यूपी ब्लाक प्रमुख चुनाव : दस्यू दल से भी खौफ़नाक दिखा बीजेपी का चेहरा!
उत्तर प्रदेश में जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनावों में सत्ता की भरपूर दबंगई के बाद ब्लॉक प्रमुख पद के चुनावों में हिंसा, गुंडागर्दी, छिनैती से लेकर मारपीट के नजारे दिखाई दिए।
● आलोक शुक्ल
उत्तर प्रदेश में हो रहे ब्लाक प्रमुख के चुनाव में आठ जुलाई को नामांकन के दिन राज्य के अलग-अलग हिस्सों से दहशतगर्दी की जो तस्वीरें सामने आई हैं, वो रामराज्य वाले सुशासन की कल्पना से कोसों दूर हैं। किसी भी कीमत पर ब्लाकों पर कब्जा जमाने की सोच बैठे भारतीय जनता पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं ने गुंडई के बल पर जिस तरह से चुनावों को ही लूट लिया वह लोकतंत्र को शर्मसार करने वाला ही था।
गोरखपुर से गाजियाबाद तक हर जिले में सत्ता संरक्षित गुंडों ने जो अराजकता फैलाई और उसमें प्रशासन का साथ देखकर लोकतंत्र में आस्था रखने वाला हरेक व्यक्ति हैरान था। बीजेपी कार्यकर्ताओं की गुंडई किसी दस्यु दल को भी मात देने वाली थी।
बीजेपी उम्मीदवारों और उनके समर्थकों ने तकरीबन राज्य भर में विरोधी पक्ष के उम्मीदवारों को पर्चा भरने से रोकने की कोशिश में हिंसा, मारपीट, झड़प, छिनैती, गोलीबारी, बमबारी का करतब दिखाया। कुछ जगहों पर समाजवादियों ने भी अपने हुनर दिखाने की कोशिश की।कोई किसी से कम नहीं दिखना चाहता था। लखीमपुर खीरी में नामांकन के लिए पहुंची महिला की साड़ी खींचने की घटना हो या सीतापुर का वो खौफनाक दृश्य, जिसमें पुलिस के सामने गोलियां व बम चल रहे हैं, गोली से घायल आदमी खड़ा है और उसे अस्प्ताल ले जाने में समय लग रहा है। सारा दृश्य नेटफ्लिक्स के किसी ओपेरा जैसा है।
नामांकन स्थलों पर मौजूद पुलिस की भूमिका देखकर यह समझना कोई मुश्किल नहीं है कि पिछले दिनों सम्पन्न हुए जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में सीट लूट के बाद ब्लाक प्रमुख चुनाव के पर्चे भरने में बीजेपी का सारा जिम्मा पुलिस ने सम्भाल लिया था।
गुंडई के आगे सब बेबस
जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनावों से सबक लेते हुए ब्लॉक प्रमुख के नामांकन के दिन सपा ने कई जगहों पर जमकर मोर्चा लिया लेकिन बीजेपी और प्रशासन की सम्मिलित ताकत के आगे सपा बेबस नजर आई। उसके नेता-कार्यकर्ता कई जगह पिटते देखे गए।
सत्ता की दबंगई का आलम यह रहा कि विपक्षी दलों के कद्दावर नेताओं, पूर्व मंत्रियों तक को नामांकन दाखिल करने से रोका गया। कन्नौज जिले में नामांकन के दौरान चल रहे बवाल की कवरेज कर रहे एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल के संवाददाता नित्य मिश्रा को बीजेपी समर्थकों ने जमकर पीटा।
सिद्धार्थनगर जिले में अपनी पत्नी का नामांकन दाखिल कराने गए पूर्व विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय के साथ जमकर हाथापाई हुई और उनके हाथ से पर्चा लेकर फाड़ दिया गया। अम्बेडकरनगर जिले में बीएसपी के पूर्व मंत्री लाल जी वर्मा के हाथ से नामांकन का पर्चा छीन कर फाड़ दिया गया।
सीतापुर जिले के कसमंडा ब्लॉक में निर्दलीय प्रत्याशी के पर्चा दाखिल होने के दौरान जमकर गोलियां चलीं। किसी फिल्मी सीन की तरह निर्दलीय मुन्नी देवी को नामांकन से रोकने के लिए दर्जनों राउंड गोलियां दागी गयीं। भारी तादाद में पुलिस की मौजूदगी में हथगोले भी फेंके गए।

जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनावों से उलट इस बार कई जगहों पर सपा ने भी जमकर मोर्चा लिया। कुछ जगहों पर तो एसपी के लोगों ने ही बवाल काटा और मारपीट भी की। नामांकन के दौरान इटावा में बीजेपी प्रत्याशी के बेटे को गोली लगी। यहां एसपी के लोगों पर जबरन नामांकन से रोकने के आरोप लगाए गए हैं।
महराजगंज में एक बीजेपी प्रत्याशी को दौड़ा कर पीटा गया। मैनपुरी में बीजेपी विधायक की गाड़ी पर पथराव किया गया। बुलंदशहर में आमने-सामने आ गए एसपी-बीजेपी समर्थकों को थामने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा।
हरदोई में एसपी समर्थित प्रत्याशी ने नामांकन पत्र छीनकर फाड़े जाने का आरोप लगाया तो उग्र समर्थकों ने बवाल काट दिया। उन्नाव में एसपी के विधान परिषद सदस्य सुनील सिंह साजन का अपने समर्थकों को उकसाने व दबंगई करने का वीडियो भी वायरल हुआ है। झांसी जिले में ब्लॉक प्रमुख के नामांकन को लेकर एसपी एवं बीजेपी के कार्यकर्ता भिड़ गए और जमकर पत्थर चले।
यूपी पुलिस में एडीजी, लॉ एंड आर्डर प्रशांत कुमार की नजर में राज्य के 825 नामांकन केन्द्रों में से सिर्फ 14 केंद्रों पर नामांकन पत्रों को छीनने, लड़ाई झगड़े की रिपोर्ट्स आई हैं। जबकि सच्चाई इसके बिल्कुल उलट है। समाचार पत्रों की खबरें बताती हैं कि कोई ऐसा जिला नहीं जहां ये सब न हुआ हो।
‘निर्विरोध’ का खेल
मार्च-अप्रैल महिने में हुए पंचायत चुनावों में सदस्य पदों पर बीजेपी के ज्यादातर प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा था। जिससे बीजेपी को जिला पंचायतों में अध्यक्ष और ब्लाकों में प्रमुख के पदों पर अपने लोगों को बैठाने के लिए उनका निर्विरोध निर्वाचन ही रास्ता था और इस रास्ते को जिस साधन से तय किया जा सकता है वो बीजेपी ने किया।
ब्लाक प्रमुख के चुनाव में बीजेपी ने विपक्षी उम्मीदवारों को नामांकन से रोका और जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव की ही तर्ज पर निर्विरोध चुने जाने का खेल जमकर खेला। जिसमें ज्यादातर जगहों पर सत्ताधारी बीजेपी के प्रत्याशी कामयाब भी रहे।
भदोही के औराई ब्लॉक में बीजेपी प्रत्याशी निर्विरोध जीत गया। आगरा जिले में तो ब्लाक प्रमुख के चुनाव में बीजेपी ने 15 ब्लॉक में से 12 में अपने प्रमुख निर्विरोध निर्वाचित करा लिए हैं। अब यहां केवल तीन ब्लाक पर चुनाव होंगे जहां एसपी से मुकाबला है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के जिले गोरखपुर में कुल बीस ब्लाकों में से 17 में बीजेपी के प्रत्याशी निर्विरोध चुन लिए गए। गोरखपुर क्षेत्र के 10 जिलों के कुल 147 ब्लाकों में से 60 में बीजेपी के लोग निर्विरोध चुन लिए गए। इनमें महराजगंज में 4, कुशीनगर में 8, देवरिया में 6, बस्ती में 12, सिद्धार्थ नगर 3, संत कबीर नगर 1, आजमगढ़ 2, मऊ 2 और बलिया में 5 शामिल हैं।
‘पहले गुंडा बनो, फिर नेता’
बीजेपी कार्यकर्ताओं की गुंडई, प्रशासन और चुनाव आयोग की चुप्पी देखकर लोगों को यह समझ आ जाना चाहिए कि बीजेपी ने ये दोनों चुनाव लीग मैच के तौर पर खेले हैं। जिसमें अभी सिर्फ मार पिटाई, धर पकड़ाई और साड़ी खिंचाई भर हुई है। 2022 के सेमीफाइनल में वो अपनी पूरी ताकत से उतरेगी और ऐसे ऐसे करतब करेगी कि 2024 में फाइनल मैच में वाकओवर मिल जाये।
भाजपा ने इन चुनावों में जिस राजनीतिक संस्कृति का बीजरोपण किया है उसका अंकुरण आगे चलकर कैक्टस का रुप धरेगा जो लोकतंत्र के लिए घातक साबित होगा। बीजेपी द्वारा रखी गई राजनीति की ये आधारशिला आने वाली पीढ़ी को पहले गुंडा बनाएगी फिर नेता।
लोकतंत्र के चीरहरण का नंगा नाच चल रहा है और प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री तथा सबसे बढ़कर इन सभी के अभिभावक मोहन भागवत मौन हैं। संघ और बीजेपी के लिए अगर लोकतंत्र यही है तो फिर आगे से चुनाव कराने की जरूरत ही नहीं है।
कैसे हो आतताई शासन का मुकाबला
उत्तर प्रदेश में इस वक्त जो सिस्टम है वह दरअसल हार्डकोर अपराधियों की तरह व्यवहार कर रहा है। जब कभी आतताई शासन कर रहे हों तो उनका मुकाबला रणनीति, कूटनीति, विचार विमर्श से नहीं किया जा सकता उनसे मुकाबले का केवल एक तरीका होता है बाहुबल। लेकिन, याद रखिये बाहुबल का मतलब गुंडई नही हनक है।
यह याद रखा जाना चाहिए कि मुकाबला अब किसी राजनीतिक दल से नहीं, ‘गिरोह’ से है। जिसका मुकाबला सिर्फ फ़ेसबुक, ट्वीटर, व्हाट्सएप जैसे खिलौनों से नहीं हो सकता, रियल मैच खेलना होगा। वन टू वन फाइट करना होगा।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय लल्लू जमीन पर काफी मेहनत करते दिख रहे हैं, जनमुद्दों पर उनकी टीम सरकार से लड़ भी रही है लेकिन नई बीजेपी से लड़ने के लिए यही काफी नहीं है। योगी की बीजेपी से मुकाबले के लिए जरूरी बाहुबली का अभाव उसकी बड़ी कमजोरी है। कांग्रेस को अपनी इस कमजोरी से पार पाना होगा।
समाजवादी पार्टी को मौजूदा बीजेपी के मुकाबले में माना जा रहा है। समाजवादियों ने हमेशा बाहुबल का सम्मान किया है, लेकिन अखिलेश के नेतृत्व वाली सपा में वह हनक नहीं दिख रही जो मुलायम-शिवपाल के दौर में थ। पहले जिला पंचायत चुनाव फिर ब्लाक प्रमुख चुनाव में सपा कार्यकर्ताओं की पस्त हालत देखकर स्पष्ट हो गया है कि अब समाजवादियों में बाहुबल नही रह गया उसकी जगह केवल ट्वीटर व फेसबुक पर बांय बांय चिल्लाने वाले और भइया जी प्रनाम करने वालों ने ले ली है।
अखिलेश अकेले अपने दम पर बदली हुई इस बीजेपी से मुकाबला नहीं कर सकते। उन्हें पार्टी में अपने चाचा शिवपाल यादव की ससम्मान वापसी करवा लेनी चाहिए। मुलायम सिंह यादव के अलावा शिवपाल के पास ही वह हुनर है जिससे अखिलेश पूरी ताकत के साथ बीजेपी की गुंडई से मुकाबला कर सकते हैं। अखिलेश को यह ध्यान रखना चाहिए कि जनता कमजोर राजा को पसन्द नही करती।

‘कानून व्यवस्था की आंख पर पट्टी बांधकर ‘लोकतंत्र का चीरहरण’
कानून व्यवस्था की आंख पर पट्टी बांधकर ‘लोकतंत्र का चीरहरण’ चल रहा है। पीएम साहब और सीएम साहब इसके लिए भी बधाई दीजिए कि यूपी में आपके कार्यकर्ताओं ने, कितनी जगह बमबाजी, गोलीबारी, पत्थरबाजी की, कितने लोगों का पर्चा लूटा, कितने पत्रकारों को पीटा, कितनी जगह महिलाओं से बदतमीजी की, कानून व्यवस्था की आंख पर पट्टी बांधकर, लोकतंत्र का चीरहरण चल रहा है।
प्रियंका गांधी, महासचिव, कांग्रेस