केंद्र के ‘सब कुछ बेचो’ नीति के बरक्स छत्तीसगढ़ से आयी खबर एक मरते हुई देंह में सांस फूंकने जैैसा है
● आलोक शुक्ल
केंद्र की मोदी सरकार जब घाटे के नाम पर एक एक कर तमाम सरकारी संस्थानों को बेचने की राह पर है तब छतीसगढ़ राज्य से आयी एक के बाद एक दो खबरें किसी दम तोड़ते शरीर में सांस फूंकने जैसी हैं। छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने दुर्ग जिले में अपना अंतिम सांस गिन रहे निजी क्षेत्र के स्व. चंदूलाल चन्द्राकर मेमोरियल मेडिकल कालेज के अधिग्रहण की घोषणा की है। इसके पहले राज्य सरकार नगरनार स्टील प्लांट को खरीदने का संकल्प भी विधानसभा में पारित कर चुकी है।

मंगलवार को दुर्ग के कंचादुर गांव स्थित मेडिकल कॉलेज में चंदूलाल चन्द्राकर के पुण्यतिथि कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा, “स्व. चंदूलाल चंद्राकर मेमोरियल मेडिकल कॉलेज का राज्य सरकार अधिग्रहण करेगी।”
सीएम बघेल ने कहा कि इसका प्रस्ताव जल्द ही कैबिनेट बैठक और सदन में लाया जाएगा। साथ ही शासकीय अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू होगी। इस मेडिकल कॉलेज की मान्यता एमसीआई ने रद्द कर दी थी जिससे इसके संचालन में दिक्कत होने की वजह से प्रबंधन ने सरकार से आग्रह किया था कि प्रदेश में मेडिकल एजुकेशन को बेहतरी को देखते हुए सरकार इस कॉलेज का अधिग्रहण करें।

इसके पहले भी भूपेश बघेल ऐसा ही एक और निर्णय कर चुके हैं। केंद्र सरकार ने हाल में देश के सार्वजनिक क्षेत्र के जिन 26 प्रतिष्ठानों को अडानी अम्बानी को बेंचने का फैसला किया उनमे छ्त्तीसगढ़ के बस्तर में बना नगरनार स्टील प्लांट भी है। स्थानीय लोग इस बिकवाली को आदिवासियों के साथ धोखा मानते हैं। उनका कहना है कि प्लांट के लिए यह कहकर जमीन ली गई थी कि सरकारी फैक्ट्री होगी। लेकिन अब उसे बिना चलाए ही बेचा जा रहा है जो सरासर धोखा है। सीएम भूपेश बघेल ने जनभावनाओं को समझा और केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखकर राज्य सरकार द्वारा प्लांट खरीदने का प्रस्ताव सामने रख दिया। इसके लिए उन्होंने बाकायदा विधानसभा में संकल्प भी पारित करा लिया।
सीएम बघेल के इन दो निर्णयों से जहां तेजी से बिक रहे सार्वजनिक क्षेत्र को नई संजीवनी मिलेगी वहीं केंद्र सरकार और प्लांट खरीदने की योजना बना रहे कारपोरेट घरानों के सामने नया संकट खड़ा हो गया है।
यदि कुछेक और गैरभाजपा शासित राज्यों ने छत्तीसगढ़ की तर्ज पर अपने राज्यों में केंद्र के बिक रहे सार्वजनिक उद्यमों को खरीदने का प्रस्ताव सामने रख दिया तो केंद्र के लिए एक नया संकट खड़ा हो जाएगा। उसे अब इस बात का जवाब देना होगा कि अपेक्षाकृत कम संसाधनों वाला कोई राज्य यदि घाटे में चल रहे सार्वजनिक उपक्रमों को खरीद सकता है, चला सकता है और घाटे वाले निजी संस्थानों का अधिग्रहण कर सकता है तो ज्यादा संसाधनों से लैस केंद्र सरकार सार्वजनिक संस्थानों को बेचने की जल्दी में क्यों है? आने वाले समय में प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पार्टी भाजपा, दोनों को यह जवाब देना होगा।