मोदी राज का ‘प्रलय प्रवाह’ और मीडिया
शब्द नहीं हैं! अगर ज्यादा ढूंढो तो वे खोखले लगने लगते हैं। किसी भारी से भारी, बड़े से बड़े शब्द में वह दर्द, वह वेदना नहीं आ रही जो चारों तरफ बिखरी पड़ी है।असहाय, बेबस लोग! पर मीडिया क्या कर रही है? सच को छुपा रही है, झूठी तारीफों के पुल बांध रही है। मगर एक दिन सच सामने आएगा। तब यही कहा जाएगा कि मीडिया तुम्हारा काम क्या था? झूठ बोलना? सच को छुपाना? देश जब इतनी बड़ी विपत्ति में घिरा हुआ था तब तुम कह रहे थे सब ठीक है।
● शकील अख्तर
शब्द नहीं हैं! अगर ज्यादा ढूंढो तो वे खोखले लगने लगते हैं। किसी भारी से भारी, बड़े से बड़े शब्द में वह दर्द, वह वेदना नहीं आ रही जो चारों तरफ बिखरी पड़ी है।असहाय, बेबस लोग!
जयशंकर प्रसाद की कामायनी की याद आ जाती है। प्रसाद जिनके यहां भाषा का वैभव अपने चरमोत्कर्ष में दिखाई देता है। और उस समय उसमें वे अर्थ भी होते थे जो कवि चाहता था- “प्रलय प्रवाह।“
प्रलय का यह मार्मिक वर्णन इंसान को झकझोर देता है-
“लगते प्रबल थपेड़े धुंधले तट का था कुछ पता नहीं
कातरता से भरी निराशा देख नियति पथ बनी वहीं।“
कामायनी से क्या क्या लिखें? “प्रहर दिवस कितने बीते, अब इसको कौन बता सकता।“ या “काला शासन-चक्र मृत्यु का, कब तक चला, न स्मरण रहा” या “हाहाकार हुआ क्रंदनमय!“ यही स्थिति है। मगर वह प्रकृति की प्रलय थी। कवि अगला ही सर्ग (अध्याय) आशा के नाम से लिखता है। लेकिन यहां उम्मीद की कोई किरण दूर दूर तक नजर नहीं आ रही।
हिन्दी का आखिरी महाकाव्य कामायनी जिसमें 15 सर्ग हैं, चिंता के पहले सर्ग से शुरू होकर तत्काल आशा के दूसरे सर्ग पर पहुंच जाता है। मगर यहां लगता है चिंता के बाद विनाश का तांडव शुरू हो गया है।
प्रसाद प्रलय को देवों के घंमड का परिणाम बताते हैं। यहां कोरोना प्रलय की तरह नियंत्रण के बाहर क्यों है यह कौन बताएगा? पिछले एक साल से लिख रहा, बता रहा मीडिया? वह तो कह रहा है कि बंगाल में यह जनता प्रधानमंत्री को सुनने क्यों आ रही है! किसी ने निमंत्रण दिया था? जनता पर ही सारी जिम्मेदारी डाली जा रही है।
लेकिन जैसा कि शुरू में कहा आज शब्द, भाषा अपंग लग रहे हैं। लगता है कही जाने वाली बात का वज़न नहीं उठा पा रहे। संप्रेषित नहीं कर पा रहे। तो कामायनी के बाद एक लोककथा सुनिए। खास तौर से हमारे मीडिया वाले दोस्ता!
एक मां थी और एक उसका बेटा। बेटा बड़ा हो गया। बाहर से कुछ कुछ सामान लाने लगा। कहता मां देख यह लाया हूं। मां कहती कि कहां से लाया है? कहता काम करता हूं, कमाता हूं तो लाता हूं। मां रख लेती। धीरे धीरे बड़े सामान आने लगे, कीमती। मां को डर लगता, शक होता मगर लालच हो गया था। रख लेती। पूछना भी बंद कर दिया। अड़ोस पड़ोस में लड़के की ताऱीफ करने लगी। खूब मेहनत करता है, कमाता है। मां का ख्याल रखता है।
एक दिन पता चला कि लड़का पकड़ा गया। मां को बुलाया गया। मां भागी हुई पहुंची। पूछा क्या हुआ? बताया गया लड़का चोर है। मां के मुंह से गालियां निकलने लगीं। कहा खानदान का नाम डूबो दिया। सब बरबाद कर दिया। अरे चोरी करता था और झूठ बोलता था। तेरा झूठ मैं नहीं पहचान पाई। सामानों के चमक दमक में खो गई। मां का विलाप जारी था। लड़का भी रोने लगा कहा मां मुझे पहली बार ही रोक देती तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता। जब पहली बार मैं चोरी करके लाया था तो तुझे शक तो हुआ था, मगर लालच आ गया था। मेरी झूठी तारीफें करने लगी थी। वही झूठी तारीफें आज हमें खा गईं। राजा ने जेल की सज़ा सुना दी।
मां रोती हुई राजा के पास गई पूरी कहानी सुनाई। राजा ने कहा ठीक है गलती लड़के की नहीं तुम्हारी है। झूठी तारीफें करने से बड़ा अपराध कुछ नहीं होता। इसकी सज़ा फांसी से कम नहीं हो सकती। तुम जानती थीं फिर भी झूठ बोला। एक इंसान की जिन्दगी बरबाद कर दी। मां का काम है लड़के के वास्तविक गुण अवगुण उसे बताना। न कि झूठी प्रशंसा करके उसे भ्रमित करना। सैनिकों इसे चौराहे पर ले जाकर सबके सामने सूली पर लटकाओ, ताकि लोग देख सकें कि झूठी तारीफें करने वाले का क्या हश्र होता है।
तो दोस्तों यह कहानी कभी भी घटित हो सकती है। मां मीडिया का रोल कर रही थी। सच को छुपा रही थी, झूठी तारीफों के पुल बांध रही थी। मगर एक दिन सच सामने आ गया। अब भी आएगा। तब यही कहा जाएगा कि मीडिया तुम्हारा काम क्या था? झूठ बोलना? सच को छुपाना? देश जब इतनी बड़ी विपत्ति में घिरा हुआ था तब तुम कह रहे थे सब ठीक है।
सरकार अकेले क्या क्या करे? जनता अपनी जिम्मेदारी नहीं समझ रही। अस्पताल में बेड नहीं है। जनता घर से ले आए! आक्सिजन नहीं है। तो मंत्री जी ने कह तो दिया कम- कम लो! सही कह रहे हो। सरकार क्या करे?
इसलिए देश के सबसे बड़े प्रकाशनों और चैनलों में से एक इंडिया टुडे ने सार्वजनिक रूप से सरकार से नहीं यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बीवी श्रीनिवास से मदद मांगी। और श्रीनिवास ने जैसा कि वह सबके लिए कर रहे हैं फौरन उनकी प्लाजमा की मांग पूरी की। इसी तरह के बड़े चैनलों के पत्रकार श्रीनिवास से मदद मांग रहे हैं।

यहां यह बताना गलत नहीं होगा कि यही पत्रकार जब समस्या में नहीं पड़े थे तो जाने किन किन लोगों के नाम की बड़ी बड़ी खबरें चलाते रहते थे कि ये जनता की बड़ी सेवा कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि वे या कोई और नेता लोगों के काम नहीं कर रहे। मगर मीडिया का काम जनरलाइज करना नहीं है। जो सामान्य लोगों से लेकर बड़े बड़े वीआईपी तक की देश के हर शहर में मदद कर रहा हो, लगातार एक साल से ज्यादा समय से उससे मीडिया मदद तो पूरी ले रहा है, मगर जनता को बताते समय उसके साथ चार और नामों को शामिल कर लेता है कि ये भी मदद कर रहे हैं।
सत्ता पक्ष के आदमी का मदद करना और विपक्ष की मदद करने में बहुत फर्क है। और खास तौर से इस दौर में। जब कांग्रेस को ही खत्म करने की बात कही जा रही हो। जरा सा सक्रिय होने पर उसके पीछे तमाम एजेन्सियां लगा दी जाती हैं। लेकिन वाकई श्रीनिवास धन्य है कि लाक डाउन में कहां कहां लोगों को राशन पहुंचाने से लेकर आज अस्पताल में बेड दिलाने, आक्सिजन, जीवन रक्षक रेमडेसिविर का इंजेक्शन, वेंटिलेटर, प्लाज्मा दिलाने की सब व्यवस्थाएं करने में लगे हुए हैं। आश्चर्यजनक रूप से केन्द्र सरकार में मंत्री, पूर्व आर्मी चीफ वीके सिंह को जब ट्वीटर पर सार्वजनिक रूप से मदद मांगना पड़ी तब भी यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष श्रीनिवास ही सामने आए।

श्रीनिवास ने कहा कि हालत इतने गंभीर हैं कि केन्द्रीय मंत्री को अपने परिवार के लिए एक बेड की मदद मांगनी पड़ रही है। मगर हम वह भी करेंगे। मंत्री जिस गाजियाबाद से सांसद हैं वहां अपने भाई को भर्ती नहीं करवा पा रहे थे। श्रीनिवास ने कहा कि जहां आप चाहते हैं वहीं व्यवस्था करते हैं। डिटेल भेजिए।
मंत्री के लिए या सरकार के लिए ये शर्म की बात है या नहीं पता नहीं। मगर यूथ कांग्रेस के लिए तो गर्व के क्षण होंगे ही। जब गोदी मीडिया से लेकर केन्द्र सरकार के मंत्री तक की सहायता के लिए उसका अध्यक्ष सबसे आगे खड़ा दिखाई दे रहा हो। लेकिन साथ ही यहां यूथ कांग्रेस के उन बहुत सारे पूर्व अध्यक्षों को भी अपने गिरहबान में झांक कर देखना चाहिए कि वे इस समय क्या कर रहे हैं! कितने लोगों की मदद की उन्होंने? ठीक है लोगों की मदद नहीं कर पाए तो पार्टी कार्यकर्ताओं की करते! उनकी भी नहीं कर पाए तो कम से कम चुप बैठते! मगर वे तो इस समय भी कांग्रेस को कमजोर करने में लगे हुए हैं।
जी 23 के नाम से गुट बनाकर कांग्रेस पर सवाल खड़े करने वाले नेताओं में से अधिकांश यूथ कांग्रेस से ही बने हैं। तीन चार तो उसके अध्यक्ष रहे हैं। उन्हें श्रीनिवास की मदद करने के लिए संसाधन देने चाहिए थे। अभी दस साल यूपीए सरकार में मलाईदार मंत्रालयों में मंत्री रहे। हर तरह से संपन्न हैं। कुछ हिस्सा यूथ कांग्रेस के जरिए जनता की सेवा में खर्च करना चाहिए। राहुल की आलोचना करें, मोदी जी को खुश करने की कोशिशें भी करें मगर थोड़ी जनता की मदद भी कर दें!