जो शिक्षा, कृषि नीति में हुआ वही दूरसंचार नीति में भी होगा!

Read Time: 4 minutes

अगले 10 साल के लिए देश की स्पेक्ट्रम नीति तय हो रही है, दूरसंचार सेवाएं देने वाली कंपनियाँ नाराज़ हैं कि उनकी राय नहीं ली जा रही है।

● हरजिंदर

देश की शिक्षा नीति और कृषि सुधार जिस दिशा में गए हैं अब देश की दूरसंचार नीति भी उसी दिशा में जाती दिख रही है। नई शिक्षा नीति जिस समय जारी की गई उस समय दबी जबान से ही सही, ऐसे बहुत से सुर उठे थे कि इसे बनाने में सभी हितधारकों यानी स्टेकहोल्डर्स की राय नहीं ली गई।

कृषि सुधारों के नाम पर बने तीन क़ानूनों में भी यही बात सामने आई। नतीजा यह है कि लगभग डेढ़ महीने से किसान संगठन दिल्ली को घेरे बैठे हैं। और अब जब अगले 10 साल के लिए देश की स्पेक्ट्रम नीति तय हो रही है, दूरसंचार सेवाएं देने वाली कंपनियाँ नाराज़ हैं कि उनकी राय नहीं ली जा रही है।

स्पेक्ट्रम नीति

स्पेक्ट्रम नीति तय करने के लिए स्टेकहोल्डर्स के साथ निर्णायक विमर्श यानी की-कंसल्टेशन की जो प्रक्रिया 6 जनवरी से शुरू हुई है, उसमें गूगल, फेसबुक, इंटेल, क्वालकॉम जैसी टेक कंपनियों को बुलाया गया है। लेकिन एयरटेल, रिलायंस जियो और वोडाफ़ोन, आईडिया जैसी दूरसंचार कंपनियों को आमंत्रित नहीं किया गया। 

इसके लिए सरकार ने यह तर्क दिया है कि उन्हें अलग-अलग कंपनियों को आमंत्रित करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि उनके प्रतिनिधि संगठन सेल्यूलर ऑपरेटर ऐसोसिएशन ऑफ़ इंडिया यानी सीओएआई को इसमें आमंत्रित किया गया है।

हालांकि इस मामले में दिलचस्प बात यह है कि जिन टेक कंपनियों को इसमें आमंत्रित किया गया है उनका भी एक संगठन है ब्राडबैंड इंडिया फोरम, जिसके तहत ये सारी कंपनियाँ पिछले काफी समय से स्पेक्ट्रम नीति को उदार बनाने की वकालत करती रही हैं। लेकिन उनके संगठन को बुलाने के बजाए उन्हें अलग-अलग बुलाया गया है। 

सरकार से बातचीत

सीओएआई ही ऐसी महत्वूपर्ण बातचीत में उनका प्रतिनिधित्व करें, यह खुद कईं दूरसंचार कंपनियाँ भी नहीं चाहतीं। कारण यह भी है कि कई अहम मुद्दों पर इन कंपनियों में ख़ासे मतभेद हैं, ख़ासकर रिलायंस और बाकी दोनों दूरसंचार कंपनियों के बीच। 

यह सारा विवाद पिछले पाँच- छह महीने से चल रहा है। टेक कंपनियाँ चाहती हैं कि स्पेक्ट्रम नीति को उदार बनाया जाए। वे ख़ासकर इस बात को लेकर लाबीइंग कर रही हैं कि ‘ई’ और ‘वी’ बैंड के स्पेक्ट्रम को लाइसेंस मुक्त कर दिया जाए।

इन दोनों बैंड का स्पेक्ट्रम उन जगहों पर इंटरनेट पँहुचाने में महत्वपूर्ण हो सकता है, जहाँ फ़ाइबर नेटवर्क नहीं है। पिछले कुछ समय में सरकार बहुत हद तक उनसे राजी होती भी दिख रही है। इस समय चल रहे विमर्श में ‘ई’ बैंड के स्पेक्ट्रम को उदार बनाने और ‘वी’ बैंड के स्पेक्ट्रम को लाईसेंसमुक्त करने का प्रस्ताव खुद दूरसंचार नियामक प्राधिकरण की तरफ से ही रखा गया है।

सरकार को नुक़सान

दूरसंचार कंपनियाँ इसका विरोध इसलिए कर रही हैं कि जिस स्पेक्ट्रम लाइसेंस के लिए उन्होंने करोड़ों रुपये खर्च किए, और उसके लिए सरकार से रेवेन्यू शेयरिंग भी की, उसे अब मुफ़्त बाँटने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। 

इन दूरसंचार कंपनियों ने कहा था कि अगर ऐसा होता है तो देश को अरबों रुपये का नुक़सान होगा। उनका यह भी आरोप था कि विदेशी टेक कंपनियाँ बिना संचार का कोई लाईसेंस लिए पिछले दरवाजे से इस कारोबार में घुस रही हैं।

क्या कहना है टेक कंपनियों का?

टेक कंपनियों के अपने तर्क हैं। उनका कहना है कि स्पेक्ट्रम नीति को उदार बनाने से पूरे भारत में डाटा की उपलब्धता बढ़ेगी और डाटा सेवाओं की गुणवत्ता में भी इजाफा होगा। 

दूसरी तरफ यह भी कहा जा रहा है कि ये टेक कंपनियाँ अगर अपने बाज़ार को बढ़ाने के लिए ज़ोर लगा रही हैं तो दूरसंचार कंपनियाँ बाज़ार पर अपने एकाधिकार को बनाए रखने के लिए जुटी हैं। 

दूरसंचार बाज़ार में इस तरह की खींचतान हमेशा से ही चलती रही है, लेकिन इसमें एक चीज और जुड़ गई है- नीति तय करने में सरकार का मनमाने ढंग से पेश आना। जो शिक्षा और कृषि नीति में हुआ वही दूरसंचार नीति में भी हो रहा है।

साभार सत्य हिंदी 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related

माफीनामों का ‘वीर’ : विनायक दामोदर सावरकर

Post Views: 122 इस देश के प्रबुद्धजनों का यह परम, पवित्र व अभीष्ट कर्तव्य है कि इन राष्ट्र हंताओं, देश के असली दुश्मनों और समाज की अमन और शांति में पलीता लगाने वाले इन फॉसिस्टों और आमजनविरोधी विचारधारा के पोषक इन क्रूरतम हत्यारों, दंगाइयों को जो आज रामनामी चद्दर ओढे़ हैं, पूरी तरह अनावृत्त करके […]

ओवैसी मीडिया के इतने चहेते क्यों ?

Post Views: 110 मीडिया और सरकार, दोनो के ही द्वारा इन दिनों मुसलमानों का विश्वास जीतने की कोशिश की जा रही है कि उन्हें सही समय पर बताया जा सके कि उनके सच्चे हमदर्द असदउद्दीन ओवैसी साहब हैं। ● शकील अख्तर असदउद्दीन ओवैसी इस समय मीडिया के सबसे प्रिय नेता बने हुए हैं। उम्मीद है […]

मोदी सरकार कर रही सुरक्षा बलों का राजनीतिकरण!

Post Views: 65 ● अनिल जैन विपक्ष शासित राज्य सरकारों को अस्थिर या परेशान करने के लिए राज्यपाल, चुनाव आयोग, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), आयकर, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) आदि संस्थाओं और केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग तो केंद्र सरकार द्वारा पिछले छह-सात सालों से समय-समय पर किया ही जा रहा है। लेकिन […]

error: Content is protected !!
Designed and Developed by CodesGesture