अगर मोदी सरकार की तरह पूर्ण बहुमत होता तो वे आर्थिक वृद्धि दर दो अंकों तक ले जाते। यूपीए के 10 साल में औसत वृद्धि दर 8.1 रही। इसके विपरीत पूर्ण बहुमत के बावजूद मोदी सरकार पिछले पांच साल में 8 का आंकड़ा नहीं छू सकी। 87 साल के डॉ. सिंह की बारीक नजर देश के माहौल और मुद्दों पर लगातार बनी हुई है। मीडिया की सुर्खियों से दूर रहने वाले डॉ- सिंह ने पिछले दिनों एक अखबार से बात करते हुए कहा, कई महान नेता सामान्य परिवार से ही थे। लालबहादुर शास्त्री, मोरारजी देसाई भी गरीब परिवारों से आए, लेकिन उन्होंने कभी आत्मप्रचार के लिए अपनी गरीबी और कठोर हालात पर डींगें नहीं हांकीं। मोदी देश के पहले पीएम हैं, जिनका जन्म आजादी के बाद हुआ है। यह हमारे राष्ट्र निर्माताओं की नीतियों का ही फल है, जिनके कारण न केवल आर्थिक विकास हुआ, बल्कि सबको प्रगति के समान अवसर भी मिले।
डॉ. सिंह ने कहा, मौजूदा सरकार के पास नए सुधार शुरू करने के लिए पूर्ण बहुमत होने के बावजूद ऐसा करने में वह पूरी तरह नाकाम रही। इस सरकार की सबसे बड़ी विफलता रोजगार के मोर्चे पर है। दूसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधार शुरू करने के बजाय नोटबंदी और त्रुटिपूर्ण जीएसटी लागू करने जैसे विध्वंसक और नासमझी वाले फैसले लिए। परिणाम यह है कि 4 करोड़ लोग नौकरी गंवा चुके हैं। बेरोजगारी दर 45 सालों में सर्वाधिक है। आर्थिक वृद्धि दर 5 साल में सबसे कम है और गणना का तरीका बदलने के बावजूद औसत जीडीपी निराशाजनक और शंकापूर्ण है। 2018 में औद्योगिक वृद्धि दर 4.45 प्रतिशत रही, जबकि यूपीए सरकार के 2004-14 के कार्यकाल में यह 8.35 प्रतिशत थी। इस सरकार में कृषि वृद्धि दर सिर्फ 2.9 प्रतिशत है, जबकि हमारे 10 सालों में 4-2 प्रतिशत थी। घरेलू बचत पिछले 20 साल में सबसे कम है। बैंकों के एनपीए 5 गुना बढ़ गए हैं। नया निवेश 14 सालों में न्यूनतम स्तर पर है। भाजपा ने भविष्य के लिए संस्थान बनाने की बात कही थी, लेकिन मुझे कहते हुए पीड़ा हो रही है कि 70 सालों के इतिहास में मोदी सरकार संस्थानों के लिए सबसे विनाशकारी साबित हुई है।
पूर्व पीएम ने कहा, आजादी के समय देश में 70 प्रतिशत गरीब थे। 7 दशकों की नीतियों के कारण अब 20 प्रतिशत गरीब बचे हैं। यह सही समय है, जब हम बिना कोई नया टैक्स लगाए जीडीपी का 1.2 से 1.5 प्रतिशत तक खर्च करके न्याय योजना के जरिए एक ही झटके में गरीबी को मिटा सकते हैं और इसके साथ ही बिगड़ी हुई अर्थव्यवस्था भी पटरी पर आ जाएगी। इससे भारत में नए युग का सूत्रपात होगा।

‘न मांग, न निवेश’ क्या आसमान से गिरेगा विकास : राहुल बजाज

ऑटो सेक्टर की टॉप कंपनियों में शुमार बजाज ऑटो के चेयरमैन राहुल बजाज ने ऑटो इंडस्ट्री के बिगड़ते हालात पर चिंता जाहिर करते हुए केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों पर निशाना साधा है। बजाज ऑटो की सालाना आम बैठक में शेयरधारकों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा—
‘ऑटो सेक्टर बेहद मुश्किल हालात से गुजर रहा है। कार, कमर्शियल व्हीकल्स और टू-व्हीलर्स सेग्मेंट की हालत ठीक नहीं है। कोई मांग नहीं है और कोई निजी निवेश भी नहीं है, तो ऐसे में विकास कहां से आएगा? क्या विकास आसमान से गिरेगा?’
देश के बड़े उद्योगपतियों में गिने जाने वाले राहुल बजाज ने सरकार पर निशाना साधा, ‘सरकार कहे या न कहे लेकिन आईएमएफ और वल्र्ड बैंक के आंकड़े बताते हैं कि पिछले तीन-चार सालों में विकास में कमी आई है। दूसरी सरकारों की तरह वे अपना हंसता हुआ चेहरा दिखाना चाहते हैं, लेकिन सच्चाई यही है।’

ऑटो सेक्टर की मंदी का असर अब स्टील सेक्टर पर

देश के ऑटो सेक्टर में आई मंदी का सीधा असर पर स्टील सेक्टर पर भी दिखना शुरू हो गया है। ऑटो सेक्टर में स्लोडाउन की वजह से अब ऑटो सेक्टर से स्टील के लिए आने वाली डिमांड में भी कमी हो रही है। इसके अलावे रियल एस्टेट में आई मंदी से री-बार की भी डिमांड कम हो गई है।
इस आर्थिक मंदी का असर ‘टाटा स्टील समूह’ जिसके 60 प्रतिशत माल की खपत ऑटो सेक्टर में होती है, के वित्तीय आंकड़ों पर भी पड़ा है। पिछले दिनों टाटा स्टील की ओर से जारी चालू वित्तीय वर्ष के तिमाही आंकड़ों (अप्रैल, मई व जून) में यह असर साफ देखा गया है। कंपनी प्रबंधन द्वारा जारी वित्तीय रिपोर्ट के अनुसार कंपनी ने बीते वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में 1856 करोड़ रुपये जबकि चौथी तिमाही में 2309 करोड़ का मुनाफा अर्जित किया था। जबकि चालू वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में मुनाफा घट कर 1567 करोड़ रुपये हो गया है।
कंपनी के वित्तीय आंकड़ों के नतीजे जारी करते हुए टाटा स्टील के सीईओ सह एमडी टीवी नरेंद्रन ने माना है कि ऑटो सेक्टर में आई कमजोरी का असर पूरे स्टील इंडस्ट्री पर पड़ रहा है। इसके कारण ही टाटा स्टील के मुनाफे में कमी आई है। हालांकि भारत की मजबूत व्यापार मॉडल के कारण हमें नए ग्राहक जोडऩे का मौका मिला। पिछले 26 माह की मंदी का असर स्टील सेक्टर पर भी पड़ रहा है। इस माह स्टील की डिमांड सबसे कम है। केंद्र सरकार द्वारा की गई घोषणा से बाजार जल्द बेहतर होने की उम्मीद है।
आनंद सेन, प्रेसिडेंट टीक्यूएम एंड स्टील बिजनेस, टाटा स्टील

‘कांग्रेस के 55 साल से भारत बनेगा 5 ट्रिलियन इकोनॉमी’

संसद में मौजूदा वित्तीय वर्ष का बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने साल 2024 तक भारत के 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाने की बात कही है जो आर्थिक मंदी के बीच हाल फिलहाल मुमकिन नहीं दिखता। हालांकि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उम्मीद जताई है कि भारत 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी बन जाएगा। उन्होंने कहा कि पिछली सरकारों की मजबूत नींव के कारण ऐसा होगा। इसी के साथ उन्होंने कांग्रेस के 55 साल की आलोचनाओं को भी गलत बताया। उन्होंने कहा, ‘वित्त मंत्री कह सकती हैं कि भारत 2024 में 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा क्योंकि इसकी मजबूत नींव पहले रखी जा चुकी है। ब्रिटिशों के जरिए नहीं बल्कि स्वतंत्रता के बाद से भारतीयों के प्रयास से ऐसा हुआ है।’ कांग्रेस के 55 साल की आलोचना को गलत बताते हुए उन्होंने कहा, ‘जो लोग कांग्रेस के 50-55 साल के शासन की आलोचना करते हैं, वे भूल जाते हैं कि आजादी के समय भारत की क्या स्थिति थी। आजादी के बाद से भारतीयों के प्रयासों के कारण कई आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। अगर आज भारत पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है तो इसके पीछे पूर्वजों की रखी 1.8 ट्रिलियन डॉलर की मजबूत नींव है।’

ऑटो सेक्टर ने सरकार से लगाई गुहार

वाहन उद्योग ने सरकार से वाहनों पर जीएसटी दर घटाने और प्रोत्साहन पैकेज देने की मांग की है। वाहन उद्योग से जुड़े दिग्गजों ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ बैठक की और उनका ध्यान उद्योग की चुनौतियों की ओर आर्किषत किया। इसमें वाहन क्षेत्र में नौकरियों पर लटक रही तलवार भी शामिल हैं। वाहन निर्माताओं ने इस बैठक में कहा कि मांग में सुधार के लिए वाहनों पर जीएसटी को 28 प्रतिशत से घटाकर 18 प्रतिशत करने की जरूरत है। वाहन विनिर्माताओं के संगठन सियाम के अध्यक्ष राजन वढेरा ने कहा, ‘हां, हमने वाहन क्षेत्र के लिए कुछ रियायतों की मांग की है और वह इस पर विचार करेंगे। मुझे उम्मीद है कि वाहन क्षेत्र के लिए प्रोत्साहन पैकेज जल्द आएगा।’

‘अभी नहीं जगे तो पछताएंगे’

इंडस्ट्री अब और ज्यादा झटके बर्दाश्त नहीं कर सकती। इंडस्ट्री को एक से बढ़ कर एक झटके दिए जा रहे हैं। पहले नोटबंदी, फिर जीएसटी, आईबीसी और इसके बाद रेरा की वजह से उद्योगों के सामने बड़ी मुसीबत खड़ी हो गई है। आईएलएन्डएफएस संकट के बाद एनबीएफसी कंपनियां मुसीबत में पड़ गई हैं। सरकार को यह समझना होगा कि बाजार में लिक्वडिटी नहीं है। धंधा करने के लिए पैसा नहीं है। इसलिए इकनॉमी को और झटके की जरूरत नहीं है।
मोहनदास पई, जाने-माने उद्योगपति और इन्फोसिस के पूर्व चेयरमैन

‘राजीव बजाज भी सरकार से नाखुश’

राहुल बजाज के बेटे और कंपनी के एमडी राजीव बजाज ने भी इलेक्ट्रिक व्हीकल को लेकर मोदी सरकार की योजनाओं पर सवाल खड़े किए हैं। आम बजट पेश होने के बाद एक इंटरव्यू में राजीव बजाज ने कहा, ‘यह सरकार रातोंरात सबकुछ बदल देना चाहती है।’ उन्होंने सरकार से पूछा कि अगर कल को ग्राहक इलेक्ट्रिक व्हीकल मॉडल स्वीकार नहीं करते हैं, तो ऑटो इंडस्ट्री का क्या होगा? क्या हम दुकान बंद कर, घर बैठ जाएं?

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