विभूति बृहत्रयी को जयंती व बलिदान दिवस (31अक्तूबर) पर नमन
आजादी की लड़ाई और उसके उपरान्त राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले देश के दो महापुरुषों की जयंती और पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी का आज बलिदान दिवस है। इस अवसर पर कृतज्ञ राष्ट्र इन्हें याद कर रहा है।
● सतीश कुमार
लौहपुरुष सरदार पटेल

31अक्तूबर राष्ट्रशिल्पी सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती है। गांधी की शिष्य परम्परा में आजाद भारत की बागडोर के महानायकों प्रधान मंत्री पं.नेहरू और उप प्रधान मंत्री लौहपुरुष सरदार पटेल की नेतृत्व जोड़ी ने संघर्ष से मिली आजादी का संहिताकरण पूरा कराकर विशालतम भारतीय गणतंत्र की की बुनियाद रखी, उसकी विविधता की कमजोरी को ही उसकी ताकत बनाया और पांच सौ से ज्यादा टुकड़ों में बंटकर विरासत में मिले देश को एकीकृत किया। रजवाड़ों और सामंतों की परंपरागत सामंती सत्ता संरचना को उखाड़ इस तरह राष्ट्रीय एकीकरण की जो नींव सरदार पटेल ने रखी उस पर भारत में दुनिया का सबसे बड़ा सेकुलर, लोकतांत्रिक गणराज्य खड़ा शान से खड़ा है। किसान-मजदूर आन्दोलनों के संघर्ष और गांधी के रस्ते भारतीय राजनीति में लौहपुरुष के रूप में स्थापित महानायक सरदार वल्लभभाई पटेल के अवदान का यश राष्ट्रीय जीवन में अक्षय है, जिसे कृतज्ञ राष्ट्र कभी भुला नहीं सकता। पटेल जी की जयंती पर उन्हें सादर नमन।
आइरन लेडी इन्दिरा गांधी

31 अक्तूबर आइरन लेडी इन्दिरा गांधी जी के बलिदान का भी दिन है। जिस एकीकृत राष्ट्र के नेतृत्व की विरासत उन्हें मिली, उसकी अखंडता की वेदी पर आज के दिन ही उन्होंने अपनी शहादत दी थी। इन्दिरा जी ने हरित क्रांति और श्वेत क्रांति को परवान चढ़ाकर अन्नाभाव से जूझते भारत की पीएल -480 की अमेरिकी खाद्य निर्भरता को इतिहास के बस्ते में समेट दिया और बढ़ती आबादी के बावजूद देश में खाद्य एवं दुग्ध उत्पादन के सरप्लस का युगान्तकारी अध्याय रचा। जमा पूंजी जमीन या दीवार में गाड़कर मर जाने की नियति वाले भारतीय ग्रामीण समाज का बैंक राष्ट्रीयकरण के साथ बैंकिंग से परिचय कराया और उनके माध्यम से कृषि एवं ग्रामीण विकास को गति दी। देश को परमाणु शक्ति युग में प्रवेश कराया। एक समर्थ भारत रचने में सक्षम नेतृत्व देते हुए 1971 में न केवल द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की दुनिया की सबसे बड़ी सामरिक जीत भारत के खाते में दर्ज कराया, बल्कि पाकिस्तान की ‘वर्टिकल सर्जरी’ करते हुये धर्म के आधार पर राष्ट्र बनाने की लिगेसी को खंडित कर दिया। राष्ट्र को विघटित करने पर आमादा आतंक से समझौता नहीं कर निर्भयता से दृढ़ कदम उठाये एवं इस जज्बे की मुखर अभिव्यक्ति के साथ अपना बलिदान दे दिया कि इससे यदि मेरी जान भी जाती है तो मेरे खून का एक एक कतरा देश के काम आयेगा। लौहपुरुष ने देश को एकीकरण के जिस सूत्र में पिरोया था, उसकी अखंडता की रक्षा में लौहनेत्री इन्दिरा जी के बलिदान को नमन।
आचार्य नरेन्द्रदेव

31 अक्तूबर भारतीत समाजवाद के अग्रणी चिन्तनकार व समाजवादी आन्दोलन के प्रवर्तक संगठनकर्ता आचार्य नरेन्द्र देव जी की जयंती है। वह विद्वान आचार्य और सरलता एवं सादगी की प्रतिमूर्ति थे, जिसने समाजवादी चिन्तन को भारतीय मनीषा की भाव-भूमि एवं एवं देशज चिन्तन की परंपरा से जोड़ा। गांधीजी के राष्ट्रीय शिक्षा आंदोलन की संस्था काशी विद्यापीठ की यशस्वी आचार्य परंपरा की विभूति नरेन्द्र देव जी ने बौद्ध दर्शन और समाजवाद के बीच चिन्तन की धुरी बनाने के साथ जहां भारतीय-समाजवाद को आकार दिया, वहीं कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में समाजवादी आन्दोलन को खड़ा करने की भी अगुवाई की। द्वंदात्मक भौतिकवाद की जगह द्वंदात्मक चेतनावाद की इतिहास दृष्टि के भारतीय चिन्तन परम्परा से समाजवाद के वैचारिक तादात्म्य के वह महान चिन्तनकार राजनीतिज्ञ थे। लेकर उनकी मौलिक समझ के चिन्तक राजनेता पं. नेहरू भी कायल थे। उनसे बेहद प्रभावित रहने वाले पं. नेहरू का विपक्ष में रहते हुये भी उनसे गहरा अनुराग था। 1947 के बाद काशी विद्यापीठ के कुलपतित्व से विरत हुये आचार्य जी को लखनऊ विश्वविद्यालय और बीएचयू के कुलपतित्व का भी यशपूर्ण अवसर मिला। नियुक्त कराते थे। वह ऐसे बिरले कुलपति थे जो बीएचयू में प्रधानमंत्री नेहरू के भाषण के बाद अपने लंबे अध्यक्षीय भाषण में नेहरू सरकार की अर्थनीति की निर्भय आलोचना के शैक्षिक दायित्व को अंजाम देने वाले आचार्यत्व की ऊंचाई रखते थे । नेहरू जैसा लोकतंत्रवादी सत्ता नायक भी दुर्लभ ही है जो ध्यानमग्न हो मित्र आचार्य की आलोचना सुनता रहा। आचार्यजी के व्यक्तित्व की चर्चा करते हुये पं.कमलापति त्रिपाठी जी कहते थे कि विद्यापीठ में अपने दोनों महान गुरुओं नरेन्द्रदेव जी और सम्पूर्णानन्द जी के व्याख्यान सुनने के बाद तय करना कठिन होता था कि कौन बड़ा विद्वान है, लेकिन एक बात पक्की है कि आचार्य जी की सादगी, सरलता और सहजता निराली थी। जयंती पर आचार्य नरेन्द्रदेव जी को नमन।
लेखक महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी के राजनीति विज्ञान
विभाग के अवकाश प्राप्त आचार्य और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं।