आंदोलन के साथ कश्मीरी पंडित
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दा बना शाहीन बाग
सीएए का मुद्दा अब राष्ट्रीय नहीं रह गया है बल्कि अंतरराष्ट्रीय बन गया है। अमेरिका के प्रसिद्ध समाजसेवी जार्ज सूरूस ने सीएए के विरोध में कहा है ‘हम इतिहास के बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं। खुली सोचने रखने वाला समाज खतरे में है। दुनिया में तानाशाहों का राज बढ़ रहा है। लोकतांत्रिक तौर पर चुने जाने वाले प्रधानमंत्री मोदी भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहत हैं’।
शाहीन बाग प्रदर्शन को कश्मीरी पंडितों ने भी समर्थन दिया है। विस्थापित कश्मीरी पंडितों ने शाहीन बाग में प्रदर्शनकारियों के साथ एकजुटता बैठक कर इसे आजादी के बाद सबसे बड़ा आंदोलन करार दिया है। शाहीन बाग में प्रदर्शन में सक्रिय फिल्म निर्माता सबा रहमान का मानना है कि इस तरह की एकजुटता से बल मिलेगा। वे कहते हैं, कश्मीर में संघर्ष पुराना है, कश्मीरी पंडितों के निर्वासन की त्रासदी को अक्सर राजनीतिक दलों में भुनाने की कोशिश की जाती है। अब ये
संदेश देने का वक्त है कि हम इस घृणा से भरे आख्यान से विभाजित नहीं होंगे।
विरोध एक लोकतांत्रिक और मानवीय भारत के लिए : एमके रैना, कश्मीरी पंडित

शाहीन बाग आजादी के बाद सबसे बड़े गांधीवादी सत्याग्रह में से एक है। ये एक ऐसा आंदोलन है, जो हमारे देश को एक नया प्रारूप देगा। हम ऐसे अनूठे देश में रह रहे हैं, जिसकी अपनी विशिष्टता है। ये प्रदर्शनकारी उस विचार को दोबारा हासिल करने के लिए दृढ़ हैं, जिसे भारत के रूप में देखा गया था। उनका विरोध एक लोकतांत्रिक और मानवीय भारत के लिए है, जिसे कुछ आरोपों से कम नहीं किया जा सकता है। जिन लोगों को अल्पसंयक होने के चलते उत्पीडऩ का सामना करना पड़ा, केवल वे उन प्रदर्शनकारियों के दर्द को समझ सकते हैं, जो ठंड में विरोध करने के लिए बाहर हैं। मैंने खुद यह सब अनुभव किया है।
कश्मीर को बांट दिया गया : इंदर सलीम, कश्मीरी पंडित

कश्मीरियों को भारत-पाकिस्तान के बीच दो हिस्सों में बांट दिया गया है। मेरा यह भी मानना है कि नब्बे के दशक के शुरुआती दिनों में निहत्थे नागरिकों, मुस्लिमों और पंडितों की हत्या ने पलायन को एक संभावना बना दिया था। कश्मीरी पंडितों के लिए एकजुटता एक सकारात्मक कदम है। इसे वास्तव में वामपंथी और केंद्र ने नजरअंदाज किया है और भाजपा को मौका दे दिया है।