छत्तीसगढ़ की आत्मा
छत्तीसगढ़ राज्य 1 नवम्बर 2020 को अपने
जन्म के दो दशक पूरे कर रहा है।
‘छत्तीसगढ़ की आत्मा‘ शब्दांश पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के एक निबंध में है। छत्तीसगढ़ भूगोल, इतिहास, राजनीतिक इकाई और सांस्कृतिक बोध के साथ साथ समय के बियाबान में चलते चलते अब एक तरह के प्रादेशिक समास में है। वह पूरी तौर पर राष्ट्रीय भी है। छत्तीसगढ़ एक यक्ष प्रश्न भी है। हमसे भविष्य में उत्तर और हर एक मौजूदा उत्तर में अपना भविष्य बूझने को कह रहा है। अनेक संस्कृतिकर्मी, लेखक, पत्रकार, कलाकार और विचारक हैं, जिन्होंने छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई है। उनकी इबारत में असंख्य छत्तीसगढ़वासियों के दिल धड़कते हैं। ऐसे बौद्धिक विचारक, उपक्रम और विमर्श हैं जिनका आकलन करना ऐतिहासिक आवश्यकता और दायित्व है। राज्य शासन और प्रत्येक जागरूक धरतीपुत्र का कर्तव्य है कि ऐसी बौद्धिक जिम्मेदारी का विश्वास और ऊर्जा के साथ निर्वाह करे जिसकी अपेक्षा छत्तीसगढ़ महतारी को है।
● कनक तिवारी
छत्तीसगढ़ का अनोखा और अब भी आंशिक अल्प ज्ञात इतिहास है। चित्रकोट, दण्डकारण्य, दक्षिण कोसल जैसी अभिव्यक्तियां प्रदेश को रामायणकालीन स्मृतियों से सम्बद्ध करती हैं। मिथकीय विश्वास के अनुसार प्रदेश में ही भगवान राम की ननिहाल है। चम्पारण्य संत वल्लभाचार्य का जन्म स्थान है। स्वामी विवेकानन्द केवल रायपुर में दो वर्षों से अधिक समय तक तरुण अवस्था में रहे थे। मुख्यतः संत कबीर के दर्शन से भी प्रभावित गिरोदपुरी में जन्मे गुरु घासीदास ने सतनामी पंथ का प्रादुर्भाव सत्य की प्रतिष्ठा स्थापित करने के लिए किया। माधवराव सप्रे ने 1899 से 1902 तक बीहड़ इलाके के पेंडरा रोड नामक स्थान से बहुआयामी वैचारिक-रचनात्मक पत्रिका ‘छत्तीसगढ़ मित्र‘ का प्रकाशन-सम्पादन वामन बलिराम लाखे के सहयोग से किया। छब्बीस वर्ष के खैरागढ़ के पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी को इलाहाबाद से प्रकाशित हिन्दी की शीर्ष साहित्यिक पत्रिका ‘सरस्वती‘ के सम्पादन का दायित्व मिला।

डाॅ. बलदेवप्रसाद मिश्र वह शोधार्थी हैं जिन्हें पी.एच.डी. की थीसिस पर डी.लिट् की उपाधि प्रदान की गई। छायावाद के प्रवर्तकों में मुकुटधर पांडेय की कविता ‘कुररी के प्रति‘ की ऐतिहासिकता है। लोचनप्रसाद पांडेय छत्तीसगढ़ के पुरातात्विक इतिहास के लेखन में मील का पत्थर हैं।
छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति को दुनिया की जिज्ञासा और ईर्ष्या की विषयवस्तु बनाने वाले हबीब तनवीर और साथी कलाकारों की उपलब्धियों को मूल्यांकित करने की जरूरत है। दुर्धर्ष पत्रकार और लेखक श्रीकांत वर्मा की अभिव्यक्ति की अनुगूंज और दस्तक भारत में सुनी जाती है। रामदयाल तिवारी ने गांधीवाद जैसे विषय पर सबसे पहले लगभग सैकड़ों पृष्ठों का शोधप्रबंध लिखा। सुंदरलाल शर्मा ने जेल से हस्तलिखित पत्रिका ‘श्रीकृष्ण समाचार‘ संपादित संचालित की।

यायावर गजानन माधव मुक्तिबोध को भी प्रसिद्धि की अभिव्यक्ति और अभिव्यक्ति की प्रसिद्धि उनके जीवन के अंतिम सात आठ वर्षों में छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव से मिली। गुलशेर अहमद खां ‘शानी’ ने ‘काला जल‘ और अन्य कृतियों में बस्तर को रचनात्मक धड़कन का विषय बना दिया। विनोद कुमार शुक्ल की ‘रायपुर बिलासपुर संभाग‘ जैसी महाकाव्योचित कविता छत्तीसगढ़ का बहता हुआ इतिहास है। ‘श्यामा स्वप्न‘ के अशेष लेखक ठाकुर जगन्मोहन सिंह अपनी विधा के जनक ही कहे जा सकते हैं। अनेक कवि लेखक और विचारक हैं जिनमें जगन्नाथ भानु, डाॅ. शंकर शेष, यदुनंदनलाल श्रीवास्तव, मेहरुन्निसा परवेज़, सतीष चौबे, केशव पांडेय, शशि तिवारी, लाला जगदलपुरी, कुंजबिहारी चौबे, जयनारायण पांडेय, नारायणलाल परमार, नन्दूलाल चोटिया, लतीफ घोंघी, मुकीम भारती, लक्ष्मण मस्तूरिहा, गुरुदेव चौबे, प्रभात त्रिपाठी, प्रमोद वर्मा, सुंदरलाल त्रिपाठी, बैकुंठ शुक्ल आदि का उल्लेख होता है। डा. हीरालाल शुक्ल ने तो छत्तीसगढ़ पर चालीस से अधिक ग्रन्थ लिखे हैं। डा. नरेन्द्रदेव वर्मा का छत्तीसगढ़ महतारी पर लिखा गीत अब छत्तीसगढ़ का राज्यगीत है।
पूर्व कार्यकारी राष्ट्रपति मोहम्मद हिदायतुल्ला की आत्मकथा ‘माइ ओन बाॅसवेल‘ में रायपुर और बस्तर का समय चित्रित किया गया है। उनकी स्मृति में राष्ट्रीय स्तर का विधि विश्वविद्यालय स्थापित होने से हिदायतुल्ला का यश छत्तीसगढ़ का यश हो गया है। एक अप्रतिम नौकरशाह से कहीं ज़्यादा मनुष्य के रूप में पी.वी आर सी .नरोन्हा ने छत्तीसगढ़ और बस्तर में चुनौतियों का सामना किया। राजनांदगांव के डाॅ. कमलेश्वर दास लंबे अरसे तक संयुक्त राष्ट्र के मानव अधिकार विभाग के निदेशक सचिव रहे। बांग्ला भाषा के अप्रतिम उपन्यासकार विमल मित्र ने छत्तीसगढ़ की पृष्ठभूमि में पर्याप्त लेखन किया। (जन्मना) छत्तीसगढ़ी अशोक वाजपेयी तथा सत्यदेव दुबे, प्रोफेसर रामनिरंजन पांडेय, प्रो. अलखनिरंजन पांडेय, राजेन्द्र दानी और एकांत श्रीवास्तव जैसे रचनाकार उल्लेखनीय हैं। बस्तर की कुटुमसर गुफाओं के शोधकर्ता डाॅ. शंकर तिवारी अपनी साधना में लगे रहे। सिनेमा संसार में अनुराग बसु की पहचान है और शास्त्रीय संगीत की दुनिया में बुद्धादित्य मुखर्जी और शेखर सेन की। नाट्य विधा में मिर्ज़ा मसूद और राजकमल नायक सहित कई यशस्वी नाम हैं।
लोक संस्कृति के अद्भुत उन्नायकों ने छत्तीसगढ़ी होने को राष्ट्रीय और सांस्कृतिक गौरव बनाया। ‘चंदैनी गोंदा‘ के संस्थापक रामचंद्र देशमुख और ‘सोनहा बिहान‘ के महासिंह चंद्राकर का यश है। नाचा शैली के अद्भुत शिल्पी और मौलिक कलाकार पुनाराम निषाद और झाड़ूराम, मंदराजी दाऊ, पंडवानी की अद्भुत गायिका तीजनबाई और रितु वर्मा, भरथरी गायिका सूरजबाई खांडे, पंथी नृत्य सर्जक कलाकार देवदास बंजारे जैसे कई और कलाकारों ने छत्तीसगढ़ को अंतर्राष्ट्रीय नक्शे पर लोक संस्कृति का परचम थामने का सुयश दिया। धर्म-संस्कृति के क्षेत्र में स्वामी आत्मानंद व्यक्ति नहीं बल्कि विश्वविद्यालय हैं।
विद्या मंदिर योजना के जनक रविशंकर शुक्ल गांधी की ‘बुनियादी तालीम‘ योजना के समानांतर ढांचा खड़ा करते हैं। किशोर साहू ने भारतीय सिनेमा में नवयुग का शुभारंभ किया जब सत्यजीत राय बमुश्किल शिशु रहे होंगे। आजादी के आंदोलन की सबसे ऊर्जावान कविता ‘पुष्प की अभिलाषा‘ माखनलाल चतुर्वेदी ने बिलासपुर कारागार में लिखी थी।
चंद्रशेखर आजाद के साथी क्रांतिकारी विश्वनाथ वैशम्पायन ‘महाकोशल’ अखबार के संपादक रहे। मायाराम सुरजन ने नवभारत, नई दुनिया और देशबंधु के संपादक के रूप में एक पत्रकार के बहुआयामी उन्मेश का उद्घाटन किया। गुरुदेव चौबे, रम्मू श्रीवास्तव और रामाश्रय उपाध्याय जैसे पत्रकारों के लेख आत्मावलोकन करने की चुनौती बिखेरते हैं। सुदूर ग्रामीण अंचल में निवासरत कहानीकार लाल मोहम्मद रिजवी ने महत्वपूर्ण पत्रिका ‘दिनमान‘ में ग्रामीण समस्याओं की रिपोर्टिंग को लेकर राष्ट्रीय ‘पाठकों के पत्र‘ के काॅलम में सबसे ज्यादा बार पुरस्कार हासिल किया। ठाकुर प्यारेलाल सिंह छत्तीसगढ़ के गांधी ही थे। विश्वनाथ यादव तामस्कर के सी.पी. एंड बरार की विधानसभा में दिए गए भाषण और फिर डाॅ. खूबचंद बघेल के भगीरथ प्रयत्न अंततः छत्तीसगढ़ को भारत के नक्शे पर ले ही आए। हरि ठाकुर ने पत्रकार और लेखक का जीवन जिया। ‘लोक स्वर‘ के संस्थापक संपादक का भी महत्व भुलाया नहीं जाना चाहिए। मजदूर नेता शंकरगुहा नियोगी ने छत्तीसगढ़ को व्यापक पहचान अपनी लेखनी, क्रांति और पत्रिकाओं के द्वारा दिलाई और छत्तीसगढ़ी को उसका वांछनीय सम्मान भी। भाषा विज्ञानी डा. रमेशचंद्र महरोत्रा ने छत्तीसगढ़ी की भाषायी अस्मिता को अकादेमिक गवेषणा दी।

संविधान सभा के सदस्यों में बैरिस्टर छेदीलाल सिंह, घनश्याम सिंह गुप्त, रतनलाल मालवीय तथा किशोरी मोहन त्रिपाठी तथा रामप्रसाद पोटाई का उल्लेख आवश्यक है। ई. राघवेन्द्र राव स्वाधीनता संग्राम में शामिल होने के अतिरिक्त सी.पी. एंड बरार के राज्यपाल नियुक्त हुए। भाटापारा के दाऊ कल्याण सिंह तथा बिलासपुर के स्वतंत्रतायोद्धा कुंज बिहारीलाल अग्निहोत्री तथा देवकी नंदन दीक्षित की अतुलनीय दानवीरों में गिनती की जाती है। विभु कुमार, रमाकांत श्रीवास्तव, नारायणलाल परमार, प्रभात त्रिपाठी, मुमताज, शरद कोकास, जयप्रकाश, सियाराम शर्मा, दानेश्वर शर्मा,विनोद साव, कैलाश बनवासी आदि का साहित्य में यशस्वी योगदान है। महिला लेखकों में शशि तिवारी, मेहरुन्निसा परवेज, जया जादवानी, पुष्पा तिवारी, संतोष झांझी की संज्ञेय पहचान होने के कारण उल्लेख किया जा सकता है।
मिनी माता, राजमोहिनी देवी, फूल बासन बाई जैसी महिलाओं की सुगंधि छत्तीसगढ़ के बाहर तक है। जयदेव बघेल बस्तर के अप्रतिम कलाकार हैं। भगतसिंह तथा चन्द्रशेखर आजा़द के साथी क्रांतिकारी सुखदेवराज अपने जीवन के अंतिम वर्षों में दुर्ग में रहे और निकट ग्राम अंडा में उनका स्मारक आज भी क्रांति कथा कहता प्रतीत होता है। रायगढ़ नरेश चक्रधर सिंह ने शास्त्रीय संगीत को अपनी लगनशीलता के चलते अभूतपूर्व संरक्षण तथा प्रोत्साहन दिया। अमरकंटक के निकट ग्राम लमनी में रहकर आदिवासियों की अनवरत सेवा में लगे दिल्ली विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर प्रभुदयाल खेरा अद्भुत मूल्यवान मनुष्य रहे।
छत्तीसगढ़ के आंचल में इतने ही नाम नहीं हैं, और भी बहुत से ऐसे व्यक्तित्व हैं जिन्होंने मिलकर छत्तीसगढ राज्य की कला, साहित्य, संस्कृति के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया है। पर किसी लेख की सीमा होती है। कई नाम एक लेख की सीमित परिधि से बाहर छिटक रहे हैं।
इतिहास का संचयन जीवित रहने का कर्तव्य और प्रमाण है। छत्तीसगढ़ की आत्मा अशेष संस्कृतिकर्मियों और समाज चिंतकों में व्याप्त है। रचनाकार समुद्र के लाइट हाउस की तरह होते हैं। सब कुछ घटित हो चुका कालातीत नहीं होता बल्कि कालजयी होता है।
(लेखक छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता, कांग्रेस के
वरिष्ठ नेता और कई पुस्तकों के लेखक हैं।)